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सिवान: अबकी बार वादा निभाए सरकार! मजदूरों को मुहैया कराए रोजगार - चमड़ा फैक्ट्री

लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों के बिहार लौटने से बेरोजगारी का संकट का खड़ा हो गया है. लोगों की मांग है कि सीएम नीतीश अपना वादा पूरा करें और उन्हें उनके ही राज्य में काम उपलब्ध कराया जाए. जिससे जीवन यापन के लिए बाहर का रुख न करना पड़े.

सिवान
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Published : Jun 18, 2020, 2:28 PM IST

Updated : Jun 20, 2020, 10:27 AM IST

सिवान: कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लगा और राज्य व देश के बाहर काम करने वाले मजदूर घर को लौटने लगे. इन सबके बीच बेरोजगारी की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है. अब वापस लौटे प्रवासी सरकार की तरफ उम्मीद की लौ लगाए बैठे हैं. वहीं, दूसरी तरफ सरकार पर सभी को रोजगार मुहैया कराने का दबाव है.

जर्जर हुआ मिल का भवन
जर्जर हुआ मिल का भवन

उपेक्षा का शिकार रहीं मिलें

ऐसे में सबसे पहले नजर गर्दा खा रही मिलों पर पड़ रही है. इन बंद पड़ी मिलों को दोबारा शुरू करने की मांग उठ रही है. धूल भरे लिफाफे में लिपटी ये मिलें वर्षों से उपेक्षा और लापरवाही का शिकार हैं. दरअसल, लाखों की संख्या में मजदूरों को लगातार बेरोजगार होकर वापस लौटता देख सरकार ने बिहार में ही उद्योग लगाने की बात कही थी, जिसके बाद लोग इन मिलों को शुरू करने की मांग करने लगे हैं.

मिल की मशीनों में लगा जंग
मिल की मशीनों में लगा जंग

किसानों के लिए वरदान थीं ये मिलें

सिवान में तीन चीनी मिलें, एक सुता फैक्ट्री और एक चमड़ा फैक्ट्री थी जो दो दशकों से बंद पड़ी हुई हैं. इसमें एक मिल नीलाम हो चुकी है तो वहीं दूसरी की जमीन पर दूसरे प्रोजेक्ट की बात कही जा रही है. वहीं ये चीनी मिल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं. जिले में कभी 3 चीनी मिलों के होने से किसान गन्ने की खेती कर खुशहाल रहते थे. यहां के किसानों को गन्ने की खेती से नगद पैसे मिल जाते थे, जिससे परिवार चलाना आसान हो जाता था. साथ ही रोजगार का भी सृजन होता था, लेकिन पिछले चार दशकों से सभी मिलें एक-एक कर बंद होती चली गईं और सिर्फ चुनावी मुद्दा बनकर रह गईं.

मिलों परिसर में उगा जंगल
मिलों परिसर में उगा जंगल

90 लाख क्विंटल गन्ने का उत्पादन

उस समय हर साल करीब 90 लाख क्विंटल तक गन्ने का उत्पादन होता था. 1980 तक जिले में 15 से 20 हजार हेक्टेयर में गन्ने की खेती होती थी. इसका औसत उत्पादन 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था. मिलों की बंदी के बाद किसानों ने गन्ने की खेती करीब-करीब छोड़ ही दी है. दूसरा रोजगार नहीं होने से यहां के किसान अन्य राज्यों में जाकर रोजगार ढूंढने को विवश हैं. जिले के अधिकांश किसान परिवार के युवा जीवन यापन के लिए दिल्ली-मुंबई सहित दूसरे देशों में भी जाने को मजबूर हैं.

देखें वीडियो

क्या कहते हैं सत्ताधारी नेता?

मिल की देख-रेख करने वाले अधिकारी सुभाष सिंह ने बताया कि सभी मिलें शुरू करना अत्यंत जरूरी है. मिल चालू करने से मजदूरों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा. वहीं सिवान भाजपा के पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव और पूर्व एमएलसी मनोज सिंह ने भी बंद पड़ी मीलों को चालू करवाने की बात कही है.

सिवान: कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लगा और राज्य व देश के बाहर काम करने वाले मजदूर घर को लौटने लगे. इन सबके बीच बेरोजगारी की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है. अब वापस लौटे प्रवासी सरकार की तरफ उम्मीद की लौ लगाए बैठे हैं. वहीं, दूसरी तरफ सरकार पर सभी को रोजगार मुहैया कराने का दबाव है.

जर्जर हुआ मिल का भवन
जर्जर हुआ मिल का भवन

उपेक्षा का शिकार रहीं मिलें

ऐसे में सबसे पहले नजर गर्दा खा रही मिलों पर पड़ रही है. इन बंद पड़ी मिलों को दोबारा शुरू करने की मांग उठ रही है. धूल भरे लिफाफे में लिपटी ये मिलें वर्षों से उपेक्षा और लापरवाही का शिकार हैं. दरअसल, लाखों की संख्या में मजदूरों को लगातार बेरोजगार होकर वापस लौटता देख सरकार ने बिहार में ही उद्योग लगाने की बात कही थी, जिसके बाद लोग इन मिलों को शुरू करने की मांग करने लगे हैं.

मिल की मशीनों में लगा जंग
मिल की मशीनों में लगा जंग

किसानों के लिए वरदान थीं ये मिलें

सिवान में तीन चीनी मिलें, एक सुता फैक्ट्री और एक चमड़ा फैक्ट्री थी जो दो दशकों से बंद पड़ी हुई हैं. इसमें एक मिल नीलाम हो चुकी है तो वहीं दूसरी की जमीन पर दूसरे प्रोजेक्ट की बात कही जा रही है. वहीं ये चीनी मिल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं. जिले में कभी 3 चीनी मिलों के होने से किसान गन्ने की खेती कर खुशहाल रहते थे. यहां के किसानों को गन्ने की खेती से नगद पैसे मिल जाते थे, जिससे परिवार चलाना आसान हो जाता था. साथ ही रोजगार का भी सृजन होता था, लेकिन पिछले चार दशकों से सभी मिलें एक-एक कर बंद होती चली गईं और सिर्फ चुनावी मुद्दा बनकर रह गईं.

मिलों परिसर में उगा जंगल
मिलों परिसर में उगा जंगल

90 लाख क्विंटल गन्ने का उत्पादन

उस समय हर साल करीब 90 लाख क्विंटल तक गन्ने का उत्पादन होता था. 1980 तक जिले में 15 से 20 हजार हेक्टेयर में गन्ने की खेती होती थी. इसका औसत उत्पादन 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था. मिलों की बंदी के बाद किसानों ने गन्ने की खेती करीब-करीब छोड़ ही दी है. दूसरा रोजगार नहीं होने से यहां के किसान अन्य राज्यों में जाकर रोजगार ढूंढने को विवश हैं. जिले के अधिकांश किसान परिवार के युवा जीवन यापन के लिए दिल्ली-मुंबई सहित दूसरे देशों में भी जाने को मजबूर हैं.

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क्या कहते हैं सत्ताधारी नेता?

मिल की देख-रेख करने वाले अधिकारी सुभाष सिंह ने बताया कि सभी मिलें शुरू करना अत्यंत जरूरी है. मिल चालू करने से मजदूरों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा. वहीं सिवान भाजपा के पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव और पूर्व एमएलसी मनोज सिंह ने भी बंद पड़ी मीलों को चालू करवाने की बात कही है.

Last Updated : Jun 20, 2020, 10:27 AM IST
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