ETV Bharat / state

सिवान: 250 साल पुराना है चंदनिया डीह का दुर्गा मंदिर, रोचक है मंदिर का इतिहास - भक्तों की  सभी मुरादें पूरी

मैरवा रेलवे स्टेशन से उत्तर स्थित करीब दो सौ मीटर दूर स्थित चंदनिया डीह दुर्गा मंदिर में प्रति दिन पूजा अर्चना को श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष पूजा अर्चना होती है. मंदिर परिसर में मां दुर्गा के समेत हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है.

चंदनिया डीह दुर्गा मंदिर
author img

By

Published : Oct 8, 2019, 10:41 AM IST

सिवान: देशभर में दशहरे की धूम है. लोग अपने घरों से निकल कर मां दुर्गा के पंडालों में पहुंच रहे हैं. जिले के दनिया डीह दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा रही है. महिला श्रद्धालुओं ने माता को डालिया और खोईंछा चढ़ाया. शहर के सभी मंदिर और पंडालों में श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से शाम तक लगी रही. मंदिरों में शंख, घंटे और मंत्रोच्चारण की ध्वनि से शहर का माहौल भक्तिमय है.

भक्तों की मनोकामना होती है पूर्ण
मां के मंदिर में पहुंचे भक्तों ने नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की और मां से अपनी मुरादें मांगी. मंदिर के पुरोहित का कहना है कि शारदीय नवरात्री में यहां पर कलश स्थापना के बाद प्रत्येक दिन पंडितों के समूह द्वारा 'दुर्गा शप्तशती' का पाठ किया जाता है. स्थानीय श्रद्धालु मंदिर परिसर में संकल्प के साथ प्रतिदिन पाठ करते हैं. यहां पर अलग पद्धति से वर्षो से पूजा होती आ रही है. महाष्टमी की रात में निशा पूजा का आयोजन होता है. जो यहां की सबसे प्रसिद्ध पूजा मानी जाती है. यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना सदैव पूर्ण होती है.

पूजा करते लोग
पूजा करते लोग

250 वर्ष पुराना है मंदिर
मैरवा रेलवे स्टेशन से उत्तर स्थित करीब दो सौ मीटर दूर स्थित चंदनिया डीह दुर्गा मंदिर में प्रति दिन पूजा अर्चना को श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष पूजा अर्चना होती है. मंदिर परिसर में मां दुर्गा के समेत हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है. मंदिर के पुजारी विंध्याचल मिश्र का बताते है कि सालों पहले यहां एक इमली का वृक्ष था, जिसकी पूजा होती थी. यहां अंग्रेजों का बनवाया हुआ डाक बंगला भी है. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान मंदिर का विस्तार नहीं हो सका, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के अंत होने के बाद धीरे-धीरे मंदिर की महिमा इलाके में फैल गई.

स्थानीय श्रद्धालु
स्थानीय श्रद्धालु

मंदिर का है पौराणिक महत्व
मंदिर के पुजारी विंध्याचल मिश्र का कहना है कि चंदनिया डीह 16 बीघे का गढ़ था. दंतकथाओं के अनुसार प्राचीन काल .यहां यूपी बलिया के सहदेव चौधरी नामक एक साधक रहता था. उनकी एक खुबसूरत पुत्री थी. जिसका नाम चंदा था. धीरे-घीरे चंदा की सुंदरता की बातें इलाके में फैल गई. चंदा का सौंदर्य देख बलिया का एक पहलवान 'मेठा' ने चंदा से शादी करने का प्रस्ताव दिया. चंदा ने शादी के प्रस्ताव को ठुकारा दिया. जिसके बाद मेठा ने चंदा से जबरन शादी करने की सोची. अपने पुत्री की अस्मत बचाने के लिए चंदा के पिता सहदेव चौधरी पास के गांव के अपने शिष्य पहलवान शिवधर के पास चले गए. मेठा पहलवान उनका पीछा करते हुए वहां भी आ पहुंचा. जिसके बाद दोनों में भयानक मल्ल युद्ध हुआ. युद्ध में मेठा मारा गया और उसके निकले रक्त से 16 बीघा जमीन बंजर हो गया.

सीवान
चंदनिया डीह दुर्गा मंदिर,सीवान

अस्मत बचाने के लिए 'चंदा' किया अपने जीवन का त्याग
मेठा पहलवान के मारे जाने के बाद भी चंदा की समस्याएं कम नहीं हुई. कुछ समय बाद ही मेठा से चंदा की रक्षा करने वाले पहलवान शिवधर की नियत भी खराब हो गई और वह चंदा पर शादी का दबाब बनाने लगा. जिसके बाद चंदा ने अपनी अस्मत बचाने के लिए सकरा में इमली वृक्ष के नीचे अपने प्राण त्याग दिए. अपने मृत्यु के बाद चंदा नें हथुआ दरबार में रहने वाले पंडित रामचंद्र मिश्र के स्वप्न में आकर उन्हें आदेश दिया की मैं यहीं पर इस इमली के पिंडी के रूप में हूं, तुम यहां पर मेरी मंदिर की स्थापना कर पुजा-पाठ करो. जिसके बाद पंडित रामचंद्र ने पिंडी की पुजा आरंभ की और तब से लेकर आज तक उनकी चौथी पीढ़ी पं.विंध्याचल मिश्र यहां पर पूजा पाठ कर रहे हैं. कालंतर में यहीं चंदा के नाम से चंदनिया डीह के नाम से मशहुर हुआ. नवरात्र के समय हजारों श्रद्धालु अपनी मुरादें पूरी करने के लिए घंटों कतार में खड़ रहते हैं.

मंदिर परिसर में हवन करते भक्त
मंदिर परिसर में हवन करते भक्त

सैकड़ों जोड़े बंधते है परिणय सूत्र में
स्थानीय श्रद्धालु प्रभु गुप्ता , ममता देवी बताते है कि यहां हर मन्नतें पूरी होती है. आस्था के साथ दूर दराज से भक्त चंदनिया भवानी के दर्शन को आते हैं. बताया जाता है कि हर साल सैकड़ों जोड़े यहां आकर परिणय सूत्र में बंधते हैं. यहां आने वाले हर भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं.

आस्था का केंद्र चंदनिया डीह दुर्गा मंदिर

सिवान: देशभर में दशहरे की धूम है. लोग अपने घरों से निकल कर मां दुर्गा के पंडालों में पहुंच रहे हैं. जिले के दनिया डीह दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा रही है. महिला श्रद्धालुओं ने माता को डालिया और खोईंछा चढ़ाया. शहर के सभी मंदिर और पंडालों में श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से शाम तक लगी रही. मंदिरों में शंख, घंटे और मंत्रोच्चारण की ध्वनि से शहर का माहौल भक्तिमय है.

भक्तों की मनोकामना होती है पूर्ण
मां के मंदिर में पहुंचे भक्तों ने नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की और मां से अपनी मुरादें मांगी. मंदिर के पुरोहित का कहना है कि शारदीय नवरात्री में यहां पर कलश स्थापना के बाद प्रत्येक दिन पंडितों के समूह द्वारा 'दुर्गा शप्तशती' का पाठ किया जाता है. स्थानीय श्रद्धालु मंदिर परिसर में संकल्प के साथ प्रतिदिन पाठ करते हैं. यहां पर अलग पद्धति से वर्षो से पूजा होती आ रही है. महाष्टमी की रात में निशा पूजा का आयोजन होता है. जो यहां की सबसे प्रसिद्ध पूजा मानी जाती है. यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना सदैव पूर्ण होती है.

पूजा करते लोग
पूजा करते लोग

250 वर्ष पुराना है मंदिर
मैरवा रेलवे स्टेशन से उत्तर स्थित करीब दो सौ मीटर दूर स्थित चंदनिया डीह दुर्गा मंदिर में प्रति दिन पूजा अर्चना को श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष पूजा अर्चना होती है. मंदिर परिसर में मां दुर्गा के समेत हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है. मंदिर के पुजारी विंध्याचल मिश्र का बताते है कि सालों पहले यहां एक इमली का वृक्ष था, जिसकी पूजा होती थी. यहां अंग्रेजों का बनवाया हुआ डाक बंगला भी है. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान मंदिर का विस्तार नहीं हो सका, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के अंत होने के बाद धीरे-धीरे मंदिर की महिमा इलाके में फैल गई.

स्थानीय श्रद्धालु
स्थानीय श्रद्धालु

मंदिर का है पौराणिक महत्व
मंदिर के पुजारी विंध्याचल मिश्र का कहना है कि चंदनिया डीह 16 बीघे का गढ़ था. दंतकथाओं के अनुसार प्राचीन काल .यहां यूपी बलिया के सहदेव चौधरी नामक एक साधक रहता था. उनकी एक खुबसूरत पुत्री थी. जिसका नाम चंदा था. धीरे-घीरे चंदा की सुंदरता की बातें इलाके में फैल गई. चंदा का सौंदर्य देख बलिया का एक पहलवान 'मेठा' ने चंदा से शादी करने का प्रस्ताव दिया. चंदा ने शादी के प्रस्ताव को ठुकारा दिया. जिसके बाद मेठा ने चंदा से जबरन शादी करने की सोची. अपने पुत्री की अस्मत बचाने के लिए चंदा के पिता सहदेव चौधरी पास के गांव के अपने शिष्य पहलवान शिवधर के पास चले गए. मेठा पहलवान उनका पीछा करते हुए वहां भी आ पहुंचा. जिसके बाद दोनों में भयानक मल्ल युद्ध हुआ. युद्ध में मेठा मारा गया और उसके निकले रक्त से 16 बीघा जमीन बंजर हो गया.

सीवान
चंदनिया डीह दुर्गा मंदिर,सीवान

अस्मत बचाने के लिए 'चंदा' किया अपने जीवन का त्याग
मेठा पहलवान के मारे जाने के बाद भी चंदा की समस्याएं कम नहीं हुई. कुछ समय बाद ही मेठा से चंदा की रक्षा करने वाले पहलवान शिवधर की नियत भी खराब हो गई और वह चंदा पर शादी का दबाब बनाने लगा. जिसके बाद चंदा ने अपनी अस्मत बचाने के लिए सकरा में इमली वृक्ष के नीचे अपने प्राण त्याग दिए. अपने मृत्यु के बाद चंदा नें हथुआ दरबार में रहने वाले पंडित रामचंद्र मिश्र के स्वप्न में आकर उन्हें आदेश दिया की मैं यहीं पर इस इमली के पिंडी के रूप में हूं, तुम यहां पर मेरी मंदिर की स्थापना कर पुजा-पाठ करो. जिसके बाद पंडित रामचंद्र ने पिंडी की पुजा आरंभ की और तब से लेकर आज तक उनकी चौथी पीढ़ी पं.विंध्याचल मिश्र यहां पर पूजा पाठ कर रहे हैं. कालंतर में यहीं चंदा के नाम से चंदनिया डीह के नाम से मशहुर हुआ. नवरात्र के समय हजारों श्रद्धालु अपनी मुरादें पूरी करने के लिए घंटों कतार में खड़ रहते हैं.

मंदिर परिसर में हवन करते भक्त
मंदिर परिसर में हवन करते भक्त

सैकड़ों जोड़े बंधते है परिणय सूत्र में
स्थानीय श्रद्धालु प्रभु गुप्ता , ममता देवी बताते है कि यहां हर मन्नतें पूरी होती है. आस्था के साथ दूर दराज से भक्त चंदनिया भवानी के दर्शन को आते हैं. बताया जाता है कि हर साल सैकड़ों जोड़े यहां आकर परिणय सूत्र में बंधते हैं. यहां आने वाले हर भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं.

आस्था का केंद्र चंदनिया डीह दुर्गा मंदिर
Intro:

एंकर- खबर सीवान से जहा दशहरा में चननिया मां का एक अलग ही इतिहास रहा है यह नवमी के दिन भक्तों की भारी हुजूम देखने को मिलता है।कहा जाता है कि यहां जो भी भक्त सच्चे मन से आते हैं उनकी मुरादें माता पूर्ण करती है। सीवान के मैरवा मे इस्थित है चननिया माता का दरबार। मैरवा स्टेशन के पास स्थित यह मंदिर काफी मशहूर है। यहां लोग अपनी मन्नतें मानते हैं तथा पूरा होने पर मांगलिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। यहां पुत्र की कामना से आने वाले लोगों की भी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पुत्र प्राप्ति पर भक्त यहां अपने लडके का मुंडन सहित शादी के संस्कार भी यहीं करते हैं। यह मंदिर लगभग 250 वर्ष पुराना है। बताया जाता है कि यहां मां दुर्गा खुद प्रकट हुई हैं। माता के बारे में प्रचलित कहानी के बारे में बताते हुए मंदिर के पुजारी विंध्याचल मिश्र ने बताया कि घटना ढाई सौ साल पहले की है। यूपी के बलिया के सहदेव चौधरी को एक खुबसूरत पुत्री हुई जिसका नाम चंदा रखा गया। लोग प्रेम से उसे चन्वा बुलाने लगे। लडकी की सुंदरता पूरे क्षेत्र में फैल गई। जब ये बडी हुईं तो इनकी सुंदरता और बढ गई। ये अपने नाम के अनुरूप ही सौंदर्यशाली थीं। इनकी सुन्दरता देख वहीं बलिया का एक नामी पहलवान मेठा की नीयत डोल गई तथा वह इनसे शादी करने की सोचने लगा। बताया जाता है कि मेठा का सात कोस में फैला हुआ अखाड़ा था तथा सभी उससे डरते थे। लेकिन चंदा सात्विक विचारों की थी। शादी से उसका कुछ भी लेना देना नहीं था। उसने शादी से इन्कार कर दिया। मेठा चंदा का डोला उठाकर जबरिया शादी करना चाहता था। अपनी पुत्री की मर्यादा बचाने के लिए उसके पिता उसे मैरवा के स्याही निवासी पहलवान शिवधर के पास लाए। मेठा पहलवान उसका पीछा करते यहां तक आ गया। दोनों पहलवानों तथा उनके शिष्यों के बीच मल्ल युद्ध हुआ जिसमें मेठा पहलवान मारा गया। मल्ल युद्ध की वजह से यहां की 16 बीघे जमीन रेतीली हो गई। कुछ समय बाद शिवधर की नियत भी चंदा की सुंदरता देखकर डोल गई तथा वह भी उससे शादी करने का दबाव बनाने लगा। चंदा ने अपनी आत्मरक्षा के लिए सकरा में इमली के वृक्ष के नीचे अपना प्राण त्याग दिया। चंदा ने मरने के बाद हथुआ दरबार में रहने वाले पंडित रामचंद्र मिश्र को चंदा ने अपने बारे में स्वप्न दिखाया तथा कहा कि मैं इमली के पेंड़ के नीचे पिंडी के रूप में प्रकट हुई हूं।  तुम वहां मंदिर की स्थापना करो जहां मैं रह सकूं तथा भक्तों का कल्याण कर सकूं। पंडित रामचंद्र ने अपनी नौकरी छोडकर मैरवा के सकरा स्थित इमली के पेंड़ के पास प्रकट हुए चौरे की पूजा आरंभ की। उनके बाद उनके पुत्र बद्धिसागर मिश्र ने मां की पूजा जारी रखी। उनके बाद उनके पुत्र जगदीश मिश्र तथा वर्तमान में उनके पुत्र विंध्याचल मिश्र पूजा पाठ कर रहे हैं। कालांतर में यही चन्वा नाम चननिया के रूप में बदल गया। यहाँ नवरात्र के समय तो सुबह शाम हजारों श्रद्धालु अपनी मुरादें पूरी करने के लिए घंटों कतार में खड़ रहते हैं।

बाईट1- प्रभु गुप्ता भक्त

2-ममता देवी भक्त





Body:with vo


Conclusion:NA
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.