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बगहा: अर्थ और श्रम दान से बनाई गई पोखर ने बदल दी गांव की तस्वीर, यहां बह रही विकास की गंगा - Development is being done

नक्सल प्रभावित अति पिछड़ा इलाका होने की वजह से ढोलबजवा पंचायत के दर्जनों गांव विकास के कार्यों से अब भी कोसों दूर हैं. यही वजह है कि खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे ग्रामीणों ने गांव के विकास की जिम्मेदारी खुद उठा ली है. बता दें कि स्थानीय ग्रामीण आर्थिक और शारीरिक रूप से जनसहयोग कर गांव में विकास के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं.

बगहा
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Published : Mar 6, 2020, 1:37 PM IST

पश्चिम चंपारण: जिले के बगहा प्रखंड 2 के अंतर्गत ढोलबजवा पंचायत के हसनापुर गांव की सूरत महज एक पोखरे के निर्माण से बदल रही है. बता दें कि स्थानीय ग्रामीण कभी मवेशियों को नहलाने और कपड़ा धुलने जैसे कार्यों के लिए दूसरे गांव स्थित तालाब का रुख करते थें. वहीं, अब ग्रामीण श्रम और अर्थ दान से बनवाए गए पोखर की आमदनी से अन्य विकास का कार्य कर गांव का तस्वीर बदल रहे हैं.

बगहा
ग्रामीणों की ओर से बनाया गया पोखरा

अर्थदान और श्रम दान से हुआ पोखरे का निर्माण
नक्सल प्रभावित अति पिछड़ा इलाका होने की वजह से ढोलबजवा पंचायत के दर्जनों गांव विकास के कार्यों से अब भी कोसों दूर हैं. यही वजह है कि खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे ग्रामीणों ने गांव के विकास की जिम्मेदारी खुद उठा ली है. बता दें कि स्थानीय ग्रामीण आर्थिक और शारीरिक रूप से जनसहयोग कर गांव में विकास के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं. मामले में ग्रामीण रामप्रीत उरांव का कहना है कि एक ऐसा भी समय था जब उन्हें मवेशियों को पानी पिलाने, नहलाने और गांव वालों को कपड़ा धुलने के लिए कोसों दूर दूसरे गांव के पोखर पर जाना पड़ता था. जिसके कारण स्थानीय ग्रामीणों ने आपसी जनसहयोग से एक पोखरे का निर्माण करवाया.

ईटीवी की खास रिपोर्ट

मछली पालन की आमदनी से होता है विकास कार्य
जनसहयोग से बने पोखरे का उपयोग वैसे तो लोग पशुओं को नहलाने, कपड़ा धुलने और अन्य गृह कार्यों के लिए करते हैं. वहीं, साथ-साथ इसमें मछली पालन भी की जाती है. बता दें कि उसी आमदनी से गांव में अनेक विकास कार्यों का बुनियाद भी रखा जाता है. मामले में मुखिया नरेश उरांव का कहना है कि एक कमिटी बनाई गई है. जो यह निर्णय लेती है कि पोखरे से हुए आमदनी को किस विकास के मद में खर्च करना है.

बगहा
निर्माणाधीन सामुदायिक भवन

पोखरे की आमदनी से बन रहा सामुदायिक भवन
गौरतलब है कि सामुदायिक पोखरा के मछली पालन का उपयोग ग्रामीण विकास कार्यों में खर्च करते हैं. साथ ही गांव के प्रत्येक परिवार को साल में एक बार एक किलो मछली निशुल्क वितरित किया जाता है. अब ग्रामीण इसी पोखरे का मछली बेच उससे हुए आमदनी से सामुदायिक भवन बनवा रहे हैं. पूर्व जिला पार्षद राजेश उरांव का कहना है कि सरकार की उपेक्षा की वजह से ग्रामीण अपने विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सामुदायिक भवन का निर्माण अर्थ और श्रम दान से कर रहे हैं. जिसका उपयोग सार्वजनिक चौपाल और समारोह के मौके पर किया जाएगा.

पश्चिम चंपारण: जिले के बगहा प्रखंड 2 के अंतर्गत ढोलबजवा पंचायत के हसनापुर गांव की सूरत महज एक पोखरे के निर्माण से बदल रही है. बता दें कि स्थानीय ग्रामीण कभी मवेशियों को नहलाने और कपड़ा धुलने जैसे कार्यों के लिए दूसरे गांव स्थित तालाब का रुख करते थें. वहीं, अब ग्रामीण श्रम और अर्थ दान से बनवाए गए पोखर की आमदनी से अन्य विकास का कार्य कर गांव का तस्वीर बदल रहे हैं.

बगहा
ग्रामीणों की ओर से बनाया गया पोखरा

अर्थदान और श्रम दान से हुआ पोखरे का निर्माण
नक्सल प्रभावित अति पिछड़ा इलाका होने की वजह से ढोलबजवा पंचायत के दर्जनों गांव विकास के कार्यों से अब भी कोसों दूर हैं. यही वजह है कि खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे ग्रामीणों ने गांव के विकास की जिम्मेदारी खुद उठा ली है. बता दें कि स्थानीय ग्रामीण आर्थिक और शारीरिक रूप से जनसहयोग कर गांव में विकास के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं. मामले में ग्रामीण रामप्रीत उरांव का कहना है कि एक ऐसा भी समय था जब उन्हें मवेशियों को पानी पिलाने, नहलाने और गांव वालों को कपड़ा धुलने के लिए कोसों दूर दूसरे गांव के पोखर पर जाना पड़ता था. जिसके कारण स्थानीय ग्रामीणों ने आपसी जनसहयोग से एक पोखरे का निर्माण करवाया.

ईटीवी की खास रिपोर्ट

मछली पालन की आमदनी से होता है विकास कार्य
जनसहयोग से बने पोखरे का उपयोग वैसे तो लोग पशुओं को नहलाने, कपड़ा धुलने और अन्य गृह कार्यों के लिए करते हैं. वहीं, साथ-साथ इसमें मछली पालन भी की जाती है. बता दें कि उसी आमदनी से गांव में अनेक विकास कार्यों का बुनियाद भी रखा जाता है. मामले में मुखिया नरेश उरांव का कहना है कि एक कमिटी बनाई गई है. जो यह निर्णय लेती है कि पोखरे से हुए आमदनी को किस विकास के मद में खर्च करना है.

बगहा
निर्माणाधीन सामुदायिक भवन

पोखरे की आमदनी से बन रहा सामुदायिक भवन
गौरतलब है कि सामुदायिक पोखरा के मछली पालन का उपयोग ग्रामीण विकास कार्यों में खर्च करते हैं. साथ ही गांव के प्रत्येक परिवार को साल में एक बार एक किलो मछली निशुल्क वितरित किया जाता है. अब ग्रामीण इसी पोखरे का मछली बेच उससे हुए आमदनी से सामुदायिक भवन बनवा रहे हैं. पूर्व जिला पार्षद राजेश उरांव का कहना है कि सरकार की उपेक्षा की वजह से ग्रामीण अपने विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सामुदायिक भवन का निर्माण अर्थ और श्रम दान से कर रहे हैं. जिसका उपयोग सार्वजनिक चौपाल और समारोह के मौके पर किया जाएगा.

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