ETV Bharat / state

गांधी की कर्मभूमि बेतिया में आदिवासी छात्राएं मास्क बना लिख रही नई इबारत, सैकड़ों को मिला रोजगार

author img

By

Published : Jun 1, 2020, 8:03 PM IST

मास्क तैयार होने के बाद इसे पहले पंचायत स्तर पर गांव में वितरित किया जाता है. जिसके बाद इसे बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है. मास्क बनाने का काम शुरू होने के बाद गांव की लगभग एक हजार आदिवासी छात्राओं को रोजगार मिल रहा है.

बेतिया
बेतिया

बेतिया: गांधी की कर्मभूमि भितिहरवा की आदिवासी बेटियां खुद से अपनी तकदीर गढ़ कर आत्मनिर्भर बन रही है. दरअसल, गांव की आदिवासी युवतियां वैश्विक महामारी में कस्तूरबा गांधी विद्यालय में खादी और सूती कपड़े के मास्क बनाने का काम कर रही हैं. इनके हाथों का बना मास्क पंचायत में वितरण किया जाता है. इसके एवज में इन्हें पैसे भी दिया जाता है. कोरोना की लड़ाई में यहां की आदिवासी बेटियां खादी को बढ़ावा दे रही है. इसके साथ ही उन्हें काम भी मिल रहा है. जिस वजह से गांव की युवतियां खुद से आत्मनिर्भर हो रही हैं.

'गांव में ही मिल रहा रोजगार'
गौनाहा प्रखंड के भितिहारवा गांधी आश्रम के पास स्थित कस्तूरबा गांधी विद्यालय के प्रधानाचार्य दीपेंद्र बाजपेयी ने बताया कि गांव की आदिवासी लड़कियां को आत्मनिर्भर बनाने का काम चल रहा है. यहां की लड़कियां वैश्विक महामारी कोरोना में खादी और सूती कपड़े के मास्क बनाने का काम कर रही है. गांव की युवतियां सुबह से शाम तक मास्क बनाती है. इनके साथ बाहर से आए प्रवासियों को भी रोजगार दिया गया है. बाहर से आए प्रवासी भी मास्क बनाने का काम कर रहे हैं.

मास्क बना रही गांव की युवतियां
मास्क बना रही गांव की युवतियां

मास्क तैयार होने के बाद भेजा जाता है बाजार
मास्क तैयार होने के बाद इसे पहले पंचायत स्तर पर गांव में वितरण किया जाता है. जिसके बाद इसे मार्केट में बेचने के लिए भेजा जाता है. ताकि खादी को बढ़ावा मिले और खादी-सूती के कपड़ों का बना मास्क लोगों के बीच पहुंच सके. मास्क बनाने का काम शुरू होने के बाद गांव की लगभग एक हजार आदिवासी को लड़कियों को रोजगार मिल रहा है. लगभग 70 से अधिक मशीनों पर मास्क बनाने का काम चल रहा है. जो लड़कियां स्कूल तक नहीं पहुंच सकती. उन्हें मास्क के डिजाइन की कटिंग कर उनके घर तक पहुंचाया जाता है. ताकि वे घर बैठकर ही मास्क तैयार कर सके और उन्हें घर बैठे रोजगार मिल सके.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वैश्विक महामारी में मिला रोजगार
विद्यालय में मास्क बनाने की पहल शुरू होने के बाद गांव के युवतियों को इस वैश्विक महामारी में रोजगार मिला है. गांव की लड़कियां रोजगार पाने के बाद आत्मनिर्भर बन रही हैं. काम मिलने के बाद गांव में खुशी की लहर है. आदिवासी छात्रा कौशल्या कुमारी और सपना कुमारी बताती हैं कि इस संकट काल में उन्हें काम मिला है. मास्क बनाकर वे काफी खुश है. छात्राओं का कहना है कि मास्क बनाने के साथ-साथ वे गांव में वितरण कार्य भी करती है. वे लोगों को मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिग को लेकर जागरूक भी कर रही हैं.

तैयार खादी के मास्क
तैयार खादी के मास्क

सोशल डिस्टेंसिंग का करें पालन
गौरतलब है कि देशभर में अनलॉक 1.0 का आगाज हो चुका है. पूरे देश में लोगों को रियायत मिलनी शुरू हो गई है. बाजार खुलने शुरू हो चुकें हैं. इसको लेकर जिला प्रशासन भी लोगों को अनावश्यक घर से बाहर नहीं निकलने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने को लेकर लगातार जागरूक कर रही है. इस वैश्विक महामारी में हर आमोखास परेशान है. कई लोगों का रोजगार छिन चुका है. राज्य सरकार का भी उद्देश्य है कि सभी लोगों को प्रदेश में रोजगार से जोड़ा जाए.

बेतिया: गांधी की कर्मभूमि भितिहरवा की आदिवासी बेटियां खुद से अपनी तकदीर गढ़ कर आत्मनिर्भर बन रही है. दरअसल, गांव की आदिवासी युवतियां वैश्विक महामारी में कस्तूरबा गांधी विद्यालय में खादी और सूती कपड़े के मास्क बनाने का काम कर रही हैं. इनके हाथों का बना मास्क पंचायत में वितरण किया जाता है. इसके एवज में इन्हें पैसे भी दिया जाता है. कोरोना की लड़ाई में यहां की आदिवासी बेटियां खादी को बढ़ावा दे रही है. इसके साथ ही उन्हें काम भी मिल रहा है. जिस वजह से गांव की युवतियां खुद से आत्मनिर्भर हो रही हैं.

'गांव में ही मिल रहा रोजगार'
गौनाहा प्रखंड के भितिहारवा गांधी आश्रम के पास स्थित कस्तूरबा गांधी विद्यालय के प्रधानाचार्य दीपेंद्र बाजपेयी ने बताया कि गांव की आदिवासी लड़कियां को आत्मनिर्भर बनाने का काम चल रहा है. यहां की लड़कियां वैश्विक महामारी कोरोना में खादी और सूती कपड़े के मास्क बनाने का काम कर रही है. गांव की युवतियां सुबह से शाम तक मास्क बनाती है. इनके साथ बाहर से आए प्रवासियों को भी रोजगार दिया गया है. बाहर से आए प्रवासी भी मास्क बनाने का काम कर रहे हैं.

मास्क बना रही गांव की युवतियां
मास्क बना रही गांव की युवतियां

मास्क तैयार होने के बाद भेजा जाता है बाजार
मास्क तैयार होने के बाद इसे पहले पंचायत स्तर पर गांव में वितरण किया जाता है. जिसके बाद इसे मार्केट में बेचने के लिए भेजा जाता है. ताकि खादी को बढ़ावा मिले और खादी-सूती के कपड़ों का बना मास्क लोगों के बीच पहुंच सके. मास्क बनाने का काम शुरू होने के बाद गांव की लगभग एक हजार आदिवासी को लड़कियों को रोजगार मिल रहा है. लगभग 70 से अधिक मशीनों पर मास्क बनाने का काम चल रहा है. जो लड़कियां स्कूल तक नहीं पहुंच सकती. उन्हें मास्क के डिजाइन की कटिंग कर उनके घर तक पहुंचाया जाता है. ताकि वे घर बैठकर ही मास्क तैयार कर सके और उन्हें घर बैठे रोजगार मिल सके.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वैश्विक महामारी में मिला रोजगार
विद्यालय में मास्क बनाने की पहल शुरू होने के बाद गांव के युवतियों को इस वैश्विक महामारी में रोजगार मिला है. गांव की लड़कियां रोजगार पाने के बाद आत्मनिर्भर बन रही हैं. काम मिलने के बाद गांव में खुशी की लहर है. आदिवासी छात्रा कौशल्या कुमारी और सपना कुमारी बताती हैं कि इस संकट काल में उन्हें काम मिला है. मास्क बनाकर वे काफी खुश है. छात्राओं का कहना है कि मास्क बनाने के साथ-साथ वे गांव में वितरण कार्य भी करती है. वे लोगों को मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिग को लेकर जागरूक भी कर रही हैं.

तैयार खादी के मास्क
तैयार खादी के मास्क

सोशल डिस्टेंसिंग का करें पालन
गौरतलब है कि देशभर में अनलॉक 1.0 का आगाज हो चुका है. पूरे देश में लोगों को रियायत मिलनी शुरू हो गई है. बाजार खुलने शुरू हो चुकें हैं. इसको लेकर जिला प्रशासन भी लोगों को अनावश्यक घर से बाहर नहीं निकलने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने को लेकर लगातार जागरूक कर रही है. इस वैश्विक महामारी में हर आमोखास परेशान है. कई लोगों का रोजगार छिन चुका है. राज्य सरकार का भी उद्देश्य है कि सभी लोगों को प्रदेश में रोजगार से जोड़ा जाए.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.