पश्चिमी चंपारण: बगहा के बाढ़ ग्रस्त इलाकों के किसानों के लिए पोर्टेबल खेती वरदान साबित हो रही है. गंडक नदी किनारे बसे रजवटिया, चकदहवा और ठकराहां क्षेत्र में बाढ़ से प्रभावित हुए सैकड़ों किसान सब्जी की खेती कर अपनी किस्मत संवार रहे हैं. इन किसानों ने खेत में बाढ़ का पानी भरा होने के बावजूद मचान पर मिट्टी रख नर्सरी लगाया और अब खेती कर खब्जी पैदा कर रहे हैं.
पोर्टेबल खेती से बदल रही किसानों की किस्मत
गंडक नदी के किनारे बसा रजवटिया, चकदहवा और ठकराहां का इलाका प्रत्येक साल बाढ़ का दंश झेलता है. इससे सबसे ज्यादा प्रभावित किसान होते हैं. बाढ़ के पानी से खेतों में लगी फसल पूरी तरह तबाह हो जाती है. ऐसे में किसानों ने इस बार बाढ़ उत्थान से संबंधित कार्य करने वाली एक संस्था के सहयोग से पोर्टेबल खेती के गुर सीखे और अब इलाके के सैकड़ों किसान इस विधा से सब्जी की खेती कर अपनी किस्मत संवार रहे हैं. बाढ़ प्रभावित इलाके के इन किसानों ने मिर्च, बैगन, टमाटर, मूली और फ्रेंच बिन्स की खेती कर रहे हैं. इसमें अपेक्षाकृत लागत भी कम आती है.
मचान पर नर्सरी बनाकर करते हैं खेती
दरअसल बाढ़ ग्रस्त इलाकों में लंबे समय तक खेतों में पानी जमा रहता है. ऐसे में किसान खेती नहीं कर पाते हैं. इस बार किसानों ने विकल्प के तौर पर अंतर सीमा बाढ़ उत्थानशील परियोजना के सहयोग से खेतों में बांस-बल्ले की मदद मचान बनाया. फिर उसके ऊपर 4 से 5 सेंटीमीटर मिट्टी डालकर उसमें सब्जियों के पौधों की नर्सरी लगाई. जैसे ही बाढ़ का पानी खेतों से हटा. उन्होंने सब्जियों के पौधों की बुआई नर्सरी से हटाकर खेतों में कर दी. वहीं, कुछ सब्जियों की बिक्री भी कर लिए, जिससे लागत वापस आ गया.
सैकड़ों किसान कर रहे यह सफल प्रयोग
प्रत्येक साल बाढ़ की तबाही से मुसीबत झेल रहे सैकड़ों किसानों ने प्रशिक्षण प्राप्त कर सब्जी की खेती कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि यदि अंतर सीमा बाढ़ उत्थानशील परियोजना का सहयोग नहीं मिला होता तो हमलोग बाढ़ से हुए नुकसान से कभी उबर नहीं पाते. उन्होंने कहा कि इस पद्धति से खेती शुरू करने के बाद एक उम्मीद जगी है.
समय से पहले तैयार हो रही सीजनल सब्जियां
वहीं, परियोजना के को-ऑर्डिनेटर रवि मिश्रा ने कहा 'बाढ़ के कारण इलाके के किसान सिर्फ एक फसल(गन्ना) पर निर्भर थे. गन्ने की खेती में ज्दाया मुनाफा नहीं थी. हमलोगों ने यहां के किसानों से बात कर उन्हें पोर्टेबल खेती के लिए प्रेरित किया. बीज वगैरह भी उपलब्ध कराया. किसानों ने भी सहयोग किया. तब जा कर यह संभव हो पाया है. इस खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सीजनल सब्जियां समय से डेढ़ माह पहले ही बाजार में आ जाएंगी और उचित कीमत भी मिलेगी. ऐसे में किसानों में एक उम्मीद भी जगी है.'