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सीवान : चित्तौड़ के रम्भु सिंह ने कारगिल में दी थी प्राणों की आहूति, आज गांव है मूलभूत सुविधाओं से दूर

ऑपरेशन विजय के तहत 60 दिनों तक चली जंग में बिहार रेजिमेंट के 18 जवान शहीद हो गए थे. सरकार ने कई वादे तो किए लेकिन उनके गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

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Published : Jul 26, 2020, 6:08 AM IST

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सीवानः चित्तौड़ ऐसी जगह है जो अपनी वीरता के लिए जाना जाता है. राजस्थान के चित्तौड़ की कहानियां काफी प्रचलित हैं. जहां रानी पद्मावती ने अपने आत्मसम्मान के लिए सहेलियों के साथ जौहर किया था. वहीं सिवान जिले के अंदर प्रखंड स्थित चित्तौड़ गांव की कहानी भी किसी वीर गाथा से कम नहीं है. यहां के जवान रम्भु सिंह ने कारगिल युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण को न्यौछावर कर दिया था.

सैनिकों ने लहराया था तिरंगा
ऑपरेशन विजय के तहत 60 दिनों तक चली जंग में बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे. आज से ठीक 21 साल पहले 26 जुलाई को कारगिल फतह कर सैनिकों ने तिरंगा लहराया था. लेकिन कारगिल युद्ध मे शहीद जवानों के गांव आज तक मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं. हम बात कर रहे हैं सिवान से लगभग 20 किलोमीटर दूर चितौड़ गांव की जहां के लाल रम्भु सिंह कारगिल युद्ध के दौरान देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए.

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जवान रम्भु सिंह का घर

जलजमाव की समस्या
शहीद जवान रम्भु सिंह का जन्म 16 मार्च 1972 में हुआ था. उन्होंने ऑपरेशन विजय में अहम भूमिका निभाई था. 20 जून 1999 में दुश्मनों से लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हो गए. शहीद के गांव में उनकी प्रतिमा लगा दी गयी और वहां के विद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया. लेकिन गांव में सड़कें आज तक नहीं बन पाई हैं. लोगों को कच्ची सड़कों से आना जाना पड़ता है. साथ ही बरसात में यहां जलजमाव की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है. पानी शहीद रम्भु सिंह के घर मे भी घुस जाता है.

देखें रिपोर्ट

नहीं सुधरी स्थिति
गांव में स्थित स्कूल का नाम जवान रम्भु सिंह के नाम पर कर दिया गया. लेकिन स्कूल की स्थिति आज तक नहीं सुधरी. आज भी बच्चे यहां बैठने के लिए घर से बोरा लेकर आते हैं. वहीं, मिड डे मील भी कभी-कभी ही मिलता है. इसके साथ ही टीचर भी हमेशा लेट से आते हैं.

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सड़कों की हालत

राबड़ी देवी ने किया था सड़क बनवाने का वादा
ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी रम्भु सिंह की शहादत पर गांव आयी था. उन्होंने यहां पक्की सड़कें बनवाने का वादा किया था लेकिन आज भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है. उन्होंने बताया कि शहीद के नाम पर स्थित स्कूल में न तो शौचालय की व्यवस्था है और न ही पीने के पानी की व्यवस्था है.

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शहीद रम्भु सिंह की प्रतिमा

देश की रक्षा में तत्पर हैं युवा
लोगों ने बताया कि स्कूल के पास स्थित चापाकल से बालू निकलता है. जिससे बच्चों को विद्यालय से थोड़ी दूर काली मंदिर के पास बने चापाकल से पानी पीना पड़ता है. साथ ही शौचालय भी टूट चुका है. उन्होंने बताया कि इस पर स्कूल के प्राचार्य से बात की गई तो उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से कोई फंड या राशि नहीं आ रही है. शहीद राम्भु सिंह के गांव के 50 से ज्यादा युवक आज सेना में हैं और देश की रक्षा में तत्पर हैं. इन कमियों के बावजूद भी इस गांव के युवाओं के जोश में कमी नहीं आई है.

सीवानः चित्तौड़ ऐसी जगह है जो अपनी वीरता के लिए जाना जाता है. राजस्थान के चित्तौड़ की कहानियां काफी प्रचलित हैं. जहां रानी पद्मावती ने अपने आत्मसम्मान के लिए सहेलियों के साथ जौहर किया था. वहीं सिवान जिले के अंदर प्रखंड स्थित चित्तौड़ गांव की कहानी भी किसी वीर गाथा से कम नहीं है. यहां के जवान रम्भु सिंह ने कारगिल युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण को न्यौछावर कर दिया था.

सैनिकों ने लहराया था तिरंगा
ऑपरेशन विजय के तहत 60 दिनों तक चली जंग में बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे. आज से ठीक 21 साल पहले 26 जुलाई को कारगिल फतह कर सैनिकों ने तिरंगा लहराया था. लेकिन कारगिल युद्ध मे शहीद जवानों के गांव आज तक मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं. हम बात कर रहे हैं सिवान से लगभग 20 किलोमीटर दूर चितौड़ गांव की जहां के लाल रम्भु सिंह कारगिल युद्ध के दौरान देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए.

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जवान रम्भु सिंह का घर

जलजमाव की समस्या
शहीद जवान रम्भु सिंह का जन्म 16 मार्च 1972 में हुआ था. उन्होंने ऑपरेशन विजय में अहम भूमिका निभाई था. 20 जून 1999 में दुश्मनों से लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हो गए. शहीद के गांव में उनकी प्रतिमा लगा दी गयी और वहां के विद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया. लेकिन गांव में सड़कें आज तक नहीं बन पाई हैं. लोगों को कच्ची सड़कों से आना जाना पड़ता है. साथ ही बरसात में यहां जलजमाव की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है. पानी शहीद रम्भु सिंह के घर मे भी घुस जाता है.

देखें रिपोर्ट

नहीं सुधरी स्थिति
गांव में स्थित स्कूल का नाम जवान रम्भु सिंह के नाम पर कर दिया गया. लेकिन स्कूल की स्थिति आज तक नहीं सुधरी. आज भी बच्चे यहां बैठने के लिए घर से बोरा लेकर आते हैं. वहीं, मिड डे मील भी कभी-कभी ही मिलता है. इसके साथ ही टीचर भी हमेशा लेट से आते हैं.

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सड़कों की हालत

राबड़ी देवी ने किया था सड़क बनवाने का वादा
ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी रम्भु सिंह की शहादत पर गांव आयी था. उन्होंने यहां पक्की सड़कें बनवाने का वादा किया था लेकिन आज भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है. उन्होंने बताया कि शहीद के नाम पर स्थित स्कूल में न तो शौचालय की व्यवस्था है और न ही पीने के पानी की व्यवस्था है.

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शहीद रम्भु सिंह की प्रतिमा

देश की रक्षा में तत्पर हैं युवा
लोगों ने बताया कि स्कूल के पास स्थित चापाकल से बालू निकलता है. जिससे बच्चों को विद्यालय से थोड़ी दूर काली मंदिर के पास बने चापाकल से पानी पीना पड़ता है. साथ ही शौचालय भी टूट चुका है. उन्होंने बताया कि इस पर स्कूल के प्राचार्य से बात की गई तो उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से कोई फंड या राशि नहीं आ रही है. शहीद राम्भु सिंह के गांव के 50 से ज्यादा युवक आज सेना में हैं और देश की रक्षा में तत्पर हैं. इन कमियों के बावजूद भी इस गांव के युवाओं के जोश में कमी नहीं आई है.

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