वैशाली: पटना में दुर्गा पूजा (Durga Puja in Patna) की चारों तरफ धूम है, राजधानी में 40 वर्ष पहले बबलू पांडेय मूर्ति बनाने आए थे. अब वह बिहार के कई जिलों में मूर्ति बनाते है. इस काम के लिए उनके परिवार के 8 लोग 2 महीने से हाजीपुर आए हुए हैं. उन्हें मूर्ति बनाने के अलावा और कुछ भी नहीं आता है. यहां आज आपको इस मूर्तिकार की कहानी बताएंगे.
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बंगाल से आते हैं कारीगर: बंगाल के साथ ही देश के कई हिस्सों में दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है, इसमें बिहार भी शामिल है. बिहार के लगभग सभी जिले में मां दुर्गा की प्रतिमा सजाई जाती है. जिसका दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग निकलते हैं. यही कारण है कि मूर्ति की बनावट, रूप सज्जा और पंडाल के निर्माण में करोड़ों खर्च किया जाता है. लेकिन मजेदार बात यह है कि मां दुर्गा की प्रतिमा कोलकाता में दिखने वाली प्रतिमा जैसी आकर्षक और सुंदर बने इस लिए खासतौर से मूर्ति निर्माण करने वाले कारीगर बंगाल से मंगाए जाते हैं.
दो महीने में बनती है मूर्ति: कारीगर बबलू पांडे को 40 वर्ष पहले पटना में मूर्ति बनाने के लिए बुलाया गया था, लेकिन अब इनकी मांग बिहार के कई जिलों में बढ़ गई है. इनके हाथ में वह हुनर है कि मुंह मांगी रकम देकर पिछले 10 सालों से इन्हें सिर्फ मूर्ति निर्माण के लिए हाजीपुर बुलाया जाता है. काम के प्रति इनकी वफादारी इतनी है कि मूर्ति निर्माण के लिए 2 महीने पहले ही इनके परिवार के 8 लोग हाजीपुर के राजेंद्र चौक आ जाते हैं. शायद यही कारण है कि वैशाली जिले के अलावा सारण जिले के कुछ क्षेत्रों के लोग भी राजेंद्र चौक पर मां दुर्गा की प्रतिमा देखने आते हैं.
मूर्ति से होती है अच्छी आमदनी: पहले बबलू पांडे के पिता बतौर मुखिया मूर्ति निर्माण का कार्य करवाते थे. लेकिन उनके देहांत के बाद यह जिम्मेवारी बबलू पांडे की बन गई है. उनका कहना है कि इससे मोटा-मोटी आमदनी हो जाती है. वह इसके अलावे और कोई काम नहीं करते हैं. बबलू पांडे पटना में 40 सालों से मूर्ति बना रहे हैं.
"मैं पटना में करीब 40 सालों से मूर्ति बना रहा हूं. इसके बाद हम लोगों को हाजीपुर में भी बुलाया गया. यहां 10 सालों से मूर्ति बना रहा हूं. राजेन्द्र चौक बहुत महत्वपूर्ण जगह है . हम 8 लोग हैं, 2 महीने से मूर्ति बना रहे हैं. हम सभी एक ही परिवार के लोग हैं. पटना में भी हम ही मूर्ति बनाते हैं. यह हम लोगों का परिवारिक काम है. पहले पिताजी बनाते थे, पिताजी के जाने के बाद हम बना रहे हैं. यह हम लोगों का मुख्य पेशा है. कोलकाता में और घर के लोग बनाते हैं हम लोग काफी दिनों से इधर ही जुड़े हुए हैं. साल में एक बार हाजीपुर आते हैं और पटना में दीपावली में काली जी भी बनाते हैं. मोटा-मोटी खर्च निकलता है इसके अलावा दूसरा कोई काम नहीं करते हैं." - बबलू पांडेय, कोलकाता के मूर्तिकार
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