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विजय दिवस: घर पर सब ठीक था.. अचानक 19 जून 1999 को फोन आया - 'रम्भू सिंह देश के लिए कुर्बान हो गए'

कारगिल युद्ध में शहीद सिवान के लाल रम्भू सिंह के गांव में आज भी लोग उनके शहादत को याद कर गर्व करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि उनकी शहादत के बाद भी गांव में मूलभूत सुविधा का (Bad Condition In Village Of Shaheed Rambhu Singh) आभाव है. उनके देश पर दी गई कुर्बानी को सरकार ने भुला दिया है.

कारगिल युद्ध में शहीद रम्भू सिंह
कारगिल युद्ध में शहीद रम्भू सिंह
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Published : Jul 26, 2022, 9:29 PM IST

सिवान: बिहार में सिवान के लाल शहीद रम्भू सिंह (Martyr Rambhu Singh Of Siwan) की कारगिल युद्ध में शहादत पर जिले के साथ-साथ गांव के लोग भी गौरवान्वित महसूस करते हैं. उन्होंने कारगिल युद्ध में देश के खातिर अपनी जान की आहुति देकर देश का नाम बढ़ाया था. आपको बता दें कि चितौड़ गांव में वो अप्रैल 1999 में होली के मौके पर छुट्टी लेकर आये थे. ड्यूटी जाते समय उन्होंने कहा था कि जितनी गर्मी मौसम की वजह से यहां है, उससे ज्यादा गर्मी कश्मीर में गोलियों की तड़तड़ाहट ने बढ़ा दी है. उन्होंने कहा था कि देश की सेवा में अगर जान भी देना पड़े तो पीछे नही हटूंगा.

ये भी पढ़ें- कारगिल विजय दिवस: पटना में शहीदों को किया गया नमन, BJP ने निकाली तिरंगा यात्रा

जून 1999 को हुए शहीद : स्व. राम किशोर सिंह के पुत्र शहीद जवान रम्भू सिंह 19 जून 1999 को देश की सेवा में अपनी जान की बाजी लगाते हुए शहीद हो गए. शहीद रम्भू सिंह के चचेरे भाई चंद्रिका सिंह ने कहा कि- 'सब कुछ घर पर सही था. अचानक 19 जून को सुबह जब उनकी पत्नी के मोबाइल पर फोन आया की जवान रम्भू सिंह देश की रक्षा करने के दौरान शहीद हो गए हैं. ये खबर सुनते ही जहां घर में चीख-पुकार मच गई, वहीं पूरे गांव में भी मातमी सन्नाटा पसर गया.'

23 साल बाद गांव तक ही सिमटा शहादत : बता दें कि करगिल युद्ध मे शहीद रम्भू सिंह की शहादत को लेकर गांव के लोगों का कहना है कि उस वक्त लोगों ने खूब याद किया, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, यादें सिमटती चली गयी. उनके नाम पर खुले स्कूल में लगे प्रतिमा का हाल यह है कि कारगिल विजय दिवस के दिन भी राष्ट्रगान नही हुआ. गांव के लोगों ने जब शोर मचाया तो प्रतिमा पर जल्दी जल्दी माल्यर्पण किया गया.

जलजमाव की समस्या : शहीद जवान रम्भु सिंह का जन्म 16 मार्च 1972 में हुआ था. उन्होंने ऑपरेशन विजय में अहम भूमिका निभाई था. 20 जून 1999 में दुश्मनों से लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हो गए. शहीद के गांव में उनकी प्रतिमा लगा दी गयी और वहां के विद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया. लेकिन गांव में सड़कें आज तक नहीं बन पाई हैं. लोगों को कच्ची सड़कों से आना जाना पड़ता है. साथ ही बरसात में यहां जलजमाव की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है. पानी शहीद रम्भु सिंह के घर में भी घुस जाता है.

बिहार के 18 जवान भी हुए थे शहीद : गौरतलब है कि आज कारगिल दिवस है. कारगिल युद्ध (Kargil War) में 26 जुलाई 1999 को भारत को विजय मिली थी. इसलिए हर साल इस दिन कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. राजधानी पटना में भी विजय दिवस के मौके पर बीजेपी की ओर से तिरंगा यात्रा (Tiranga Yatra In Patna) कारगिल युद्ध को 23 साल बीत चुके हैं, आज विजय दिवस के अवसर पर उसके शहीदों को पूरा भारत याद कर रहा है. इस युद्ध में बिहार ने भी अपने 18 बेटों को खोया था.

बिहार ने भी अपने 18 बेटों को खोया था : कारगिल युद्ध में शहीद हुए बिहार के मेजर चन्द्र भूषण द्विवेदी (शिवहर), नायक गणेश प्रसाद यादव (पटना, तारेगना), हरिकृष्ण राम (सिवान), हवलदार रतन कुमार सिंह (भागलपुर), प्रभाकर कुमार सिंह (भागलपुर), नायक विशुनी राय (सारण), नायक नीरज कुमार (लखीसराय), नायक सुनील कुमार (मुजफ्फरपुर), लांस नायक विद्यानंद सिंह (आरा), लांस नायक राम वचन राय (वैशाली), अरविंद कुमार पाण्डेय (पूर्वी चम्पारण), शिव शंकर गुप्ता (औरंगाबाद), हरदेव प्रसाद सिंह (नालंदा), एम्बू सिंह (सिवान) और रमन कुमार झा (सहरसा) का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है.

सिवान: बिहार में सिवान के लाल शहीद रम्भू सिंह (Martyr Rambhu Singh Of Siwan) की कारगिल युद्ध में शहादत पर जिले के साथ-साथ गांव के लोग भी गौरवान्वित महसूस करते हैं. उन्होंने कारगिल युद्ध में देश के खातिर अपनी जान की आहुति देकर देश का नाम बढ़ाया था. आपको बता दें कि चितौड़ गांव में वो अप्रैल 1999 में होली के मौके पर छुट्टी लेकर आये थे. ड्यूटी जाते समय उन्होंने कहा था कि जितनी गर्मी मौसम की वजह से यहां है, उससे ज्यादा गर्मी कश्मीर में गोलियों की तड़तड़ाहट ने बढ़ा दी है. उन्होंने कहा था कि देश की सेवा में अगर जान भी देना पड़े तो पीछे नही हटूंगा.

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जून 1999 को हुए शहीद : स्व. राम किशोर सिंह के पुत्र शहीद जवान रम्भू सिंह 19 जून 1999 को देश की सेवा में अपनी जान की बाजी लगाते हुए शहीद हो गए. शहीद रम्भू सिंह के चचेरे भाई चंद्रिका सिंह ने कहा कि- 'सब कुछ घर पर सही था. अचानक 19 जून को सुबह जब उनकी पत्नी के मोबाइल पर फोन आया की जवान रम्भू सिंह देश की रक्षा करने के दौरान शहीद हो गए हैं. ये खबर सुनते ही जहां घर में चीख-पुकार मच गई, वहीं पूरे गांव में भी मातमी सन्नाटा पसर गया.'

23 साल बाद गांव तक ही सिमटा शहादत : बता दें कि करगिल युद्ध मे शहीद रम्भू सिंह की शहादत को लेकर गांव के लोगों का कहना है कि उस वक्त लोगों ने खूब याद किया, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, यादें सिमटती चली गयी. उनके नाम पर खुले स्कूल में लगे प्रतिमा का हाल यह है कि कारगिल विजय दिवस के दिन भी राष्ट्रगान नही हुआ. गांव के लोगों ने जब शोर मचाया तो प्रतिमा पर जल्दी जल्दी माल्यर्पण किया गया.

जलजमाव की समस्या : शहीद जवान रम्भु सिंह का जन्म 16 मार्च 1972 में हुआ था. उन्होंने ऑपरेशन विजय में अहम भूमिका निभाई था. 20 जून 1999 में दुश्मनों से लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हो गए. शहीद के गांव में उनकी प्रतिमा लगा दी गयी और वहां के विद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया. लेकिन गांव में सड़कें आज तक नहीं बन पाई हैं. लोगों को कच्ची सड़कों से आना जाना पड़ता है. साथ ही बरसात में यहां जलजमाव की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है. पानी शहीद रम्भु सिंह के घर में भी घुस जाता है.

बिहार के 18 जवान भी हुए थे शहीद : गौरतलब है कि आज कारगिल दिवस है. कारगिल युद्ध (Kargil War) में 26 जुलाई 1999 को भारत को विजय मिली थी. इसलिए हर साल इस दिन कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. राजधानी पटना में भी विजय दिवस के मौके पर बीजेपी की ओर से तिरंगा यात्रा (Tiranga Yatra In Patna) कारगिल युद्ध को 23 साल बीत चुके हैं, आज विजय दिवस के अवसर पर उसके शहीदों को पूरा भारत याद कर रहा है. इस युद्ध में बिहार ने भी अपने 18 बेटों को खोया था.

बिहार ने भी अपने 18 बेटों को खोया था : कारगिल युद्ध में शहीद हुए बिहार के मेजर चन्द्र भूषण द्विवेदी (शिवहर), नायक गणेश प्रसाद यादव (पटना, तारेगना), हरिकृष्ण राम (सिवान), हवलदार रतन कुमार सिंह (भागलपुर), प्रभाकर कुमार सिंह (भागलपुर), नायक विशुनी राय (सारण), नायक नीरज कुमार (लखीसराय), नायक सुनील कुमार (मुजफ्फरपुर), लांस नायक विद्यानंद सिंह (आरा), लांस नायक राम वचन राय (वैशाली), अरविंद कुमार पाण्डेय (पूर्वी चम्पारण), शिव शंकर गुप्ता (औरंगाबाद), हरदेव प्रसाद सिंह (नालंदा), एम्बू सिंह (सिवान) और रमन कुमार झा (सहरसा) का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है.

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