सोनपुर: बिहार के विश्वप्रसिद्ध सोनपुर मेला (World Famous Sonpur Mela) चल रहा है. मेले में तरह-तरह की चीजें मिल रही है. मेले में मिट्टी के बने सीटी और घिरनी का काफी महत्व है. यहां घूमने वालों के लिए यह हरिहर नाथ का सगुन है. जो सिर्फ इसी मेले में मिलता है. हरि और हर के प्रतीक के रूप में हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला का सबसे पौराणिक खिलौना मिट्टी का बना सीटी और घिरनी है. घिरनी जहां हरि का तो सीटी हर का प्रतीक माना जाता है. आज भी लोग इस खिलौने में बचपन तलाशने आते हैं. क्या है पूरी कहानी, जानिए इस रिपोर्ट में.
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सोनपुर मेला का अद्भुत खिलौना: मिट्टी के बने सीटी और घिरनी को सिर्फ इसी मेले में बेचने की अद्भुत परम्परा है. बात उस खाश वस्तु की जिसकी कीमत बेहद कम है, लेकिन मान्यताए उतनी ही ज्यादा. जो सिर्फ यहीं मिलता है और कहीं नहीं. यह हरिहरनाथ का शगुन है. यह हरि और हर का प्रतीक है. इसे सिर्फ मेले में हीं बेचा जाता है. मेले के बाद नहीं बेचा जाता. विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला विस्तृत और व्यापक है, इसके साथ भी पौराणिक भी. मेले से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित है. सीटी व घीरनी की बात सबसे अद्भुत और निराली है.
घिरनी और सीटी की धूम: दरअसल, सोनपुर मेला को हरिहर क्षेत्र का मेला कहा जाता है. क्योंकि यहां एक ही सिला में हरी अर्थात विष्णु और हर अर्थात शिव विराजमान हैं. कार्तिक मास की पूर्णिमा को इन्हीं हरि और हर पर जलाभिषेक के साथ सोनपुर मेले की शुरुआत होती है और मेले में हरि और हर के प्रतीक के रूप में मिट्टी के खिलौने सीटी और घिरनी बिकते हैं. मान्यता है कि जब से यह मेला लग रहा है, तब से यह खिलौना बिकता आ रहा है और आज के आधुनिक दौर में भी इन खिलौनों को लोग बड़े चाव से खरीदते हैं.
मेला खत्म होने के बाद नहीं मिलता खिलौना: महज 10 रुपए में 4 सीटी और 10 रुपए में 5 घिरनी मिल जाता है. जिसको खरीद कर बच्चे-बूढ़े सभी खुश हो जाते हैं. कुछ लोग इसे बचपन की याद बताते हैं, तो कुछ लोग बाप दादा के द्वारा मेले में दिए गए अनमोल तोहफा बताते हैं. सीटी बनाने में मिट्टी का प्रयोग होता है, जिसे तारकोल से रंगा जाता है. वहीं घिरनी बनाने में मिट्टी और लकड़ी का प्रयोग होता है और इससे भी तारकोल से ही रंगा जाता है. यह मेले की शुरुआत से लेकर अब तक प्रमुख आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
खिलौना को माना जाता है हरि और हर का प्रतीक: बताया जाता है कि एक दशक पहले तक जहां दर्जनों लोग सालों भर मिट्टी के सीटी और घिरनी का निर्माण मेले में बेचने के लिए करते थे. वहीं अब इनकी संख्या गिनती के चार-पांच रह गई है. पहले की तरह ज्यादा मात्रा में तो इनकी बिक्री नहीं होती है. बावजूद इसके शौकीन लोग आज भी मेले में ढूंढते हुए आते हैं. बताया जाता है कि घिरनी सिर्फ मेले में ही बेचने के लिए बनाया जाता है, वह भी सिर्फ सोनपुर मेले में. मेला समाप्ति के बाद घिरनी नहीं बेचा जाता है.
40 वर्षों से इन खिलौनों को बेच रही लैला खातून बताती हैं कि यह हरिहर नाथ बाबा का शगुन है. यह घिरनी हमेशा नहीं बिकता है, यह मेले भर ही बेचा जाता है. वहीं पटना से आई अनामिका सिन्हा कहते हैं कि तीन बेटियों से हम लोग हैं. सभी को यह बेहद पसंद है. जबकि सोनपुर की रहने वाली लक्ष्मी शर्मा का कहना है कि घिरनी बहुत ही महत्वपूर्ण है. खिलौना जैसे हरि और हर यहां के लिए महत्वपूर्ण है वैसे ही यह सीटी और घिरनी भी प्रतीक के रूप में है.
"तीन पीढ़ी हम यहां पर खड़े हैं मेरी मां है और मेरे बच्चे है. बचपन से ही सीटी घिरनी को जान रहे हैं. इसको को देखना बहुत अच्छा लगता है. यह बहुत ही अच्छा लगता है."- अनामिका सिन्हा, पटना
"यह हरिहर नाथ बाबा का शगुन है यह सब दिन नहीं बिकता है यह मेला भर ही बिकता है. यह मिट्टी से बनता है. वह मसाला और मेहनत से यह अच्छा होता है और इससे गरीब आदमी का पेट पलता है. यह सिर्फ सोनपुर मेला में ही मिलता है यह मिट्टी से बनता है और यह मेले की पहचान है. 10 रुपये में 4 और 10 रुपये में 5 बिकता है. 40 वर्षों से मैं देख रहे हैं."- लैला खातून
"बहुत ही महत्वपूर्ण है जैसे हरि और हर यहां के लिए महत्वपूर्ण है वैसे ही यह सीटी और घिरनी भी प्रतीक के रूप में है और हमारी दादी सास मां कहती थी की जब भी मेला लोग घूमने आते थे तो वह बोलती थी कि हमारे लिए वह पानी फल उबला हुआ. सुथनी का फल और जलेबिया, सीटी यहां की काफी प्रमुख चीजो ने है. मैं तो यहां 20 सालों से देख रही हूँ प्रकृति के लिए यह मिट्टी का खिलौना बहुत ही अच्छा है और बच्चे बहुत पसंद करते हैं."- लक्ष्मी शर्मा, सोनपुर
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