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रसायन मुक्त खेती किसानों के लिए चुनौती, मांगी सरकारी सहायता

किसानों का कहना है कि पशुपालन के बिना प्राकृतिक खेती की कल्पना करना बहुत कठिन है क्योंकि यह प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक है.

Farmers say needs of proper provisions, system to shift chemical farming to natural farming
किसान रसायन मुक्त खेती के लिए सरकारी सहायता, उचित प्रावधान और व्यवस्था की मांग कर रहे हैं(प्रतीकात्मक फोटो (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 3 hours ago

नई दिल्ली: रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) शुरू करने की घोषणा का किसानों ने समर्थन किया. हालांकि किसानों ने इस मिशन के समक्ष कई चुनौतियां भी गिनाई. किसानों ने देश में फसलों में कीटनाशकों के उपयोग को प्राकृतिक खेती में बदलने के लिए सरकार से पूर्ण समर्थन, उचित प्रावधान और प्रणाली की आवश्यकता पर जोर दिया है.

ईटीवी भारत से बातचीत में किसान धर्मेंद्र मलिक ने कहा, 'हमारे लिए यह बहुत अजीब है. जब हम प्राकृतिक खेती कर रहे थे, तब किसानों से कहा गया कि वे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खेती करें. इसके बाद हमने प्राकृतिक खेती की जगह रासायनिक खेती की बढ़े और अब प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.

मलिक ने कहा, 'पशुपालन के बिना प्राकृतिक खेती की कल्पना करना बहुत कठिन है, क्योंकि यह प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक है. हालांकि मुख्य मुद्दा यह है कि आजकल जनसंख्या पहले से ही बढ़ गई है और पशुपालन कम हो गया है. किसानों ने चिंताजनक बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यूरिया और उर्वरक का उपयोग करने के बाद उन्हें अपेक्षित कृषि उपज नहीं मिलती है. फिर प्राकृतिक खेती करने के बाद उनके लिए जीवित रहना बहुत कठिन हो जाएगा क्योंकि रासायनिक खेती की तुलना में उपज स्वाभाविक रूप से कम होगी.

इसी तरह की भावनाओं को व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश के बिजनौर के एक अन्य किसान बीरेंद्र सिंह बंट ने ईटीवी भारत को बताया, 'रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती में बदलने के लिए कृषि भूमि को कम से कम तीन से चार साल लगते हैं. अगर कोई किसान प्राकृतिक खेती शुरू करता है तो उसे रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती में जाने के लिए तीन से चार साल इंतजार करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में उन्हें कम उत्पादकता का सामना करना पड़ता है.'

बीरेंद्र सिंह ने कहा, 'कम उत्पादन की अवधि के दौरान किसान को इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार से सहायता की आवश्यकता होती है. यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि रासायनिक खेती के बजाय प्राकृतिक खेती में उत्पादन कम होगा, क्योंकि रासायनिक खेती मौसम और भूमि पर निर्भर करती है.'

बंत ने कहा, 'मैं 40-50 एकड़ कृषि भूमि पर खेती करता हूं, जहां हम रासायनिक खेती का उपयोग करते हैं. हम केवल निजी इस्तेमाल के लिए उपज प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक खेती करते हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत एक स्वतंत्र केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ) शुरू करने को मंजूरी दे दी.

इस योजना का कुल 2481 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है. सरकार पूरे देश में मिशन मोड में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है. किसान रसायन मुक्त खेती के रूप में प्राकृतिक खेती करेंगे जिसमें स्थानीय पशुधन एकीकृत प्राकृतिक खेती के तरीके और विविध फसल प्रणाली शामिल होगी.

पंजाब के एक अन्य किसान गुरमनीत मंगत ने चिंताजनक बातें उठाते हुए ईटीवी भारत से कहा, 'प्राकृतिक खेती महंगी अवधारणा है क्योंकि इसमें पैदावार बढ़ाने के लिए अधिक जनशक्ति, शारीरिक श्रम और पशुधन की आवश्यकता होती है. अगर फसलों में बीमारी लगती है तो हमें वहां कीटनाशक का इस्तेमाल करना पड़ता है. मवेशियों के बिना प्राकृतिक खेती की अवधारणा सफल नहीं होगी, लेकिन आजकल कई किसान पशुपालन नहीं कर रहे हैं.'

उत्तर प्रदेश के किसान अम्प्रपाल सिंह ने भी इस मुद्दे की ओर ध्यान दिलाया और कहा कि सरकार को इस पर गौर करना चाहिए. उन्होंने कहा, 'अगर हम रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर रुख करते हैं तो हमें 30-40 प्रतिशत कम उपज का सामना करना पड़ सकता है, ऐसी स्थिति में हमें अपने अस्तित्व के लिए सरकार के समर्थन की आवश्यकता होगी.'

ये भी पढ़ें- किसानों को मोदी सरकार की बड़ी सौगात, ₹ 2481 करोड़ के राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन को मंजूरी

नई दिल्ली: रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) शुरू करने की घोषणा का किसानों ने समर्थन किया. हालांकि किसानों ने इस मिशन के समक्ष कई चुनौतियां भी गिनाई. किसानों ने देश में फसलों में कीटनाशकों के उपयोग को प्राकृतिक खेती में बदलने के लिए सरकार से पूर्ण समर्थन, उचित प्रावधान और प्रणाली की आवश्यकता पर जोर दिया है.

ईटीवी भारत से बातचीत में किसान धर्मेंद्र मलिक ने कहा, 'हमारे लिए यह बहुत अजीब है. जब हम प्राकृतिक खेती कर रहे थे, तब किसानों से कहा गया कि वे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खेती करें. इसके बाद हमने प्राकृतिक खेती की जगह रासायनिक खेती की बढ़े और अब प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.

मलिक ने कहा, 'पशुपालन के बिना प्राकृतिक खेती की कल्पना करना बहुत कठिन है, क्योंकि यह प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक है. हालांकि मुख्य मुद्दा यह है कि आजकल जनसंख्या पहले से ही बढ़ गई है और पशुपालन कम हो गया है. किसानों ने चिंताजनक बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यूरिया और उर्वरक का उपयोग करने के बाद उन्हें अपेक्षित कृषि उपज नहीं मिलती है. फिर प्राकृतिक खेती करने के बाद उनके लिए जीवित रहना बहुत कठिन हो जाएगा क्योंकि रासायनिक खेती की तुलना में उपज स्वाभाविक रूप से कम होगी.

इसी तरह की भावनाओं को व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश के बिजनौर के एक अन्य किसान बीरेंद्र सिंह बंट ने ईटीवी भारत को बताया, 'रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती में बदलने के लिए कृषि भूमि को कम से कम तीन से चार साल लगते हैं. अगर कोई किसान प्राकृतिक खेती शुरू करता है तो उसे रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती में जाने के लिए तीन से चार साल इंतजार करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में उन्हें कम उत्पादकता का सामना करना पड़ता है.'

बीरेंद्र सिंह ने कहा, 'कम उत्पादन की अवधि के दौरान किसान को इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार से सहायता की आवश्यकता होती है. यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि रासायनिक खेती के बजाय प्राकृतिक खेती में उत्पादन कम होगा, क्योंकि रासायनिक खेती मौसम और भूमि पर निर्भर करती है.'

बंत ने कहा, 'मैं 40-50 एकड़ कृषि भूमि पर खेती करता हूं, जहां हम रासायनिक खेती का उपयोग करते हैं. हम केवल निजी इस्तेमाल के लिए उपज प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक खेती करते हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत एक स्वतंत्र केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ) शुरू करने को मंजूरी दे दी.

इस योजना का कुल 2481 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है. सरकार पूरे देश में मिशन मोड में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है. किसान रसायन मुक्त खेती के रूप में प्राकृतिक खेती करेंगे जिसमें स्थानीय पशुधन एकीकृत प्राकृतिक खेती के तरीके और विविध फसल प्रणाली शामिल होगी.

पंजाब के एक अन्य किसान गुरमनीत मंगत ने चिंताजनक बातें उठाते हुए ईटीवी भारत से कहा, 'प्राकृतिक खेती महंगी अवधारणा है क्योंकि इसमें पैदावार बढ़ाने के लिए अधिक जनशक्ति, शारीरिक श्रम और पशुधन की आवश्यकता होती है. अगर फसलों में बीमारी लगती है तो हमें वहां कीटनाशक का इस्तेमाल करना पड़ता है. मवेशियों के बिना प्राकृतिक खेती की अवधारणा सफल नहीं होगी, लेकिन आजकल कई किसान पशुपालन नहीं कर रहे हैं.'

उत्तर प्रदेश के किसान अम्प्रपाल सिंह ने भी इस मुद्दे की ओर ध्यान दिलाया और कहा कि सरकार को इस पर गौर करना चाहिए. उन्होंने कहा, 'अगर हम रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर रुख करते हैं तो हमें 30-40 प्रतिशत कम उपज का सामना करना पड़ सकता है, ऐसी स्थिति में हमें अपने अस्तित्व के लिए सरकार के समर्थन की आवश्यकता होगी.'

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