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विकास के दावों की पोल खोल रहा चचरी पुल, लोग बोले- अधिकारी सुनते ही नहीं

पूर्वी चंपारण की सुगौली विधानसभा में बना चचरी पुल राजमाली पंचायत की पहचान बन गया है. यहां आज तक पक्का पुल या पुलिया नहीं बनी है.

चचरी का पुल
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Published : Apr 16, 2019, 6:39 PM IST

पश्चिमी चंपारण: पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र के सुगौली विधानसभा आज भी विकास से कोसों दूर है. यहां की राजमाली पंचायत तक जाने के लिए चचरी का बना पुल ही एक मात्र सहारा है. लोग अपनी जान जोखिम में डाल इस चचरी पुल से अवागमन करते हैं. कुल मिलाकर इस पंचायत में प्रवेश करते ही विकास के तमाम दावों की पोल ये चचरी पुल खोल देता है.

ये चचरी पुल राजमाली पंचायत की पहचान बन गया है. यहां आज तक पक्का पुल या पुलिया नहीं बनी है. आजादी के इतने दशक बीतने के बाद भी बांस से बनी चचरी पुल इस क्षेत्र के पिछड़ापन और विकास के दावों की पोल खोल रहा है. सुगौली प्रखंड से अगर किसी को राजमाली पंचायत जाना होता है, तो वह इस बांस से बने पुल को पार कर जाता है, ये लोगों की मजबूरी है.

समस्या बताते ग्रामीण

क्या कहते हैं लोग
स्थानीय लोगों की मानें, तो पहले लोग गांव में आने के लिए रेलवे ट्रैक का इस्तेमाल करते थे. लेकिन कई बार हादसा हो चुका है और इस हादसे में कई लोगों की जान भी जा चुकी है. इसको लेकर ग्रामीणों ने रेलवे से लेकर सांसद को पत्र लिखकर निर्माण करवाने की बात कही. मगर अब तक किसी ने भी उनकी फरियाद को नहीं सुनी. लिहाजा पंचायत के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर खुद बांस की चचरी का पुल बनवाया और अवागमन करने लगे.

बरसात में हालत खराब
बरसात के समय तो स्थिति और भी बदतर हो जाती है. स्थिति ऐसी है कि अगर एक भी चचरी कुछ गड़बड़ रही तो हजारों लोगों का आना-जाना दुर्लभ बन जाता है. गांव के लोगों को सुगौली बाजार जाना हो, तो उन्हें 10 किलोमीटर अतिरिक्त चक्कर लगा कर जाना पड़ता है. इस क्षेत्र की बदहाली का आलम यह है कि बांस की चचरी पर झूलते हुए जब कोई मोटरसाइकिल निकलती है तो लोगों में एक डर बन जाता है. वहीं, जरा सी चूक लोगों की जान जोखिम में डाल देती है.

पश्चिमी चंपारण: पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र के सुगौली विधानसभा आज भी विकास से कोसों दूर है. यहां की राजमाली पंचायत तक जाने के लिए चचरी का बना पुल ही एक मात्र सहारा है. लोग अपनी जान जोखिम में डाल इस चचरी पुल से अवागमन करते हैं. कुल मिलाकर इस पंचायत में प्रवेश करते ही विकास के तमाम दावों की पोल ये चचरी पुल खोल देता है.

ये चचरी पुल राजमाली पंचायत की पहचान बन गया है. यहां आज तक पक्का पुल या पुलिया नहीं बनी है. आजादी के इतने दशक बीतने के बाद भी बांस से बनी चचरी पुल इस क्षेत्र के पिछड़ापन और विकास के दावों की पोल खोल रहा है. सुगौली प्रखंड से अगर किसी को राजमाली पंचायत जाना होता है, तो वह इस बांस से बने पुल को पार कर जाता है, ये लोगों की मजबूरी है.

समस्या बताते ग्रामीण

क्या कहते हैं लोग
स्थानीय लोगों की मानें, तो पहले लोग गांव में आने के लिए रेलवे ट्रैक का इस्तेमाल करते थे. लेकिन कई बार हादसा हो चुका है और इस हादसे में कई लोगों की जान भी जा चुकी है. इसको लेकर ग्रामीणों ने रेलवे से लेकर सांसद को पत्र लिखकर निर्माण करवाने की बात कही. मगर अब तक किसी ने भी उनकी फरियाद को नहीं सुनी. लिहाजा पंचायत के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर खुद बांस की चचरी का पुल बनवाया और अवागमन करने लगे.

बरसात में हालत खराब
बरसात के समय तो स्थिति और भी बदतर हो जाती है. स्थिति ऐसी है कि अगर एक भी चचरी कुछ गड़बड़ रही तो हजारों लोगों का आना-जाना दुर्लभ बन जाता है. गांव के लोगों को सुगौली बाजार जाना हो, तो उन्हें 10 किलोमीटर अतिरिक्त चक्कर लगा कर जाना पड़ता है. इस क्षेत्र की बदहाली का आलम यह है कि बांस की चचरी पर झूलते हुए जब कोई मोटरसाइकिल निकलती है तो लोगों में एक डर बन जाता है. वहीं, जरा सी चूक लोगों की जान जोखिम में डाल देती है.

Intro:पश्चिमी चंपारण: विकास के दावों की पोल खोल रहा बांस की चचरी पुल। पुल- पुलिया के बदले बांस का चचरी ही आवागमन का बना सहारा ।


Body:पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र के सुगौली विधानसभा में आज भी राजमाली पंचायत जाने के लिए अगर कोई रास्ता है तो वह बांस की बनी यह चचरी का पुल ही है। बांस की बनी चचरी ही राजमाली पंचायत की पहचान बन कर रह गई है ।आजादी के इतने दशक बीतने के बाद भी बांस से बनी चचरी पुल इस क्षेत्र के पिछड़ापन और विकास के दावों की पोल खोल रहा है। सुगौली प्रखंड से अगर किसी को राजमाली पंचायत जानी है तो वह इस बांस से बनी पुल को पार करके ही जाएगा। स्थानीय लोगों की माने तो पहले लोग गांव में आने के लिए रेलवे ट्रैक का इस्तेमाल करते थे ,लेकिन कई बार हादसा हो चुका है और इस हादसे में कई लोगों की जान भी जा चुकी है । जिसको लेकर ग्रामीणों ने रेलवे से लेकर सांसद को पत्र लिखकर निर्माण करवाने की बात कही। लेकिन जब किसी ने उनकी नहीं सुनी तो पंचायत के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर खुद बांस की चचरी का पुल बनवाया।

बाइट- स्थानीय निवासी


Conclusion:बाढ़, बरसात के समय तो स्थिति और भी बदतर हो जाती है। स्थिति ऐसी है कि अगर एक भी चचरी कुछ गड़बड़ रही तो हजारों लोगों का आना-जाना दुर्लभ बन जाता है। गांव के लोगों को सुगौली बाजार जाना हो तो उन्हें 10 किलोमीटर अतिरिक्त चक्कर लगा कर जाना पड़ता है । इस क्षेत्र की बदहाली का आलम यह है कि बांस की चचरी पर झूलते हुए जब कोई मोटरसाइकिल निकलती है तो लोगों में एक डर बना होता है कि जरा सी चूक हुई तो नीचे नदी या गड्ढे में गिरकर गहराई में चले जाएंगे । जिसकी वजह से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
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