पश्चिम चंपारण: वैश्विक कोरोना महामारी का छात्रों की पढ़ाई पर काफी असर पड़ा है. इस दौरान बच्चों की पढ़ाई पिछले तीन माह से बिल्कुल बंद है. कई विद्यालय और कोचिंग संस्थान ऑनलाइन क्लास चला भी रहे हैं. वहीं, चंपारण के आदिवासी और थरुहट बहुल क्षेत्र में छात्र-छत्राओं के ऑनलाइन पढ़ाई में मोबाइल नेटवर्क उनकी राह का रोड़ा साबित हो रहा है. जिससे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र-छात्राओं के साथ ही स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले इस छात्र भी काफी परेशान हैं.
नेटवर्क बना ऑनलाइन पढ़ाई में रोड़ा
सरकार के सामने तेजी से बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के बीच शिक्षण संस्थान खोलना एक कठिन चुनौती बना हुआ है. हालांकि, सरकार ने चौपट हो रही बच्चों की शिक्षा को पटरी पर लाने के लिए ऑनलाइन पढ़ाई कराने की बात कही है. लेकिन जिला के तराई क्षेत्रों में नेटवर्क नहीं होने से बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है. जिस कारण अभिभावक बच्चों के भविष्य को लेकर काफी चिंतित हैं.
एप बनी शोभा की वस्तु
सरकार द्वारा सूबे में ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए उन्नयन और विद्यावाहिनी एप की शुरूआत की गई है. वहीं, जिले के छात्र-छात्राओं को इस एप से बिल्कुल भी लाभ नहीं मिल पा रहा है. आलम ये है कि लॉकडाउन में घर लौटे बड़े शहरों में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों को उनके कोचिंग संस्थान द्वारा ऑनलाइन एजुकेशन दिया जा रहा है. लेकिन नो नेटवर्क जोन में रहने से इन व्यवस्थाओं के लाभ से छात्र पूरी तरह से वंचित हैं. जिसका सीधा असर उनके भविष्य पर पड़ रहा है.
तराई क्षेत्रों में नो नेटवर्क जोन
जिले के कई इलाके नो नेटवर्क जोन में आते हैं. इन इलाकों के प्राइमरी, मिडल और हायर क्लासेज में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं सहित कंपटीशन की तैयारी करने वाले विद्यार्थी भी काफी चिंतित हैं. उनकी पढ़ाई इस समय पूरी तरह से है. बगहा अंतर्गत वाल्मीकिनगर इंडो-नेपाल सीमा के पहाड़ी इलाकों में कहने को तो सभी कम्पनियों का नेटवर्क उपलब्ध है. लेकिन छात्रों के अनुसार ये ऑनलाइन पढ़ाई के लिए पूरी तरह से नाकाफी साबित हुए हैं. वहीं, जिले में नौरंगिया दोन, गर्दी दोन, गोबरहिया दोन इत्यादि कई ऐसे इलाके भी मौजूद हैं. जहां, आज तक संचार माध्यम पहुंच ही नहीं सका है.