ETV Bharat / state

युगों से धार्मिक महत्व को संजोये है बांसी नदी, सरकारी उदासीनता से अब नाले में हो रहा तब्दील - पश्चिम चंपारण

ऐसी मान्यता है कि मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र ऋषि और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बांसी नदी के तट पर विश्राम किया था. यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इस नदी में बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल से लाखों श्रद्धालु इस नदी में डुबकी लगाने आते हैं.

खतरे में बांसी नदी का अस्तित्व
author img

By

Published : Sep 7, 2019, 12:23 PM IST

पश्चिम चंपारणः बिहार और उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित बांसी नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है. कई धार्मिक महत्वों को खुद में समेटे यह नदी अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है. इस नदी को मोक्षदायिनी नदी की श्रेणी में गिना जाता है. लेकिन अब यह एक नाले का रूप लेती जा रही है. साथ ही इसमें कचड़ा जमा होने से इसका जलस्तर भी कम होता जा रहा है.

हिमालय की पहाड़ियों से निकली बांसी नदी
नेपाल स्थित हिमालय की पहाड़ियों से निकली बांसी नदी बिहार के पिपरा-पिपरासी और मधुबनी प्रखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के खिरकिया, पडरौना होते हुए पिपराघाट स्थित नारायणी में मिल जाती है. इस नदी के महत्व का गुण गान लोग करते हुए कहते हैं कि 'सौ काशी, एक बांसी' यानी आप सौ बार काशी में स्नान करते हैं और महज एक बार बांसी स्नान कर लिए तो दोनों का एक बराबर महत्व है.

Bansi river
सरकार नहीं देती बांसी नदी की साफ-सफाई पर ध्यान

नदी का कम हो रहा जलस्तर
इसके बावजूद इस नदी के जीर्णोद्धार और साफ सफाई के प्रति सरकार की उदासीनता ने इसके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है. यह चौड़ी नदी सिमटकर अब एक नाले का रूप लेती जा रही है. जलकुंभी और कचरा जमा होने से इसमें जलस्तर कम होता जा रहा है. बता दें कि इस नदी को पौराणिक महत्वों की नजर से भी देखा जाता है.

खतरे में बांसी नदी का अस्तित्व

नदी की साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देती सरकार
ऐसी मान्यता है कि मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र ऋषि और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बांसी नदी के तट पर विश्राम किया था. यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इस नदी में बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल से लाखों श्रद्धालु इस नदी में डुबकी लगाने आते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों तरफ की सरकारें और प्रशासन इसकी साफ सफाई और जीर्णोद्धार पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती. स्थानीय लोग ही कार्तिक पूर्णिमा और माघ मेला के समय चंदा इकट्ठा कर साफ-सफाई करते हैं.

पश्चिम चंपारणः बिहार और उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित बांसी नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है. कई धार्मिक महत्वों को खुद में समेटे यह नदी अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है. इस नदी को मोक्षदायिनी नदी की श्रेणी में गिना जाता है. लेकिन अब यह एक नाले का रूप लेती जा रही है. साथ ही इसमें कचड़ा जमा होने से इसका जलस्तर भी कम होता जा रहा है.

हिमालय की पहाड़ियों से निकली बांसी नदी
नेपाल स्थित हिमालय की पहाड़ियों से निकली बांसी नदी बिहार के पिपरा-पिपरासी और मधुबनी प्रखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के खिरकिया, पडरौना होते हुए पिपराघाट स्थित नारायणी में मिल जाती है. इस नदी के महत्व का गुण गान लोग करते हुए कहते हैं कि 'सौ काशी, एक बांसी' यानी आप सौ बार काशी में स्नान करते हैं और महज एक बार बांसी स्नान कर लिए तो दोनों का एक बराबर महत्व है.

Bansi river
सरकार नहीं देती बांसी नदी की साफ-सफाई पर ध्यान

नदी का कम हो रहा जलस्तर
इसके बावजूद इस नदी के जीर्णोद्धार और साफ सफाई के प्रति सरकार की उदासीनता ने इसके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है. यह चौड़ी नदी सिमटकर अब एक नाले का रूप लेती जा रही है. जलकुंभी और कचरा जमा होने से इसमें जलस्तर कम होता जा रहा है. बता दें कि इस नदी को पौराणिक महत्वों की नजर से भी देखा जाता है.

खतरे में बांसी नदी का अस्तित्व

नदी की साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देती सरकार
ऐसी मान्यता है कि मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र ऋषि और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बांसी नदी के तट पर विश्राम किया था. यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इस नदी में बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल से लाखों श्रद्धालु इस नदी में डुबकी लगाने आते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों तरफ की सरकारें और प्रशासन इसकी साफ सफाई और जीर्णोद्धार पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती. स्थानीय लोग ही कार्तिक पूर्णिमा और माघ मेला के समय चंदा इकट्ठा कर साफ-सफाई करते हैं.

Intro:बिहार उत्तरप्रदेश सीमा पर अवस्थित बांसी नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। सरकारी उदासीनता का आलम यह है कि कई धार्मिक महत्वों को खुद में समेटे यह नदी अपने बदहाली पर आँसू बहाने को मजबूर है। इस नदी को मोक्षदायिनी नदी के श्रेणी में गिना जाता है लेकिन अब यह एक नाले का रूप लेती जा रही है साथ ही इसमें कचड़ा जमा होने से इसका जलस्तर भी कम होते जा रहा।


Body:नेपाल स्थित हिमालय की पहाड़ियों से निकली बांसी नदी बिहार के पिपरा-पिपरासी और मधुबनी प्रखंड के साथ साथ उत्तरप्रदेश के खिरकिया पडरौना होते हुए सेवरही के शिवाघाट से आगे पिपराघाट स्थित नारायणी में मिल जाती है। इस नदी के महत्व का गुण गान लोग करते हुए कहते हैं कि "सौ काशी नहीं, एक बांसी"। यानी यदि आप सौ बार काशी में स्नान करते हैं और महज एक बार बांसी स्नान कर लिए तो दोनों का बराबर का महत्व है। बावजूद इसके इस नदी के जीर्णोद्धार और साफ सफाई के प्रति सरकार की उदासीनता ने इसके अस्तित्व पर संकट ला खड़ा किया है। यह चौड़ी नदी अब सिमटकर एक नाले का रूप लेती जा रही। जलकुंभी व कचड़ा जमा होने से इसमें का जलस्तर कम होते जा रहा। वह दिन दूर नही जब इसका पानी पूरी तरह सूखने के कगार पर पहुच जाए। बता दें कि इस नदी को पौराणिक महत्वों की नजर से भी देखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र ऋषि और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बांसी नदी के तट पर विश्राम किया था। यहीं वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इस नदी में बिहार-उत्तरप्रदेश सहित नेपाल से लाखों श्रद्धालु इस नदी में डुबकी लगाने आते हैं। लेकिन गन्दे नाले में ही नहाना पड़ता। स्थानीय लोगो का कहना है कि बिहार और उत्तरप्रदेश दोनो तरफ की सरकारें और प्रशासन इसके साफ सफाई और जीर्णोद्धार पर बिल्कुल ध्यान नही देती। स्थानीय लोग ही कार्तिक पूर्णिमा व माघ मेला के समय चंदा इकठा कर साफ सफाई करते हैं। बाइट-1 सुरेश प्रसाद, स्थानीय। बाइट- 2 कृष्ण कांत , स्थानीय। p2c - दिलीप कुमार गुप्ता, संवाददाता।


Conclusion:नदियों के साफ सफाई और उसके नवजीवन प्रदान करने को लेकर सरकार तमाम योजनाएं चला रही हैं , ऐसे में त्रेता युग से जुड़े धार्मिक व पौरणिक महत्व रखने वाले इस नदी के प्रति सरकार की उदासीनता इसके अस्तित्व को खतरे में ला खड़ा किया है।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.