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कोसी का कहर: सुपौल में जलमग्न हुए गांव, लोग बोले- कोरोना के डर से नहीं निकल रहे जनप्रतिनिधि

सुपौल में कोसी का कहर चरम सीमा पर है. यहां लगातार कोसी का जलस्तर बढ़ने से कई गांव जलमग्न हो गए हैं. वहीं, लोग अपनी बेबसी बता रहे हैं.

सुपौल से ईटीवी भारत की रिपोर्ट
सुपौल से ईटीवी भारत की रिपोर्ट
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Published : Jul 22, 2020, 10:45 PM IST

Updated : Aug 6, 2020, 4:08 PM IST

सुपौल: मानसून काल में कोसी नदी के जलस्तर में मंगलवार को सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई. हालांकि, नदी के जल स्तर में कमी आने लगी है. लेकिन दो दिनों तक बराह क्षेत्र और कोसी बराज से भारी डिस्चार्ज के कारण तटबंधों के बीच पानी का फैलाव जारी है. जिससे तटबंध के भीतर बसे लाखों की आबादी के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई है.

सदर प्रखंड के बाढ प्रभावित पंचायत बलवा, घूरण, बसबिट्टी, तेलवा, गोपालपुर सिरे सहित दर्जनों गांव में बाढ का पानी प्रवेश कर गया. वहीं कई गांव में नदी का तेज कटाव भी शुरू हो गया है. बाढ़ व कटाव के कारण कोसी पीड़ितों में हड़कंप व्याप्त है. घर-आंगन में कोसी का पानी प्रवेश कर जाने के कारण बड़ी संख्या में बाढ़ पीड़ित ऊंचे और सुरक्षित स्थानों की ओर विस्थापित हो रहे हैं.

जलमग्न हुई झोपड़ियां
जलमग्न हुई झोपड़ियां

खाने-पीने की समस्या
तटबंध के पास बसे लोगों को बाढ़ के दौरान कई प्रकार की समस्या से जूझना पड़ रहा है. तटबंध के भीतर चारो ओर कोसी का पानी फैल चुका है. किसानों की फसल डूब चुकी है. कोरोना काल में पहले से पीड़ितों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या बनी हुई थी. इस बीच कोसी का बाढ आ जाने से पीड़ितों का दुख-दर्द दोगुना हो गया. वहीं पानी बढ़ने के बाद प्रभावित क्षेत्र में कई बाढ़ पीड़ितों ने अपने परिवार व बच्चे के साथ अपने घरों के छप्पर पर शरण ले रखा है. बाढ़ की वजह से प्रभावित इलाके के लोगों के घरों में पानी प्रवेश करने के कारण उनके कपड़े, अनाज, जलावन, चूल्हे व अन्य सामग्री भींग चुके हैं. जिस कारण भोजन तैयार करना भी मुश्किल हो रहा है.

सुपौल से ईटीवी भारत की रिपोर्ट

नाव ही बना है आवागमन का सहारा
तटबंध के भीतर बाढ का पानी फैलने के कारण सड़कें ध्वस्त हो गयी है. कई सड़कों के उपर से नदी का पानी बह रहा है. ऐसे हालात में बाढ़ पीड़ितों के समक्ष यातायात के लिए मात्र नाव का ही सहारा बचा है. लोग नाव के सहारे ही पशुचारे सहित अन्य दिनचर्या के कामों को निपटा रहे हैं. छोटी नाव के सहारे लोग छींट व पलार से पशुचारा लाकर मवेशी का किसी तरह पेट भर रहे हैं.

पीड़ितों को नहीं मिल रही अपेक्षित सहायता
पीड़ितों ने बताया कि वे लोग हर वर्ष बाढ की विभीषिका झेलने को विवश हैं. पिछले वर्ष भी बाढ़ काल में चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. समाज के संपन्न लोगों ने सूखा राशन, चूड़ा, चीनी, मुरही, दालमोट, दिया-सलाई, प्लास्टिक सीट आदि की मदद की थी. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण को लेकर वैसे मददगार भी नहीं दिख रहे हैं. प्रशासन को यदि उनलोगों की चिंता होती तो पीड़ितों के घरों तक राहत सामग्री मुहैया करा दिया जाता.

सदर प्रखंड के बाढ प्रभावित गोपालपुर सिरे, नकटा, सितुहर, बेला, नयानगर, खरहोड़ टोला, बगही, चतरा, मध्य टोल, सोनवर्षा, घुरण, डभारी, बसबिट्टी, मुसहरनियां आदि गांव के लोगों ने बताया कि कोरोना काल में जनप्रतिनिधि भी अपने-अपने घर से नहीं निकल रहे हैं. जिस कारण उनलोगों की समस्या दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है. सरकार तक उनलोगों की आवाज नहीं पहुंच रही है. नतीजा है कि वे भगवान भरोसे जीने को विवश हैं.

सुपौल: मानसून काल में कोसी नदी के जलस्तर में मंगलवार को सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई. हालांकि, नदी के जल स्तर में कमी आने लगी है. लेकिन दो दिनों तक बराह क्षेत्र और कोसी बराज से भारी डिस्चार्ज के कारण तटबंधों के बीच पानी का फैलाव जारी है. जिससे तटबंध के भीतर बसे लाखों की आबादी के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई है.

सदर प्रखंड के बाढ प्रभावित पंचायत बलवा, घूरण, बसबिट्टी, तेलवा, गोपालपुर सिरे सहित दर्जनों गांव में बाढ का पानी प्रवेश कर गया. वहीं कई गांव में नदी का तेज कटाव भी शुरू हो गया है. बाढ़ व कटाव के कारण कोसी पीड़ितों में हड़कंप व्याप्त है. घर-आंगन में कोसी का पानी प्रवेश कर जाने के कारण बड़ी संख्या में बाढ़ पीड़ित ऊंचे और सुरक्षित स्थानों की ओर विस्थापित हो रहे हैं.

जलमग्न हुई झोपड़ियां
जलमग्न हुई झोपड़ियां

खाने-पीने की समस्या
तटबंध के पास बसे लोगों को बाढ़ के दौरान कई प्रकार की समस्या से जूझना पड़ रहा है. तटबंध के भीतर चारो ओर कोसी का पानी फैल चुका है. किसानों की फसल डूब चुकी है. कोरोना काल में पहले से पीड़ितों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या बनी हुई थी. इस बीच कोसी का बाढ आ जाने से पीड़ितों का दुख-दर्द दोगुना हो गया. वहीं पानी बढ़ने के बाद प्रभावित क्षेत्र में कई बाढ़ पीड़ितों ने अपने परिवार व बच्चे के साथ अपने घरों के छप्पर पर शरण ले रखा है. बाढ़ की वजह से प्रभावित इलाके के लोगों के घरों में पानी प्रवेश करने के कारण उनके कपड़े, अनाज, जलावन, चूल्हे व अन्य सामग्री भींग चुके हैं. जिस कारण भोजन तैयार करना भी मुश्किल हो रहा है.

सुपौल से ईटीवी भारत की रिपोर्ट

नाव ही बना है आवागमन का सहारा
तटबंध के भीतर बाढ का पानी फैलने के कारण सड़कें ध्वस्त हो गयी है. कई सड़कों के उपर से नदी का पानी बह रहा है. ऐसे हालात में बाढ़ पीड़ितों के समक्ष यातायात के लिए मात्र नाव का ही सहारा बचा है. लोग नाव के सहारे ही पशुचारे सहित अन्य दिनचर्या के कामों को निपटा रहे हैं. छोटी नाव के सहारे लोग छींट व पलार से पशुचारा लाकर मवेशी का किसी तरह पेट भर रहे हैं.

पीड़ितों को नहीं मिल रही अपेक्षित सहायता
पीड़ितों ने बताया कि वे लोग हर वर्ष बाढ की विभीषिका झेलने को विवश हैं. पिछले वर्ष भी बाढ़ काल में चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. समाज के संपन्न लोगों ने सूखा राशन, चूड़ा, चीनी, मुरही, दालमोट, दिया-सलाई, प्लास्टिक सीट आदि की मदद की थी. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण को लेकर वैसे मददगार भी नहीं दिख रहे हैं. प्रशासन को यदि उनलोगों की चिंता होती तो पीड़ितों के घरों तक राहत सामग्री मुहैया करा दिया जाता.

सदर प्रखंड के बाढ प्रभावित गोपालपुर सिरे, नकटा, सितुहर, बेला, नयानगर, खरहोड़ टोला, बगही, चतरा, मध्य टोल, सोनवर्षा, घुरण, डभारी, बसबिट्टी, मुसहरनियां आदि गांव के लोगों ने बताया कि कोरोना काल में जनप्रतिनिधि भी अपने-अपने घर से नहीं निकल रहे हैं. जिस कारण उनलोगों की समस्या दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है. सरकार तक उनलोगों की आवाज नहीं पहुंच रही है. नतीजा है कि वे भगवान भरोसे जीने को विवश हैं.

Last Updated : Aug 6, 2020, 4:08 PM IST
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