बेगूसराय: आमतौर पर जब पुस्तकालयों की बात होती है. तो लोगों के मन में पुराने और जीर्ण शीर्ण पुस्तकालय का चित्र उभरता है, लेकिन बेगूसराय के इस पुस्तकालय को देखने से ये प्रतीत होता है कि किसी बड़े शहर का सिनेमा हॉल या कोई बड़ा सरकारी कार्यालय है, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत से लड़ाई से लेकर आधुनिक भारत की तमाम उपलब्धियां समेटे गोदरगामा गांव का विप्लवी पुस्तकालय देश के लिए मिशाल पेश कर रहा है.
स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी पुस्तकालय की स्थापना
आजादी की लड़ाई में पुलिस से बचने के लिए गोदरगामां गांव के ठाकुरबारी में विप्लवी पुस्तकालय की स्थापना की गई थी. जहां सारे देशभक्त इकट्ठा होकर अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई की योजना बनाते थे. 26 जनवरी 1931 को प्रजातंत्र दिवस के अवसर पर बेगूसराय में अंग्रेजों ने क्रांतिकारी साथियों पर गोलियां चलाई, जिसके फलस्वरूप जिले के 6 लोग शहीद हो गए. जिससे यहां के स्वतंत्रता सेनानी और उग्र हो गए. इसके बाद 26 फरवरी 1931 को इस पुस्तकालय की स्थापना की गई.
जुर्माने की राशी ने हुआ था पुस्तकालय का निर्माण
नौजवानों ने इन क्रांतिकारी शहीदों की शहादत का संकल्प लेकर अंग्रेजों की चूल हिला देने का संकल्प लिया. वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन तक अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ व्यापक हिंसा तोड़फोड़ की घटना को अंजाम दिया जाता रहा था, जिसके बाद इस आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने बलूची फौज को बेगूसराय जिले में उतार दिया और दमन शुरू हुआ. क्योंकि गोदरगामा गांव के भी लोग क्रांतिकारी साथियों के साथ कदम से कदम मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शामिल थे, जिसको लेकर अंग्रेजों ने इस गांव पर भारी-भरकम जुर्माना लगा दिया और जुर्माने की राशि बलपूर्वक वसूल की गई.
आधुनिक सुविधाओं से लैस है पुस्तकालय
वर्ष 1946 में देश में अंतरिम सरकार बनी और बिहार में श्रीकृष्ण सिंह प्रथम मुख्यमंत्री बने, तो अंग्रेजों द्वारा वसूल की गई जुर्माने की राशि को उन्होंने वापस करने का फैसला किया. इसी तरह अन्य गांव पर भी जो जुर्माने की राशि लगाई गई थी. वो सरकार ने वापस की, लेकिन इस गांव के लोगों ने जुर्माने की राशि को लेने से इंकार कर दिया और उस पैसे से इस विप्लवी पुस्तकालय के जीर्णोद्धार का संकल्प लिया गया. इसके बाद जब इस पुस्तकालय के जीर्णोद्धार और साज-सज्जा का काम शुरू हुआ और अब यह पुस्तकालय आधुनिक सुविधाओं से लैस हो चुका है.
पुस्तकालय के संयोजक और पूर्व विधायक राजेंद्र राजन ने बताया कि आजादी के पहले इस विप्लवी पुस्तकालय से जुड़े लोगों का संकल्प था, देश को अंग्रेजों से आजाद कराना. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद अब इस पुस्तकालय का संकल्प है कि देश के नवनिर्माण, नवजागृति और नई चेतना से लोगों को समृद्धि की ओर लोगों को अग्रसर करना.
पुस्तकालय के प्रमुख आकर्षण केंद्र
- समृद्ध ग्रंथागार-तीन खंड में हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी की 32 हजार अनमोल पुस्तक और पत्रिकाएं
- दो उन्नत वाचनालय, सैकड़ों पत्र पत्रिकाएं
- अजायबघर, पुरातत्विक मूर्तियां
- आधुनिक सभागार सह प्रेक्षागृह पांच सौ व्यक्तियों के लिए स्थाई लगी कुर्सियां, प्रोजेक्टर, स्क्रीन आदि
- मुक्ताकाश मंच
- राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय विभूतियों और साहित्यकारों की दुर्लभ चित्र गैलरी
- कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र
- स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र
- प्रतिभाशाली छात्रों के लिए छात्रावात्र
- अतिथियों के लिए 9 सुसज्जित और वातानुकूलित कमरे
- लोक संस्कृति की दुर्लभ तस्वीर, प्रदर्शनी और कविता पोस्टर प्रदर्शनी
मूर्तियां बढ़ा रही हैं पुस्तकालय की शोभा
भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, कबीर, मीराबाई प्रेमचंद्र, डॉक्टर पी गुप्ता, महात्मा गांधी और 1931 बेगूसराय गोलीकांड के शहीदों की कांस्य और प्रस्तर मूर्तियां इस पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रही हैं. वहीं, हर वर्ष होने वाले आयोजनों में देश के सभी प्रख्यात लेखक, कवि,पत्रकार, संपादक, सांसद, मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत शहीद भगत सिंह के भांजे और गांधीजी के प्रपौत्र तुसार गांधी भी यहां आ चुके हैं. पुस्तकालय के साथ-साथ छात्र छात्राओं की पढ़ाई, बेरोजगारों के लिए कंप्यूटर प्रशिक्षण, कुटीर उद्योग से जुड़े प्रशिक्षण इस पुस्तकालय को बेहद खास बनाते हैं.