वैशाली: बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न (sexual harassment of girls in Vashali) के मामले को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. देश में महिला उत्पीड़न और बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न को लेकर कई तरह के सख्त कानून बनाए गए. निर्भया कांड के बाद तो कानून इतने सख्त बनाए गए कि लगा अब महिला उत्पीड़न के मामले में बड़े पैमाने पर कमी आएगी. लेकिन आज भी बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामले लगातार सामने आ रहे हैं.
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लगातार आ रहे महिला उत्पीड़न के मामले: इन्हीं सभी विषयों पर ईटीवी भारत ने प्रसिद्ध समाजसेवी सुधीर शुक्ला से बातचीत की. उन्होंने जो बताया वह बेहद चौंकाने वाले तथ्य हैं. उन्होंने बताया कि देश के अंदर आवश्यकता के अनुसार कानून बनाए जाते हैं और इसमें जो परिस्थितियां होती है उसके अनुसार कानून में बदलाव किए जाते हैं. शुरुआती दौर में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट आया लेकिन फिर लगा कि इसमें और मजबूती चाहिए तो 2012 में पॉक्सो कानून लाया गया ताकि देश के अंदर यौन अत्याचार के मामले कम हो. इसलिए सख्त कानून लाया गया.
निर्भया कांड के बाद पॉक्सो कानून मजबूत: लड़कियों को यौन अत्याचार से बचाया जा सके इसके लिए निर्भया कांड के बाद कानून को और भी मजबूत किया गया. सजा के भी सख्त प्रावधान किए गए. लेकिन जमीनी स्तर पर कानून के लागू होने की बात उतनी कारगर साबित नहीं हो पा रही है. सुधीर शुक्ला ने आगे बताया कि कानून बना है, लेकिन जो कानून को इंप्लीमेंट करवाना है. वहीं थोड़ी सी चूक हो रही है. हमको काफी मजबूती के साथ चीजों को आगे लेकर जाना होगा.
समाजसेवी सुधीर शुक्ला ने बताया निदान: उन्होंने बताया कि स्पीडी ट्रायल के माध्यम से लोग अगर सजा नहीं दिलवा पाएंगे तो समाज में भय नहीं होगा. इसलिए कनविक्शन रेट को बढ़ाना होगा. उन्होंने कहा कि जो न्यायिक व्यवस्था है उसमें आगे चलाने में सबकी जिम्मेदारी होती है. पुलिस डिपार्टमेंट, हेल्थ डिपार्टमेंट, सोशल एक्टिविस्ट की भी जिम्मेवारी है. प्रत्येक स्टेज पर लोगों को मजबूती से काम करना पड़ेगा. इसके साथ ही विक्टिम का काउंसलिंग भी करना होगा. कई मामले में विक्टिम होस्टाइल हो जाते हैं या समाज का एक दबाव पड़ता है.
कई जगहों से आते हैं मामले: बच्चों के साथ यौन अत्याचार के बड़े मामले देश के कोने-कोने से सामने आते हैं. कई बार इसको लेकर संसद का भी माहौल गर्म होता है. कानून भी सख्त बनाए जाते हैं. बच्चियों को न्याय दिलवाने और अपराधियों पर नकेल कसने की बात भी की जाती है. लेकिन जो जमीनी सच है वह आज भी कहीं ना कहीं चीख-चीख कर कह रहा है कि जमीनी स्तर पर बड़े पैमाने में काम करने की सख्त जरूरत है.
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