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'पराली प्रबंधन' से कैसे पाएं आर्थिक लाभ, सीखा रही बिहार की ये महिलाएं - मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

किसानों का कहना है कि सरकार खेतों में पराली न जलाने को लेकर सख्त तो दिख रही है, लेकिन इसका कोई विकल्प नहीं तैयार किया था. ऐसे में इन महिलाओं को सरकार से उम्मीद है कि सरकार इनके इस हुनर को पराली न जलाने के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करेगी.

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पराली
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Published : Jan 14, 2020, 9:02 AM IST

Updated : Jan 14, 2020, 9:48 AM IST

बेतिया: एक ओर जहां बिहार से लेकर कई राज्यों में पराली (पुआल) जलाने से किसानों के रोकने के लिए सरकार द्वारा कठोर नियम बनाए जा रहे हैं, वहीं बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के कई गांवों की महिलाएं पराली के प्रबंधन के जरिए ना केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि पराली जलाने की समस्या का समाधान भी यहां के किसानों को मिल गया है.

पश्चिम चंपारण जिले के बगहा-2 प्रखंड के कई गांवों में महिलाएं पराली से चटाई और बिठाई (छोटा टेबल, मोढ़ा) जैसी वस्तुएं बनाती हैं. रामपुर गांव की रहने वाली बुजुर्ग महिला सुभावती देवी ने बताया कि पुआल से यहां पहले भी ऐसी वस्तुएं बनाई जाती थीं, लेकिन अब इस काम से कई महिलाएं जुड़ रही हैं.

पेश है रिपोर्ट

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का संदेश
बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी जल-जीवन-हरियाली यात्रा के क्रम में राज्य के सभी क्षेत्रों में पहुंचकर लोगों को प्रदूषण नियंत्रण करने का संदेश दे रहे हैं. इस क्रम में मुख्यमंत्री लोगों से पराली जलाने से होने वाले नुकसान से भी लोगों को अगाह कर रहे हैं.

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पराली से मोढ़ा और चटाई बनाती महिलाएं

नीतीश इस यात्रा के क्रम में वाल्मीकिनगर भी पहुंचे थे और इससे नुकसान को लेकर लोगों को अवगत कराया था. इसके बाद पराली के जलाने से होने वाले नुकसान और पर्यावरण संतुलन को लेकर गांवों में भी जागरूकता आई है.

अब गांव की महिलाओं ने धान की पराली और अन्य फसलों के अवशेष का प्रबंधन करने का ना केवल जुगाड़ कर लिया है, बल्कि अपनी रोजमर्रा की जरूरतें भी पूरी कर रही हैं. लक्ष्मीपुर गांव की रहने वाली जरीना खातून ने बताया कि ये लोग पहले से ही चटाई और स्टूल बनाती थीं, लेकिन अब पराली से होने वाले नुकसान से पुरुषों को भी आगाह करने लगी हैं. आज महिलाएं समूह बनाकर यह काम कर रही हैं.

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चटाई बनाती महिला

महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर
गांव की कई महिलाएं अब पराली से बनाई अपनी वस्तुओं को बेचकर आर्थिक लाभ लेने लगी हैं. लक्ष्मीना देवी ने कहा कि उन लोगों ने इसका व्यापार तक करना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि वे बेतिया बाजार में एक-दो दुकानदारों को चटाई और बिठाई की बिक्री करती हैं, जहां से लोग इसे खरीद भी रहे हैं.

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जानकारी देती महिला

यह भी पढ़ें- नो टू सिंगल यूज प्लास्टिक : कचरे से निपटने के लिए राजस्थान के युवाओं की मुहिम है 'हेल्पिंग हैंड'

फूस की झेापड़ी बनाने में भी अब पराली का ही इस्तेमाल
लक्ष्मीपुर गांव में अधिकांश महिलाएं खाना बनाकर एक जगह इकट्ठा हो जाती हैं और इसे बनाने के काम में जुट जाती हैं. कई घरों में यह काम खूब जोरों से चल रहा है. महिलाएं कहती हैं कि फूस की झोपड़ी बनाने में काम आने वाले खर-खरई का काम भी इस पराली ने अब दूर कर दिया है. फूस की झेापड़ी बनाने में भी अब लोग पराली का ही इस्तेमाल कर रहे हैं.

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आंगन में मोढ़ा और चटाई बनाती महिलाएं

पुआल से बनी वस्तुएं पूरी तरह इको-फ्रेंडली
बगहा के लोगों का कहना है कि पुआल से बनी वस्तुएं पूरी तरह इको-फ्रेंडली है. इसमें प्लास्टिक का उपयोग नहीं किया जाता है. कहीं बांधने की जरूरत भी होती है तो पराली से ही बनी रस्सियों का उपयोग किया जाता है. इसी के साथ यहां चटाई हर डिजाइन और साइज की बानाई जा रही है. ठंड के दिनों में यह बिस्तर को गरम भी रखती है.

यह भी पढ़ें- बिहार : मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा भोज में घुलेगी सियासी मिठास

बेतिया: एक ओर जहां बिहार से लेकर कई राज्यों में पराली (पुआल) जलाने से किसानों के रोकने के लिए सरकार द्वारा कठोर नियम बनाए जा रहे हैं, वहीं बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के कई गांवों की महिलाएं पराली के प्रबंधन के जरिए ना केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि पराली जलाने की समस्या का समाधान भी यहां के किसानों को मिल गया है.

पश्चिम चंपारण जिले के बगहा-2 प्रखंड के कई गांवों में महिलाएं पराली से चटाई और बिठाई (छोटा टेबल, मोढ़ा) जैसी वस्तुएं बनाती हैं. रामपुर गांव की रहने वाली बुजुर्ग महिला सुभावती देवी ने बताया कि पुआल से यहां पहले भी ऐसी वस्तुएं बनाई जाती थीं, लेकिन अब इस काम से कई महिलाएं जुड़ रही हैं.

पेश है रिपोर्ट

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का संदेश
बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी जल-जीवन-हरियाली यात्रा के क्रम में राज्य के सभी क्षेत्रों में पहुंचकर लोगों को प्रदूषण नियंत्रण करने का संदेश दे रहे हैं. इस क्रम में मुख्यमंत्री लोगों से पराली जलाने से होने वाले नुकसान से भी लोगों को अगाह कर रहे हैं.

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पराली से मोढ़ा और चटाई बनाती महिलाएं

नीतीश इस यात्रा के क्रम में वाल्मीकिनगर भी पहुंचे थे और इससे नुकसान को लेकर लोगों को अवगत कराया था. इसके बाद पराली के जलाने से होने वाले नुकसान और पर्यावरण संतुलन को लेकर गांवों में भी जागरूकता आई है.

अब गांव की महिलाओं ने धान की पराली और अन्य फसलों के अवशेष का प्रबंधन करने का ना केवल जुगाड़ कर लिया है, बल्कि अपनी रोजमर्रा की जरूरतें भी पूरी कर रही हैं. लक्ष्मीपुर गांव की रहने वाली जरीना खातून ने बताया कि ये लोग पहले से ही चटाई और स्टूल बनाती थीं, लेकिन अब पराली से होने वाले नुकसान से पुरुषों को भी आगाह करने लगी हैं. आज महिलाएं समूह बनाकर यह काम कर रही हैं.

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चटाई बनाती महिला

महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर
गांव की कई महिलाएं अब पराली से बनाई अपनी वस्तुओं को बेचकर आर्थिक लाभ लेने लगी हैं. लक्ष्मीना देवी ने कहा कि उन लोगों ने इसका व्यापार तक करना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि वे बेतिया बाजार में एक-दो दुकानदारों को चटाई और बिठाई की बिक्री करती हैं, जहां से लोग इसे खरीद भी रहे हैं.

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जानकारी देती महिला

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फूस की झेापड़ी बनाने में भी अब पराली का ही इस्तेमाल
लक्ष्मीपुर गांव में अधिकांश महिलाएं खाना बनाकर एक जगह इकट्ठा हो जाती हैं और इसे बनाने के काम में जुट जाती हैं. कई घरों में यह काम खूब जोरों से चल रहा है. महिलाएं कहती हैं कि फूस की झोपड़ी बनाने में काम आने वाले खर-खरई का काम भी इस पराली ने अब दूर कर दिया है. फूस की झेापड़ी बनाने में भी अब लोग पराली का ही इस्तेमाल कर रहे हैं.

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आंगन में मोढ़ा और चटाई बनाती महिलाएं

पुआल से बनी वस्तुएं पूरी तरह इको-फ्रेंडली
बगहा के लोगों का कहना है कि पुआल से बनी वस्तुएं पूरी तरह इको-फ्रेंडली है. इसमें प्लास्टिक का उपयोग नहीं किया जाता है. कहीं बांधने की जरूरत भी होती है तो पराली से ही बनी रस्सियों का उपयोग किया जाता है. इसी के साथ यहां चटाई हर डिजाइन और साइज की बानाई जा रही है. ठंड के दिनों में यह बिस्तर को गरम भी रखती है.

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Intro:जहाँ एक तरफ सरकार पराली न जलाने को लेकर लोगों को आगाह कर रही है वही बगहा के अधिकांश पिछड़े इलाकों की महिलाएं पराली से मोढ़ा व चटाई बना सरकार को रोजगार सृजन करने का आईना दिखा रहीं है।


Body:पराली से चटाई बनाने की हुनरमंद हैं महिलाएं।
बगहा के रामपुर, औसानी, यमुनापार सहित थारू बाहुल्य इलाके में बड़े पैमाने पर पराली का उपयोग कर चटाई व मोढ़ा बनाने का कार्य किया जा रहा है। महिलाओं के इस हुनर की चर्चा पूरे क्षेत्र में हो रही है। खासकर वैसे समय मे जब सरकार खेतों में पराली जलाने को लेकर काफी सख्त है और इसको लेकर सरकार कड़े कानून भी बनाने की बात कर रही है।
पराली जलाने से प्रदूषण का खतरा
पराली जलाने को लेकर सरकार से संसद तक बहस छिड़ी हुई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद अपने सभी सभाओं में लोगों को पराली से होने वाले नुकसान के बारे में ताकीद कर रहे हैं। पराली जलाने से वायुमंडल में फैलने वाले धुँए और राख से पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ने का खतरा है जिसको लेकर सरकार काफी गम्भीर दिख रही है। ऐसे में इन महिलाओं द्वारा पराली न जलाकर उससे रोजगार सृजन का एक बड़ा विकल्प इन महिलाओं ने सरकार के समक्ष दे दिया है।


Conclusion:सरकार से मदद की दरकार।
भले ही सरकार खेतों में पराली न जलाने की चेतावनी दे रही हो और किसानों को यह पाठ पढ़ा रही हो कि पराली जलाना खेतों व पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह है। लेकिन पराली से मोढ़ा व चटाई बना रही महिलाओं समेत किसानों का भी यही कहना है कि सरकार ने इसका कोई विकल्प नही तैयार किया है कि आखिर बचे हुए पराली को किस उपयोग में लाया जाएगा। क्योंकि बचे हुए पराली का उनके पास एक मात्र उपयोग चारा के रूप में ही होता है। ऐसे में अब इस अत्याधुनिक तकनीकी युग मे पशुपालन भी नही हो रहा तो चारा किसे खिलाएं। अब इन महिलाओं को आस लगी है कि सरकार इनके इस हुनर को पराली न जलाने के विकल्प के तौर पर उपयोग करे और इनके रोजगार सृजन में मदद करे ताकि ये पराली का उपयोग कर बड़े पैमाने पर मोढ़ा व चटाई बना इसका व्यवसाय कर सकें।
बाइट१- लक्ष्मीना देवी
बाइट2- बुजुर्ग महिला, जरीना खातून
बाइट3 बेचन कुशवाहा, किसान
Last Updated : Jan 14, 2020, 9:48 AM IST
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