सिवान: आजादी की लड़ाई की बात हो और सिवान के महाराजगंज के बंगरा गांव का नाम न हो तो यह बेईमानी होगी, क्योंकि महाराजगंज का बंगरा गांव उस समय आजादी के दीवानों का केंद्र हुआ करता था. जहां से आजादी की पटकथा (Story of Azadi in Siwan) लिखी जाती थी. जिले के महराजगंज स्थित बंगरा गांव में एक-दो नहीं बल्कि, 30 स्वतत्रंता सेनानियों ने जन्म लिया. उन्हीं वीरों में से एक वीर सेनानी मुंशी सिंह हैं, जो एकमात्र जीवित स्वतत्रंता सेनानी हैंं.
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एक गांव में हुए 30 स्वतंत्रता सेनानी: स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह ने बताते हैं कि, जब वह आठवीं क्लास में थे तब 16 अगस्त 1942 को स्कूल की पांचवी घंटी चल रही थी. अचानक स्कूल की घंटी बजी तो सभी लोग स्कूल के ग्राउंड में इकट्ठा हुए. जहां कांग्रेस के दो नेता गिरीश तिवारी और शंकरनाथ विद्यार्थी आए हुए थे, उन्होंने कहा कि मुंबई में कांग्रेस के सभी नेता गिरफ्तार हो गए हैं. महात्मा गांधी भी गिरफ्तार कर लिए गए हैं और उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया. इसके बाद से आजादी के दीवाने सभी नौजवान स्कूल के बगल में स्थित महाराजगंज थाना को जलाने पहुंच गये.
स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह की कहानी: महाराजगंज थाना पर रमजान अली नाम के दरोगा ने सभी क्रांतिकारियों से एक घंटे का समय मांगा. तब आजादी के दीवानों को उन पर भरोसा तो नहीं हुआ लेकिन कांग्रेस के नेता बलराम सिंह के कहने पर एक घंटे का समय देते हुए सभी क्रांतिकारी नौजवान सिवान रेलवे स्टेशन पहुंचे. एक घंटे बाद जब क्रांतिकारी स्टेशन से लौट रहे थे, उस वक्त क्रांतिकारियों की संख्या कम हो गई. उसी समय फुलेना प्रसाद, उनकी पत्नी तारा देवी और उनकी मां के साथ कुछ कांग्रेसी नेता और स्वयं मुंशी सिंह थाना के करीब पहुंचे.
क्रांतिकारियों ने थाने में लगाई थी आग: जहां पहले से बंदूक लेकर गोली बरसाने के लिए तैयार फिरंगीयों ने क्रांतिकारियों पर गोलियां बरसाना शुरू कर दी. इसमें फुलेना प्रसाद के शरीर पर 9 गोलियां लगी. उसके बाद उनकी मौत घटनास्थल पर ही हो गई. वहीं, उत्तर दिशा से देवशरण सिंह के नेतृत्व में बहुत बड़ी भीड़ चली आ रही थी. इसमें अंग्रेजी सैनिकों ने लगातार देव शरण सिंह और उनके साथ आ रही भीड़ पर फायरिंग करना शुरू कर दिया. इसमें देव शरण सिंह की मौत भी घटनास्थल पर ही हो गई. इस घटना में पांच योद्धाओं को गोलियां लगी थी. जिसके चलते घटना के 2 से 3 दिनों के भीतर सभी घायलों ने दम तोड़ दिया.
स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह बताते हैं कि महाराजगंज थाना के फिरंगियों के द्वारा क्रांतिकारी योद्धाओं पर गोलियां बरसाने के बाद महाराजगंज थाना के सभी फिरंगी मौके से फरार हो गए थे. जिसके बाद अगले दिन 17 अगस्त को क्रांतिकारियों ने थाना में आग लगा दिया. जिसके बाद 7 दिन तक थाना वीरान पड़ा रहा. वहीं, कुछ दिन बाद हथियार से लैस गोरे सैनीक आये और आतंक फैलाने के लिए कहीं भी आग लगा देते थे और जो भी मिलते उसे मार देते थे. कई घरों में फास्फोरस छिटक कर आग लगा दिया. रामधन नाम के स्वतंत्रता सेनानी को अंग्रेजों ने घोड़ों के टाप से कुचलकर मौत के घाट उतार दिया था.