पश्चिम चंपारणः बिहार और उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित बांसी नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है. कई धार्मिक महत्वों को खुद में समेटे यह नदी अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है. इस नदी को मोक्षदायिनी नदी की श्रेणी में गिना जाता है. लेकिन अब यह एक नाले का रूप लेती जा रही है. साथ ही इसमें कचड़ा जमा होने से इसका जलस्तर भी कम होता जा रहा है.
हिमालय की पहाड़ियों से निकली बांसी नदी
नेपाल स्थित हिमालय की पहाड़ियों से निकली बांसी नदी बिहार के पिपरा-पिपरासी और मधुबनी प्रखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के खिरकिया, पडरौना होते हुए पिपराघाट स्थित नारायणी में मिल जाती है. इस नदी के महत्व का गुण गान लोग करते हुए कहते हैं कि 'सौ काशी, एक बांसी' यानी आप सौ बार काशी में स्नान करते हैं और महज एक बार बांसी स्नान कर लिए तो दोनों का एक बराबर महत्व है.
नदी का कम हो रहा जलस्तर
इसके बावजूद इस नदी के जीर्णोद्धार और साफ सफाई के प्रति सरकार की उदासीनता ने इसके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है. यह चौड़ी नदी सिमटकर अब एक नाले का रूप लेती जा रही है. जलकुंभी और कचरा जमा होने से इसमें जलस्तर कम होता जा रहा है. बता दें कि इस नदी को पौराणिक महत्वों की नजर से भी देखा जाता है.
नदी की साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देती सरकार
ऐसी मान्यता है कि मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र ऋषि और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बांसी नदी के तट पर विश्राम किया था. यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इस नदी में बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल से लाखों श्रद्धालु इस नदी में डुबकी लगाने आते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों तरफ की सरकारें और प्रशासन इसकी साफ सफाई और जीर्णोद्धार पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती. स्थानीय लोग ही कार्तिक पूर्णिमा और माघ मेला के समय चंदा इकट्ठा कर साफ-सफाई करते हैं.