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बेटे के लिए खुद कमरा पेंट कर रहे हैं पैरालिंपिक मेडल जीतने वाले प्रमोद भगत के पिता, सरकार है कि बुलाती ही नहीं

बैडमिंटन में पैरालिंपिक मेडल (Tokyo Paralympics) जीतने वाले प्रमोद भगत को को खेल का सर्वोच्च पुरस्कार मिला है. इधर, पिता अपने बेटे के खुद ही घर पेंट कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि देश का रोशन करने वाला बेटा आएगा लेकिन सच्चाई बेहद ही निराशाजनक है. पढ़ें यह रिपोर्ट.

Pramod Bhagat
Pramod Bhagat
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Published : Nov 23, 2021, 7:36 AM IST

हाजीपुर: कहते हैं मन के जीते जीत है और मन हारे हार है. अर्थात दुनिया में कहीं भी आपके नाम का डंका क्यों न बज रहा हो, अगर घर में पूछ नहीं है तो आपकी सारी सफलता कहीं ना कहीं मायूसी के कोने में चली जाती है. कुछ ऐसा ही हुआ है देश के लिए पैरा ओलंपिक (Tokyo Paralympics) में गोल्ड मेडल जीतने वाले प्रमोद भगत (Paralympic medal winner Pramod Bhagat) के साथ. उनकी उपलब्धि के लिए उन्हें खेल का सर्वोच्च पुरस्कार राष्ट्रपति ने दिया है.

ये भी पढ़ें: बिहार के इस शहर में कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है भूतों का मेला, पूरी रात आत्माओं की होती है जंग

ओडिशा (Odisha) पहुंचने पर प्रमोद (Pramod Bhagat) का भव्य स्वागत किया गया था. ओडिशा सरकार की ओर से बीजू पटनायक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचने पर हीरो की तरह स्वागत किया गया और इस दौरान ढोल-नगाड़े भी बजे थे लेकिन उनके गृह प्रदेश बिहार (Bihar government) ने अब तक बुलावा नहीं भेजा है. इसका उनके परिवार को काफी मलाल है. हालांकि परिवार अभी भी उम्मीद लगाये बैठा है कि बिहार सरकार प्रमोद को बुलायेगी और यथोचित सम्मान देगी. प्रमोद भगत को इंतजार है बिहार सरकार के बुलावे का.

घर पेंट करते प्रमोद भगत के पिता

इधर, उनके पिता रामा भगत अपने बेटे का कमरा पेंट कर रहे हैं. पहले प्रमोद भगत इसी कमरे में रहते थे. प्रमोद भगत अपने भाई आमोद भगत के साथ उड़ीसा में अपनी बुआ क्या यहां रहते हैं. आमोद भगत बताते हैं कि प्रमोद को ओडिशा में काफी सम्मान मिला. महामहिम राष्ट्रपति ने भी सम्मानित किया लेकिन अपने ही गृह राज्य में प्रमोद भगत की कोई पूछ नहीं हो रही है. ऐसे में वह कैसे घर आएंगे. अगर आएंगे भी तो चुप-चोरी. अपने घर वालों से ही मिलने के लिए. हालांकि अमोद भगत को उम्मीद है कि बिहार सरकार भी देर-सबेर प्रमोद को सम्मान देगी.

प्रमोद भगत 5 साल के थे तब उनका एक पैर पोलियो से प्रभावित हो गया था. इसके बावजूद उन्होंने दिव्यांगता को ही अपना हथियार बनाया. अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के सहारे खेल के क्षेत्र में देश का नाम गौरवान्वित किया. ऐसे में अगर बिहार सरकार उनके सम्मान में देर कर रही तो राज्य के लोगों को तो हैरानी होगी ही. साथ ही यहां के प्रतिभावान खिलाड़ियों के मनोबल को भी धक्का लगेगा.

ये भी पढ़ें: प्रेमी सिपाही ने कॉल ब्लॉक किया तो थाने पहुंची युवती..हाई वोल्टेज ड्रामा

हाजीपुर: कहते हैं मन के जीते जीत है और मन हारे हार है. अर्थात दुनिया में कहीं भी आपके नाम का डंका क्यों न बज रहा हो, अगर घर में पूछ नहीं है तो आपकी सारी सफलता कहीं ना कहीं मायूसी के कोने में चली जाती है. कुछ ऐसा ही हुआ है देश के लिए पैरा ओलंपिक (Tokyo Paralympics) में गोल्ड मेडल जीतने वाले प्रमोद भगत (Paralympic medal winner Pramod Bhagat) के साथ. उनकी उपलब्धि के लिए उन्हें खेल का सर्वोच्च पुरस्कार राष्ट्रपति ने दिया है.

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ओडिशा (Odisha) पहुंचने पर प्रमोद (Pramod Bhagat) का भव्य स्वागत किया गया था. ओडिशा सरकार की ओर से बीजू पटनायक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचने पर हीरो की तरह स्वागत किया गया और इस दौरान ढोल-नगाड़े भी बजे थे लेकिन उनके गृह प्रदेश बिहार (Bihar government) ने अब तक बुलावा नहीं भेजा है. इसका उनके परिवार को काफी मलाल है. हालांकि परिवार अभी भी उम्मीद लगाये बैठा है कि बिहार सरकार प्रमोद को बुलायेगी और यथोचित सम्मान देगी. प्रमोद भगत को इंतजार है बिहार सरकार के बुलावे का.

घर पेंट करते प्रमोद भगत के पिता

इधर, उनके पिता रामा भगत अपने बेटे का कमरा पेंट कर रहे हैं. पहले प्रमोद भगत इसी कमरे में रहते थे. प्रमोद भगत अपने भाई आमोद भगत के साथ उड़ीसा में अपनी बुआ क्या यहां रहते हैं. आमोद भगत बताते हैं कि प्रमोद को ओडिशा में काफी सम्मान मिला. महामहिम राष्ट्रपति ने भी सम्मानित किया लेकिन अपने ही गृह राज्य में प्रमोद भगत की कोई पूछ नहीं हो रही है. ऐसे में वह कैसे घर आएंगे. अगर आएंगे भी तो चुप-चोरी. अपने घर वालों से ही मिलने के लिए. हालांकि अमोद भगत को उम्मीद है कि बिहार सरकार भी देर-सबेर प्रमोद को सम्मान देगी.

प्रमोद भगत 5 साल के थे तब उनका एक पैर पोलियो से प्रभावित हो गया था. इसके बावजूद उन्होंने दिव्यांगता को ही अपना हथियार बनाया. अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के सहारे खेल के क्षेत्र में देश का नाम गौरवान्वित किया. ऐसे में अगर बिहार सरकार उनके सम्मान में देर कर रही तो राज्य के लोगों को तो हैरानी होगी ही. साथ ही यहां के प्रतिभावान खिलाड़ियों के मनोबल को भी धक्का लगेगा.

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