बेतिया (बगहा): 11 फरवरी को पड़ रहे माघ मौनी अमावस्या के मौके पर लगने वाले मेला को लेकर श्रद्धालु अभी से भारत- नेपाल सीमा पर स्थित वाल्मीकिनगर के त्रिवेणी संगम पर पहुंचने लगे हैं. यहां गंडक नदी में श्रद्धालु स्नान करते हैं. एक सप्ताह तक लगने वाले मेला में हर साल लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं.
जुटने लगी भक्तों की भीड़
मौनी अमावस्या 11 फरवरी को है. त्रिवेणी संगम में स्नान के लिए भक्तों की भीड़ अभी से जुटने लगी है. गौरतलब है कि बिहार, उत्तरप्रदेश और नेपाल से मौनी अमावस्या के मौके पर भारत-नेपाल सीमा पर स्थित त्रिवेणी संगम पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस दौरान वाल्मीकि टाइगर रिजर्व गुलजार रहता है.
त्रिवेणी संगम तट पर भक्त करते हैं स्नान
हिमालय से निकलने वाली गंडक नदी को नेपाल में शालिग्राम के नाम से जाना जाता है. गंडक नदी विश्व की एकमात्र ऐसी नदी है जिसके गर्भ में शालिग्राम पाया जाता है. इस नदी में सोनभद्र, ताम्रभद्र और नारायणी का पवित्र मिलन होता है. यही वजह है कि इसे प्रयागराज के बाद देश का दूसरा त्रिवेणी संगम होने का गौरव प्राप्त है. ऐसे में जब माघ मौनी अमावस्या तिथि के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है तो शालिग्राम नदी जिसको गंडक, सप्त गंडकी और सदानीरा के नाम से भी जाना जाता है उसमें स्नान का महत्व बढ़ जाता है.
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मौन धारण कर पूजा और दान करने की है परंपरा
माघ माह में पड़ने वाले मौनी अमावस्या पर्व में मौन धारण कर मुनियों के समान आचरण करते हुए स्नान दान की परंपरा है. यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस दिन स्नान के बाद तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्र समेत दूध देने वाली गाय का दान कर पुण्य के भागीदार बनते हैं. गौरतलब है कि माघ मास में गोचर करते हुए भगवान सूर्य जब चंद्रमा के साथ मकर राशि पर आसीन होते हैं तो उस काल को मौनी अमावस्या कहा जाता है.