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मॉनसून से पहले कटावरोधी कार्यो पर प्रशासन का ढीला रवैया, दहशत में दियारा इलाकों के ग्रामीण

बगहा शहर ही गण्डक नदी के किनारे बसा है. ऐसे में बरसात जब अपने पूरे शबाब पर रहती है तो गण्डक नदी अपना विकराल रूप धारण कर लेती है.

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Published : Jun 7, 2019, 1:14 PM IST

कटाव

बेतियाः प्रदेश में बारिश शुरू होते ही हर साल बाढ़ का प्रकोप देखने को मिलता है. इस दौरान बूढ़ी गंडक के किनारे बसे बगहा शहर के लोग हर साल कटाव की विभीषिका झेलते हैं. ऐसे में मॉनसून से पहले प्रशासन के ढीले रवैये से कटावरोधी कार्यों की गति धीरे है.

बारिश से पहले प्रशासन दियारा क्षेत्रों में बाढ़ से बचाव के इंतजाम के दावे कर रही है. प्रशासन का कहना है कि मॉनसून से पहले कटाव रोधी कार्य पूरा किया जा रहा है. फिर भी हर साल की तरह यहां लोग भयभीत हैं, क्योंकि दावों के बीच हर साल यहां गण्डक की तबाही का मंजर देखने को मिलता है.

river
कटावरोधी काम में ढ़ील

रौद्र रूप की बलि चढ़ते हैं गांव
गन, गंडक और गन्ना तीनों से तबाह रहने वाले मिनी चम्बल के नाम से मशहूर पश्चिम चंपारण का बगहा भले ही गन की तबाही से उबर गया. इसके बाद मिनी चंबल की छवि भी लगभग मिट चूकी है, लेकिन आज भी यहां के लोग गन्ना और गण्डक की मार झेलने को मजबूर हैं. पूरा बगहा शहर ही गण्डक नदी के किनारे बसा है. ऐसे में बरसात जब अपने पूरे शबाब पर रहती है तो गण्डक नदी अपना विकराल रूप धारण कर लेती है. जिसमें दियारा और बगहा अनुमंडल समेत पश्चिम चंपारण के सैकड़ों गांवों जो गण्डक नदी के किनारे बसे हैं, वे इस नदी के रौद्र रूप की बलि चढ़ जाते हैं.

river
बूढ़ी गण्डक बांध

क्या कहते हैं अधिकारी
जल संसाधन विभाग के मुख्य अधीक्षक अभियंता नंदलाल झा का कहना है कि इस बार मॉनसून आने के पहले ही सरकार के निर्देशानुसार हरहा नदी के किनारे 400 मिटर तक पाइलिंग का कार्य कर लिया गया है. साथ ही बाढ़ से होने वाले कटाव और बाढ़ की चुनौतियों से निपटने के लिए मुक्कमल तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं.

उधर ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह के कटावविरोधी कार्य हर साल किए जाते हैं लेकिन बाढ़ में ये इलाका पूरा तबाह हो जाता है और उनकी समस्या जस की तस बनी रहती है.

इंतजाम के दावे

जब नदी का उफान मचाता है तबाही
गौरतलब हो कि जब बरसात का समय आता है तो नेपाल की नदियों से गण्डक में बहुत ज्यादा पानी छोड़ा जाता है. ऐसे में गण्डक नदी में कई दफा पानी का प्रवाह 4 लाख क्युसेक से ज्यादा हो जाता है. यही वजह है कि गण्डक नदी बरसात के दिनों में अपने उफान पर रहती है और विकराल रूप धारण कर लेती है.

बेतियाः प्रदेश में बारिश शुरू होते ही हर साल बाढ़ का प्रकोप देखने को मिलता है. इस दौरान बूढ़ी गंडक के किनारे बसे बगहा शहर के लोग हर साल कटाव की विभीषिका झेलते हैं. ऐसे में मॉनसून से पहले प्रशासन के ढीले रवैये से कटावरोधी कार्यों की गति धीरे है.

बारिश से पहले प्रशासन दियारा क्षेत्रों में बाढ़ से बचाव के इंतजाम के दावे कर रही है. प्रशासन का कहना है कि मॉनसून से पहले कटाव रोधी कार्य पूरा किया जा रहा है. फिर भी हर साल की तरह यहां लोग भयभीत हैं, क्योंकि दावों के बीच हर साल यहां गण्डक की तबाही का मंजर देखने को मिलता है.

river
कटावरोधी काम में ढ़ील

रौद्र रूप की बलि चढ़ते हैं गांव
गन, गंडक और गन्ना तीनों से तबाह रहने वाले मिनी चम्बल के नाम से मशहूर पश्चिम चंपारण का बगहा भले ही गन की तबाही से उबर गया. इसके बाद मिनी चंबल की छवि भी लगभग मिट चूकी है, लेकिन आज भी यहां के लोग गन्ना और गण्डक की मार झेलने को मजबूर हैं. पूरा बगहा शहर ही गण्डक नदी के किनारे बसा है. ऐसे में बरसात जब अपने पूरे शबाब पर रहती है तो गण्डक नदी अपना विकराल रूप धारण कर लेती है. जिसमें दियारा और बगहा अनुमंडल समेत पश्चिम चंपारण के सैकड़ों गांवों जो गण्डक नदी के किनारे बसे हैं, वे इस नदी के रौद्र रूप की बलि चढ़ जाते हैं.

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बूढ़ी गण्डक बांध

क्या कहते हैं अधिकारी
जल संसाधन विभाग के मुख्य अधीक्षक अभियंता नंदलाल झा का कहना है कि इस बार मॉनसून आने के पहले ही सरकार के निर्देशानुसार हरहा नदी के किनारे 400 मिटर तक पाइलिंग का कार्य कर लिया गया है. साथ ही बाढ़ से होने वाले कटाव और बाढ़ की चुनौतियों से निपटने के लिए मुक्कमल तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं.

उधर ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह के कटावविरोधी कार्य हर साल किए जाते हैं लेकिन बाढ़ में ये इलाका पूरा तबाह हो जाता है और उनकी समस्या जस की तस बनी रहती है.

इंतजाम के दावे

जब नदी का उफान मचाता है तबाही
गौरतलब हो कि जब बरसात का समय आता है तो नेपाल की नदियों से गण्डक में बहुत ज्यादा पानी छोड़ा जाता है. ऐसे में गण्डक नदी में कई दफा पानी का प्रवाह 4 लाख क्युसेक से ज्यादा हो जाता है. यही वजह है कि गण्डक नदी बरसात के दिनों में अपने उफान पर रहती है और विकराल रूप धारण कर लेती है.

Intro:बूढ़ी गण्डक के किनारे बसे बगहा शहर के लोग प्रत्येक साल बाद कि विभीषिका झेलते हैं । ऐसे में प्रशासन इस मर्तबा मॉनसून के दस्तक देने से पूर्व ही बाढ़ कटावरोधी कार्यों को अमलीजामा पहना निश्चिन्त है। प्रशासन के इन दावों के बावजूद गण्डक के किनारे बसे लोग बाढ़ कटाव की कल्पना से भयभीत हैं। उनका मानना है कि सरकार प्रत्येक साल बाढ़ निरोधी कार्य करवाती है फिर भी कटाव नही रोक पाती।


Body:गन, गण्डक और गन्ना तीनों से तबाह रहने वाले मिनी चम्बल के नाम से मशहूर पश्चिम चंपारण का बगहा पुलिस जिला भले ही गन की तबाही से उबर गया हो और मिनी चम्बल की छाप हट चुकी हो लेकिन आज भी यहाँ के लोग गन्ना और गण्डक की मार झेलने को मजबूर हैं। पूरा बगहा शहर ही गण्डक नदी के किनारे बसा है, ऐसे में बरसात जब अपने पूरे सबाब पर रहता है तो गण्डक नदी अपना विकराल रूप धारण कर लेती है। प्रत्येक वर्ष दियारा व बगहा अनुमंडल सहित पश्चिम चंपारण के सैकड़ो गांव जो गण्डक नदी के किनारे बसे हैं वो इस नदी के रौद्र रूप की बलि चढ़ जाती है। बाढ़ का कहर व कटाव झेलना दियारावासियों की नियति बन गई है।
हालांकि जल संसाधन विभाग के मुख्य अधीक्षण अभियंता नंदलाल झा की मानें तो इस बार मॉनसून आने के पूर्व ही सरकार के निर्देशानुसार हरहा नदी के किनारे 400 मिटर तक पाइलिंग का कार्य कर लिया गया है। साथ ही बाढ़ से होने वाले कटाव व बाढ़ की चुनौतियों से निपटने के लिए मुक्कमल तैयारियां पूरी कर ली गईं है।
बाइट- जल संसाधन विभाग, मुख्य अधीक्षण अभियंता ,नंदलाल झा
वहीं ग्रामीणों की मानें तो हर साल सरकार द्वारा कटावनिरोधी कार्य कराए जाते हैं लेकिन वो किसी काम का नही रहता और उनकी समस्या जस की तस बरकरार रहती है। जब बाढ़ आता है तो कटाव के भय से उन्हें उच्चे स्थानों पर शरण लेना पड़ता है।
बाइट- रामाकांत , ग्रामीण 1। बिकाऊ ग्रामीण 2


Conclusion:गौरतलब हो कि जब बरसात का समय आता है तो नेपाल की नदियों से गण्डक में बहुत ज्यादा पानी छोड़ा जाता है , ऐसे में गण्डक नदी में कई दफा पानी का फ्लो 4 लाख क्युसेक से ज्यादा हो जाता है। यही वजह है कि गण्डक नदी बरसात के दिनों में अपने उफान पर रहती है और विकराल रूप धारण कर लेती है। और नदी के किनारे बसे लोग बाढ़ की विभीषिका से डरे सहमे रहते हैं।
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