सिवान: देशभर में दशहरे की धूम है. लोग अपने घरों से निकल कर मां दुर्गा के पंडालों में पहुंच रहे हैं. जिले के दनिया डीह दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा रही है. महिला श्रद्धालुओं ने माता को डालिया और खोईंछा चढ़ाया. शहर के सभी मंदिर और पंडालों में श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से शाम तक लगी रही. मंदिरों में शंख, घंटे और मंत्रोच्चारण की ध्वनि से शहर का माहौल भक्तिमय है.
भक्तों की मनोकामना होती है पूर्ण
मां के मंदिर में पहुंचे भक्तों ने नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की और मां से अपनी मुरादें मांगी. मंदिर के पुरोहित का कहना है कि शारदीय नवरात्री में यहां पर कलश स्थापना के बाद प्रत्येक दिन पंडितों के समूह द्वारा 'दुर्गा शप्तशती' का पाठ किया जाता है. स्थानीय श्रद्धालु मंदिर परिसर में संकल्प के साथ प्रतिदिन पाठ करते हैं. यहां पर अलग पद्धति से वर्षो से पूजा होती आ रही है. महाष्टमी की रात में निशा पूजा का आयोजन होता है. जो यहां की सबसे प्रसिद्ध पूजा मानी जाती है. यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना सदैव पूर्ण होती है.
250 वर्ष पुराना है मंदिर
मैरवा रेलवे स्टेशन से उत्तर स्थित करीब दो सौ मीटर दूर स्थित चंदनिया डीह दुर्गा मंदिर में प्रति दिन पूजा अर्चना को श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष पूजा अर्चना होती है. मंदिर परिसर में मां दुर्गा के समेत हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है. मंदिर के पुजारी विंध्याचल मिश्र का बताते है कि सालों पहले यहां एक इमली का वृक्ष था, जिसकी पूजा होती थी. यहां अंग्रेजों का बनवाया हुआ डाक बंगला भी है. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान मंदिर का विस्तार नहीं हो सका, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के अंत होने के बाद धीरे-धीरे मंदिर की महिमा इलाके में फैल गई.
मंदिर का है पौराणिक महत्व
मंदिर के पुजारी विंध्याचल मिश्र का कहना है कि चंदनिया डीह 16 बीघे का गढ़ था. दंतकथाओं के अनुसार प्राचीन काल .यहां यूपी बलिया के सहदेव चौधरी नामक एक साधक रहता था. उनकी एक खुबसूरत पुत्री थी. जिसका नाम चंदा था. धीरे-घीरे चंदा की सुंदरता की बातें इलाके में फैल गई. चंदा का सौंदर्य देख बलिया का एक पहलवान 'मेठा' ने चंदा से शादी करने का प्रस्ताव दिया. चंदा ने शादी के प्रस्ताव को ठुकारा दिया. जिसके बाद मेठा ने चंदा से जबरन शादी करने की सोची. अपने पुत्री की अस्मत बचाने के लिए चंदा के पिता सहदेव चौधरी पास के गांव के अपने शिष्य पहलवान शिवधर के पास चले गए. मेठा पहलवान उनका पीछा करते हुए वहां भी आ पहुंचा. जिसके बाद दोनों में भयानक मल्ल युद्ध हुआ. युद्ध में मेठा मारा गया और उसके निकले रक्त से 16 बीघा जमीन बंजर हो गया.
अस्मत बचाने के लिए 'चंदा' किया अपने जीवन का त्याग
मेठा पहलवान के मारे जाने के बाद भी चंदा की समस्याएं कम नहीं हुई. कुछ समय बाद ही मेठा से चंदा की रक्षा करने वाले पहलवान शिवधर की नियत भी खराब हो गई और वह चंदा पर शादी का दबाब बनाने लगा. जिसके बाद चंदा ने अपनी अस्मत बचाने के लिए सकरा में इमली वृक्ष के नीचे अपने प्राण त्याग दिए. अपने मृत्यु के बाद चंदा नें हथुआ दरबार में रहने वाले पंडित रामचंद्र मिश्र के स्वप्न में आकर उन्हें आदेश दिया की मैं यहीं पर इस इमली के पिंडी के रूप में हूं, तुम यहां पर मेरी मंदिर की स्थापना कर पुजा-पाठ करो. जिसके बाद पंडित रामचंद्र ने पिंडी की पुजा आरंभ की और तब से लेकर आज तक उनकी चौथी पीढ़ी पं.विंध्याचल मिश्र यहां पर पूजा पाठ कर रहे हैं. कालंतर में यहीं चंदा के नाम से चंदनिया डीह के नाम से मशहुर हुआ. नवरात्र के समय हजारों श्रद्धालु अपनी मुरादें पूरी करने के लिए घंटों कतार में खड़ रहते हैं.
सैकड़ों जोड़े बंधते है परिणय सूत्र में
स्थानीय श्रद्धालु प्रभु गुप्ता , ममता देवी बताते है कि यहां हर मन्नतें पूरी होती है. आस्था के साथ दूर दराज से भक्त चंदनिया भवानी के दर्शन को आते हैं. बताया जाता है कि हर साल सैकड़ों जोड़े यहां आकर परिणय सूत्र में बंधते हैं. यहां आने वाले हर भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं.