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वैशाली के इस गांव में नहीं पीता कोई शराब, खैनी-गुटखा को भी हाथ नहीं लगाते लोग - etv bharat news

एक तरफ बिहार के सारण जिले में हुए जहरीली शराब से मौत का मामला देश में सरकार की किरकिरी करा रहा है, तो वहीं बिहार के ही वैशाली जिले का एक गांव शराबबंदी कानून (liquor ban in bihar) की मिसाल बन गया है. इस गांव के लोगों ने सदियों से शराब को हाथ तक नहीं लगाया है. दारू तो क्या यहां के लोग गुटखा और खैनी तक नहीं खाते. जिससे इनका स्वास्थ काफी अच्छा है. कोरोना महामारी के दौर में भी यहां लोग बीमार नहीं हुए.

हहारो कुशवाहा टोला
हहारो कुशवाहा टोला
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Published : Dec 19, 2022, 12:28 PM IST

वैशाली का ऐसा गांव जहां कोई शराब नहीं पीता

वैशालीः बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) का सपना है कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी हो. उन्होंने कई बार अपने भाषण में कहा है कि वह सभी प्रकार के नशा के बिलकुल खिलाफ हैं. लेकिन बिहार में शराबबंदी कितनी सफल है, इसकी जमीनी हकिकत क्या है यह सभी जानते हैं , लेकिन शायद ही लोगों को पता होगा कि बिहार के वैशाली में एक ऐसा भी गांव है जहां का कोई भी व्यक्ति (people not drink alcohol in Kushwaha Tola) ना तो नशा करता है और ना ही मांसाहार. ग्रामीणों का दावा है कि यहां के लोग बीमार भी कम पड़ते हैं और मुकदमे भी ना के बराबर होते हैं. छोटे-मोटे मामले गांव में सुलझा दिए जाते हैं. एक ऐसा गांव जहाँ शराब ही क्या किसी भी तरह का नशा करना अपराध माना जाता है.

ये भी पढ़ेंः बिहार के इस गांव में नहीं है एक भी मंदिर, जिसने भी मंदिर बनवाया हो गई मौत!

गांव में नशा करना अपराध से कम नहींः हम बात कर रहें है वैशाली प्रखंड क्षेत्र स्थित हहारो कुशवाहा टोला (Kushwaha Tola of vaishali in Bihar) की जिसकी आबादी भले ही काम है लेकिन यहां के लोगों की सोंच लाखों करोड़ों लोगोंं के लिए एक सबक है. यहां करीब 60 घरों में 500 सौ के लगभग लोग रहते हैं. गांव के लोग बताते हैं कि पूर्वजों के समय से ही इस गांव के लोग शाकाहारी हैं और आधुनिकता के इस दौर में भी किसी तरह का नशा करते. इस गांव के लोगों के लिए नशा करना किसी अपराध से कम नहीं है. तभी तो गांव में चल रही किसी दुकान में शराब तो दूर पान मसाला या गुटखा तक नहीं बिकता है. और तो और इस गांव की खूबी को देख कर अब आस पास के गांव के लोग भी नशामुक्ति की तरफ कदम बढ़ाने लगे है और गांव से सिख लेकर मांस मदिरा से दूरी बनाने लगे हैं.

कोरोना महामारी में भी बीमार नहीं पड़े लोगः माना जाता है कि नशा करने से कई तरह की बीमारी होती है, लेकिन कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में भी इस गांव में ना तो कोई बीमार हुई और ना ही किसी की जान गई. इतना ही नहीं यहां के लोगों को शायद ही कभी थाना पुलिस का चक्कर लगाना पड़ता है, क्योंकि बड़े बड़े विवाद यहां होते नहीं है और कुछ छोटे मोटे विवाद होते भी हैं तो गांव वाले मिल बैठकर उसे सुलझा लेते है. स्थानीय बैजनाथ भगत बताते हैं कि शाकाहारी होने का मुख्य फायदा यह है कि जो कोविड के समय में भी हमारे यहां कोई भी आदमी पॉजिटिव नहीं हुआ है बाहर से भी जो लोग आए हैं उन्हें भी किसी तरह की परेशानी नहीं हुई है. हम लोग स्वस्थ हैं और कोई भयानक बीमारी यहां नहीं होती.

"शाकाहारी होने का मुख्य फायदा है कि जो करोना काल बीता है इसमें हमारे यहां कोई भी आदमी पॉजिटिव नहीं हुआ है. बाहर से भी लोग आए हैं तो किसी तरह का कोई परेशानी नहीं हुआ है. हम लोग स्वस्थ हैं अच्छा है कोई भयानक बीमारी यहां नहीं है. हमारे समाज में किसी को कोई बड़ा रोग वगैरह ऐसा कुछ नहीं होता है. इसलिए हम लोग चाहते हैं कि लोग स्वस्थ रहें क्योंकि शाकाहारी होने का यह फायदा है. इसके अनुसार अगर लोग चलेंगे तो स्वस्थ रहेंगे. भयानक बीमारी नहीं होगा" - बैद्यनाथ भगत, स्थानीय

वहीं, स्थानी रामासागर भगत का कहना है कि इसी गांव में हमारा घर है हम आर्मी से रिटायर हैं, लेकिन फौज में रहते हुए भी मैंने कभी शराब नहीं पी. जिस दिन लोग मांसाहार करते थे उस दिन मैं दूध पीता था. हमारे परिवार में कोई खैनी तक नहीं खाता है. गांव के ही एक और ब्रह्मदेव भगत का कहना है कि यहां करीब 60 घरों में 500 लोग रहते हैं यह बस्ती पूर्णरूपेण शाकाहारी है यहां कोई भी नशा का सेवन नहीं करता है हम लोगों का ऐसा विचार है कि लोग नशा नहीं करें. यहां 4 दुकानें हैं लेकिन किसी भी दुकान में पान पुरीया या नशा का कोई भी सामान नहीं मिलता है. यह कोई विवाद ही अगर होता है तो हम लोग बैठकर आपस में सुलझा लेते हैं.

"इसी गांव में हमारा घर हुआ हम आर्मी से रिटायर हैं. 3 साल नौकरी के बाद मेडिकल कारणों से आ गए फौज में भी रहे तो हम लोगों को शराब मिलती थी फिर भी हम लोग शराब नहीं पीते थे. वहां मांसाहारी खाना मिलता था लेकिन हम लोग मांसाहारी नहीं खाते थे हम लोग शाकाहारी खीर और दूध लेते थे. यहां भी आए तो हमने कभी इन सब चीजों को नहीं लिया. हमारे परिवार में खैनी तक कोई नहीं खाता है. हमारे टोला में कुछ लोग खैनी खाते थे वह भी छोड़ दिए. यहां पर पान गुटका का दुकान ही नहीं है". रामसागर भगत-स्थानीय

बकरी और मुर्गा नहीं पालते लोगः गांव के सरपंच पति ब्रह्मदेव भगत बताते हैं कि यहां करीब 60 घरों में 500 लोग रहते हैं. यह बस्ती पूर्णरूपेण शाकाहारी है. यहां कोई भी नशा सेवन नहीं करता है. हम लोग सभी लोगों का ऐसा विचार देते हैं कि लोग नशा नहीं करें. यहां चार दुकानें हैं छोटी-छोटी लेकिन किसी भी दुकान में कोई पान पुड़िया या किसी तरह का नशा सेवन की व्यवस्था नहीं है. इसके लिए हम लोग लोगों को समझा-बुझाकर ऐसा बताए हुए हैं कि नहीं बेचना है और कोई लेता भी नहीं है. यह सब शाकाहारी है कई पीढ़ियों से हम देखते आ रहे हैं. कुछ लोग पहले बकरी, मुर्गा पालते थे फिर हम लोगों ने उनको प्रभावित किया तो करीब 20 वर्षों से इस बस्ती में न तो कोई बकरी पालता है ना तो कोई मुर्गा पालता है. और कोई मांस मदिरा या नशा किसी भी तरह का नहीं करता है पूर्णता शाकाहारी है. इसका दूरगामी परिणाम है कि यहां कोई केस मुकदमा भी नहीं होता है कोई विवाद हुआ भी तो हम लोग बैठकर आपस में सुलझा लेते हैं.

वैशाली का ऐसा गांव जहां कोई शराब नहीं पीता

वैशालीः बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) का सपना है कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी हो. उन्होंने कई बार अपने भाषण में कहा है कि वह सभी प्रकार के नशा के बिलकुल खिलाफ हैं. लेकिन बिहार में शराबबंदी कितनी सफल है, इसकी जमीनी हकिकत क्या है यह सभी जानते हैं , लेकिन शायद ही लोगों को पता होगा कि बिहार के वैशाली में एक ऐसा भी गांव है जहां का कोई भी व्यक्ति (people not drink alcohol in Kushwaha Tola) ना तो नशा करता है और ना ही मांसाहार. ग्रामीणों का दावा है कि यहां के लोग बीमार भी कम पड़ते हैं और मुकदमे भी ना के बराबर होते हैं. छोटे-मोटे मामले गांव में सुलझा दिए जाते हैं. एक ऐसा गांव जहाँ शराब ही क्या किसी भी तरह का नशा करना अपराध माना जाता है.

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गांव में नशा करना अपराध से कम नहींः हम बात कर रहें है वैशाली प्रखंड क्षेत्र स्थित हहारो कुशवाहा टोला (Kushwaha Tola of vaishali in Bihar) की जिसकी आबादी भले ही काम है लेकिन यहां के लोगों की सोंच लाखों करोड़ों लोगोंं के लिए एक सबक है. यहां करीब 60 घरों में 500 सौ के लगभग लोग रहते हैं. गांव के लोग बताते हैं कि पूर्वजों के समय से ही इस गांव के लोग शाकाहारी हैं और आधुनिकता के इस दौर में भी किसी तरह का नशा करते. इस गांव के लोगों के लिए नशा करना किसी अपराध से कम नहीं है. तभी तो गांव में चल रही किसी दुकान में शराब तो दूर पान मसाला या गुटखा तक नहीं बिकता है. और तो और इस गांव की खूबी को देख कर अब आस पास के गांव के लोग भी नशामुक्ति की तरफ कदम बढ़ाने लगे है और गांव से सिख लेकर मांस मदिरा से दूरी बनाने लगे हैं.

कोरोना महामारी में भी बीमार नहीं पड़े लोगः माना जाता है कि नशा करने से कई तरह की बीमारी होती है, लेकिन कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में भी इस गांव में ना तो कोई बीमार हुई और ना ही किसी की जान गई. इतना ही नहीं यहां के लोगों को शायद ही कभी थाना पुलिस का चक्कर लगाना पड़ता है, क्योंकि बड़े बड़े विवाद यहां होते नहीं है और कुछ छोटे मोटे विवाद होते भी हैं तो गांव वाले मिल बैठकर उसे सुलझा लेते है. स्थानीय बैजनाथ भगत बताते हैं कि शाकाहारी होने का मुख्य फायदा यह है कि जो कोविड के समय में भी हमारे यहां कोई भी आदमी पॉजिटिव नहीं हुआ है बाहर से भी जो लोग आए हैं उन्हें भी किसी तरह की परेशानी नहीं हुई है. हम लोग स्वस्थ हैं और कोई भयानक बीमारी यहां नहीं होती.

"शाकाहारी होने का मुख्य फायदा है कि जो करोना काल बीता है इसमें हमारे यहां कोई भी आदमी पॉजिटिव नहीं हुआ है. बाहर से भी लोग आए हैं तो किसी तरह का कोई परेशानी नहीं हुआ है. हम लोग स्वस्थ हैं अच्छा है कोई भयानक बीमारी यहां नहीं है. हमारे समाज में किसी को कोई बड़ा रोग वगैरह ऐसा कुछ नहीं होता है. इसलिए हम लोग चाहते हैं कि लोग स्वस्थ रहें क्योंकि शाकाहारी होने का यह फायदा है. इसके अनुसार अगर लोग चलेंगे तो स्वस्थ रहेंगे. भयानक बीमारी नहीं होगा" - बैद्यनाथ भगत, स्थानीय

वहीं, स्थानी रामासागर भगत का कहना है कि इसी गांव में हमारा घर है हम आर्मी से रिटायर हैं, लेकिन फौज में रहते हुए भी मैंने कभी शराब नहीं पी. जिस दिन लोग मांसाहार करते थे उस दिन मैं दूध पीता था. हमारे परिवार में कोई खैनी तक नहीं खाता है. गांव के ही एक और ब्रह्मदेव भगत का कहना है कि यहां करीब 60 घरों में 500 लोग रहते हैं यह बस्ती पूर्णरूपेण शाकाहारी है यहां कोई भी नशा का सेवन नहीं करता है हम लोगों का ऐसा विचार है कि लोग नशा नहीं करें. यहां 4 दुकानें हैं लेकिन किसी भी दुकान में पान पुरीया या नशा का कोई भी सामान नहीं मिलता है. यह कोई विवाद ही अगर होता है तो हम लोग बैठकर आपस में सुलझा लेते हैं.

"इसी गांव में हमारा घर हुआ हम आर्मी से रिटायर हैं. 3 साल नौकरी के बाद मेडिकल कारणों से आ गए फौज में भी रहे तो हम लोगों को शराब मिलती थी फिर भी हम लोग शराब नहीं पीते थे. वहां मांसाहारी खाना मिलता था लेकिन हम लोग मांसाहारी नहीं खाते थे हम लोग शाकाहारी खीर और दूध लेते थे. यहां भी आए तो हमने कभी इन सब चीजों को नहीं लिया. हमारे परिवार में खैनी तक कोई नहीं खाता है. हमारे टोला में कुछ लोग खैनी खाते थे वह भी छोड़ दिए. यहां पर पान गुटका का दुकान ही नहीं है". रामसागर भगत-स्थानीय

बकरी और मुर्गा नहीं पालते लोगः गांव के सरपंच पति ब्रह्मदेव भगत बताते हैं कि यहां करीब 60 घरों में 500 लोग रहते हैं. यह बस्ती पूर्णरूपेण शाकाहारी है. यहां कोई भी नशा सेवन नहीं करता है. हम लोग सभी लोगों का ऐसा विचार देते हैं कि लोग नशा नहीं करें. यहां चार दुकानें हैं छोटी-छोटी लेकिन किसी भी दुकान में कोई पान पुड़िया या किसी तरह का नशा सेवन की व्यवस्था नहीं है. इसके लिए हम लोग लोगों को समझा-बुझाकर ऐसा बताए हुए हैं कि नहीं बेचना है और कोई लेता भी नहीं है. यह सब शाकाहारी है कई पीढ़ियों से हम देखते आ रहे हैं. कुछ लोग पहले बकरी, मुर्गा पालते थे फिर हम लोगों ने उनको प्रभावित किया तो करीब 20 वर्षों से इस बस्ती में न तो कोई बकरी पालता है ना तो कोई मुर्गा पालता है. और कोई मांस मदिरा या नशा किसी भी तरह का नहीं करता है पूर्णता शाकाहारी है. इसका दूरगामी परिणाम है कि यहां कोई केस मुकदमा भी नहीं होता है कोई विवाद हुआ भी तो हम लोग बैठकर आपस में सुलझा लेते हैं.

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