सिवान: सिवान जिले का एक छोटा सा गांव जहांं के एक घर के बरामदे में बैठकर देश को आजाद कराने की रणनीति तैयार की जाती थी, एक ऐसा गांव जिसने अपने मिट्टी में पले बढ़े एक लाल के रूप में देश को पहला राष्ट्रपति दिया, एक ऐसा गांव जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहित अनेक विभूतियों का आतिथेय का गौरव हासिल हुआ. हम बात कर रहे हैं देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और उनके गांव जीरादेई की.
डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती: 3 दिसंबर को पूरे देश मे धूमधाम से देश रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती मनाई जा रही है. जयंती वाले दिन सरकार व प्रशासन की तरफ से उनके चित्र व प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रदांजलि तो दे दी जाती हैं लेकिन सूरज ढलने के साथ ही उनको भुला दिया जाता है. डॉ राजेंद्र प्रसाद का पैतृक गांव जीरादेई देश के धरोहरों में से एक है. लेकिन इस ओर न तो सरकार और न प्रशासन की नजर है.
जयंती पर प्रभात फेरी का आयोजन: जयंती कार्यक्रम को लेकर जिला पदाधिकारी मुकुल कुमार गुप्ता ने हरी झंडी दिखा कर प्रभात फेरी को रवाना किया. इस मौके पर सीवान के एमएलए सह बिहार विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी डॉ राजेंद्र बाबू के पैतृक गांव जीरादेई पहुंचे. जहां सभी ने राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया.
विकास के लिए पलके बिछाए है जीरादेई गांव: जीरादेई गांव सिवान जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिसका नाम है. लेकिन गांव के साथ-साथ जिस घर में डॉ राजेंद्र प्रसाद ने जन्म लिया, वो अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. जिस देश को डॉ राजेन्द्र बाबू ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. उस देश में ही उनको सम्मान के नाम पर सिर्फ भाषण ही मिल रहे हैं. डॉ राजेन्द्र प्रसाद सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि वह और उनकी निशानी देश का धरोहर भी हैं.
डॉ राजेंद्र प्रसाद के घर की स्थिति बदतर: देश के प्रथम राष्ट्रपति होने के बावजूद भी इस गांव को जो मान सम्मान या जो दर्जा मिलना चाहिए था वह नहीं मिल रहा है. डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन काफी सादगी भरा रहा है. उनका घर पुराना और काफी जर्जर हो चुका है. इसके बावजूद उसके रखरखाव की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. आपको बता दें कि उनके इस स्थल को अब पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया है.
सौंदर्यीकरण के नाम पर लूट: बताते चलें कि भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा एक वर्ष पूर्व 2022 में उनके जमीन की चहारदीवारी का काम चल रहा था, उसमें काफी अनियमितता देखने को मिली. घटिया मेटेरियल का इस्तेमाल कर इसमें भी लूट-खसोट मचाने की सूचना निकल कर सामने आई. पैसों का बंदरबांट किए जाए की जानकारी जब स्थानीय लोगों को मिली तो उन्होंने इसका विरोध किया. लेकिन उनपर मुकदमे दर्ज कर दिए गए.
सिर्फ कागजों पर हो रहा कोरम पूरा: लोगों ने मुखीया के काम में मिलावट देख इसकी जानकारी लेनी चाही, तो लाख प्रयासों के बाद भी न ही योजना और उसके राशि की जानकारी नहीं दी गई. देखा जाए तो भारतीय पुरातत्व विभाग, जीरादेई के मामले में फिसड्डी साबित हो रही है. विकास के नाम पर सिर्फ कागजों पर कोरम पूरा किया जा रहा है. यानी यह साफ लफ्जों में कह सकते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद को अब सिर्फ किताबों तक ही सीमित रखने जैसे हालात नजर आ रहे हैं.
जीरादेई गांव की अनदेखी: बिहार के साथ-साथ सिवान जिले केलोगों के लिए ये काफी गौरव की बात है कि राजेंद्र बाबू ने यहां जन्म लिया. डॉ राजेंद्र बाबू सीवान के मान-सम्मान एवं स्वाभिमान के प्रतीक हैं. लेकिन यह सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर जीरादेई गांव को वह उचित मान सम्मान कब मिलेगा? लोग वर्षों से गांव के सौंदर्यीकरण और विकास की मांग कर रहे हैं. यहां सिर्फ कुछ ही ट्रेन का ठहराव है, कहीं आने-जाने के लिए सीवान जंक्शन या पटना जंक्शन ही जाना पड़ता है.
पढ़ें: राजेन्द्र बाबू ने इसी स्कूल में की थी पढ़ाई, सरकारी उदासीनता की वजह से आज बदहाल है स्थिति