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सीतामढ़ी: चचरी पुल के सहारे कट रही 5 लाख लोगों की जिंदगी, कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा

अंचलाधिकारी अरविंद प्रताप साही ने बताया कि अगर निर्धारित समय पर इसका काम पूरा कर लिया जाता तो इस क्षेत्र के करीब 5 दर्जन गांव के लोगों के लिए यह पुल वरदान साबित होता. पुल के अभाव में आजादी के 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां की स्थानीय जनता को बांस का चचरी पुल और नाव ही नसीब हो पा रहा है.

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Published : Nov 28, 2019, 12:48 AM IST

Updated : Nov 28, 2019, 7:30 AM IST

सीतामढ़ी: जिले की करीब 5 लाख की आबादी आज के इस आधुनिक युग में भी पुल का दंश झेलने को विवश है. पुल का निर्माण पूरा नहीं हो पाने के कारण आजादी के बाद से अब तक इस क्षेत्र की जनता नाव या चचरी पुल के सहारे ही आवागमन करती है. सीतामढ़ी से मुजफ्फरपुर के मीनापुर प्रखंड को जोड़ने वाली बागमती नदी पर बना है यह पुल जिसका हाल बेहाल है.

अब तक पूरा नहीं हुआ निर्माण कार्य
चार साल पहले पुल निगम द्वारा पुल का निर्माण तो शुरू किया गया लेकिन उसका काम पूरा नहीं हो सका. लिहाजा इस दोनों जिले से जुड़े करीब पांच लाख लोग चचरी पुल और नाव के सहारे अपने सभी आवश्यक कामों का निपटारा करते हैं. ग्रामीणों का यह आवागमन काफी जोखिम भरा होता है. महीनों तक चलने वाला यह चचरी पुल बाढ़ के दौरान ध्वस्त हो जाती है.

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बागमती नदी

कई लोगों की जाती है जान
इसके बाद नाव का परिचालन बहाल होता है और प्रत्येक साल नाव हादसा होने के कारण कई लोगों की जान चली जाती है. लेकिन इस क्षेत्र की जनता के पास बांस पुल और नाव के अलावा कोई अन्य विकल्प भी नहीं है. हॉस्पिटल जाना हो या विद्यालय या कोर्ट कचहरी या फिर खेत खलिहान हर जगह आने जाने के लिए चचरी पुल और नाव ही साधन होता है.

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नाव के सहारे लोग

चचरी पुल का उपयोग करने को विवश हैं लोग
इस चचरी पुल का निर्माण प्रत्येक साल स्थानीय लोगों के जन सहयोग से किया जाता है. इसमें करीब 2 लाख मजदूरी और हजारों बांस के अलावा अन्य आवश्यक सामग्री लगाई जाती है. इसके बाद ही आवागमन 5 महीनों तक बहाल रहता है. जबकि प्रतिदिन इस बागमती नदी की धारा को हजारों लोग पार करते हैं और यह हमेशा डर बना रहता है कि कभी भी नाव हादसे के कारण वह काल की गाल में समा सकते हैं.

लेकिन, अब आम लोगों की यह नियति बन चुकी है. सरकार और व्यवस्था से उनका भरोसा उठ चुका है. सरकारी कर्मी हो या स्थानीय आम नागरिक सभी इस धारा को पार कर अपना काम निपटाते हैं. पल्स पोलियो अभियान में शामिल कर्मी सत्येंद्र सिंह ने बताया कि अगर अर्ध निर्मित पुल का काम पूरा कर लिया जाता तो यह आम लोगों के लिए डूबते को तिनके का सहारा साबित होता. लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है. नतीजा है कि किसानों को अपने खेतों से फसल लाने ले जाने के अलावे अन्य सभी प्रकार के कामकाज इसी माध्यम से होता है.

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चचरी पुल

क्या कहते हैं अंचलाधिकारी
वहीं, अर्ध निर्मित पुल का काम पूरा नहीं होने के संबंध में पूछे जाने पर अंचलाधिकारी अरविंद प्रताप साही ने बताया कि पुल निगम के द्वारा इसका निर्माण शुरू किया गया था, लेकिन इसका काम बेहद धीमी गति से चल रहा है. जिसकी सही जानकारी नहीं मिल पा रही है. पुल निर्माण के लिए जो भूमि से संबंधित काम थे उसे पूरा कर दिया गया है. इसके बावजूद पुल का काम समयावधि पर नहीं हो पा रहा है, जो आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.

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नाव से ही होता है आवागमन

अंचलाधिकारी अरविंद प्रताप साही ने बताया कि अगर निर्धारित समय पर इसका काम पूरा कर लिया जाता तो इस क्षेत्र के करीब 5 दर्जन गांव के लोगों के लिए यह पुल वरदान साबित होता. पुल के अभाव में आजादी के 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां की स्थानीय जनता को बांस का चचरी पुल और नाव ही नसीब हो पा रहा है.

पेश है एक रिपोर्ट

इन गांवों के लोग करते हैं सफर
इस बागमती नदी को पार कर प्रतिदिन अपने कामकाज को निपटाने के लिए दरियापुर, मौला नगर, छपरा, बलुआ, ननौरामनोरा, हंसौर, डुमरा, चंदौली, कंसार, बेलसंड, दया नगर, मधकौल छोटका बेलसंड के निवासियों को चचरी पुल और नाव से धारा को पार करना नियति बन चुका है. मवेशी का चारा लाना हो या फिर मरीजों को अस्पताल पहुंचाना या छात्र छात्राओं को स्कूल कॉलेज जाना सभी को चचरी पुल और नाव से ही पार करना पड़ता है. इस कारण अक्सर इस घाट पर हादसे भी होते रहते हैं.

सीतामढ़ी: जिले की करीब 5 लाख की आबादी आज के इस आधुनिक युग में भी पुल का दंश झेलने को विवश है. पुल का निर्माण पूरा नहीं हो पाने के कारण आजादी के बाद से अब तक इस क्षेत्र की जनता नाव या चचरी पुल के सहारे ही आवागमन करती है. सीतामढ़ी से मुजफ्फरपुर के मीनापुर प्रखंड को जोड़ने वाली बागमती नदी पर बना है यह पुल जिसका हाल बेहाल है.

अब तक पूरा नहीं हुआ निर्माण कार्य
चार साल पहले पुल निगम द्वारा पुल का निर्माण तो शुरू किया गया लेकिन उसका काम पूरा नहीं हो सका. लिहाजा इस दोनों जिले से जुड़े करीब पांच लाख लोग चचरी पुल और नाव के सहारे अपने सभी आवश्यक कामों का निपटारा करते हैं. ग्रामीणों का यह आवागमन काफी जोखिम भरा होता है. महीनों तक चलने वाला यह चचरी पुल बाढ़ के दौरान ध्वस्त हो जाती है.

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बागमती नदी

कई लोगों की जाती है जान
इसके बाद नाव का परिचालन बहाल होता है और प्रत्येक साल नाव हादसा होने के कारण कई लोगों की जान चली जाती है. लेकिन इस क्षेत्र की जनता के पास बांस पुल और नाव के अलावा कोई अन्य विकल्प भी नहीं है. हॉस्पिटल जाना हो या विद्यालय या कोर्ट कचहरी या फिर खेत खलिहान हर जगह आने जाने के लिए चचरी पुल और नाव ही साधन होता है.

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नाव के सहारे लोग

चचरी पुल का उपयोग करने को विवश हैं लोग
इस चचरी पुल का निर्माण प्रत्येक साल स्थानीय लोगों के जन सहयोग से किया जाता है. इसमें करीब 2 लाख मजदूरी और हजारों बांस के अलावा अन्य आवश्यक सामग्री लगाई जाती है. इसके बाद ही आवागमन 5 महीनों तक बहाल रहता है. जबकि प्रतिदिन इस बागमती नदी की धारा को हजारों लोग पार करते हैं और यह हमेशा डर बना रहता है कि कभी भी नाव हादसे के कारण वह काल की गाल में समा सकते हैं.

लेकिन, अब आम लोगों की यह नियति बन चुकी है. सरकार और व्यवस्था से उनका भरोसा उठ चुका है. सरकारी कर्मी हो या स्थानीय आम नागरिक सभी इस धारा को पार कर अपना काम निपटाते हैं. पल्स पोलियो अभियान में शामिल कर्मी सत्येंद्र सिंह ने बताया कि अगर अर्ध निर्मित पुल का काम पूरा कर लिया जाता तो यह आम लोगों के लिए डूबते को तिनके का सहारा साबित होता. लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है. नतीजा है कि किसानों को अपने खेतों से फसल लाने ले जाने के अलावे अन्य सभी प्रकार के कामकाज इसी माध्यम से होता है.

sitamarhi
चचरी पुल

क्या कहते हैं अंचलाधिकारी
वहीं, अर्ध निर्मित पुल का काम पूरा नहीं होने के संबंध में पूछे जाने पर अंचलाधिकारी अरविंद प्रताप साही ने बताया कि पुल निगम के द्वारा इसका निर्माण शुरू किया गया था, लेकिन इसका काम बेहद धीमी गति से चल रहा है. जिसकी सही जानकारी नहीं मिल पा रही है. पुल निर्माण के लिए जो भूमि से संबंधित काम थे उसे पूरा कर दिया गया है. इसके बावजूद पुल का काम समयावधि पर नहीं हो पा रहा है, जो आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.

sitamarhi
नाव से ही होता है आवागमन

अंचलाधिकारी अरविंद प्रताप साही ने बताया कि अगर निर्धारित समय पर इसका काम पूरा कर लिया जाता तो इस क्षेत्र के करीब 5 दर्जन गांव के लोगों के लिए यह पुल वरदान साबित होता. पुल के अभाव में आजादी के 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां की स्थानीय जनता को बांस का चचरी पुल और नाव ही नसीब हो पा रहा है.

पेश है एक रिपोर्ट

इन गांवों के लोग करते हैं सफर
इस बागमती नदी को पार कर प्रतिदिन अपने कामकाज को निपटाने के लिए दरियापुर, मौला नगर, छपरा, बलुआ, ननौरामनोरा, हंसौर, डुमरा, चंदौली, कंसार, बेलसंड, दया नगर, मधकौल छोटका बेलसंड के निवासियों को चचरी पुल और नाव से धारा को पार करना नियति बन चुका है. मवेशी का चारा लाना हो या फिर मरीजों को अस्पताल पहुंचाना या छात्र छात्राओं को स्कूल कॉलेज जाना सभी को चचरी पुल और नाव से ही पार करना पड़ता है. इस कारण अक्सर इस घाट पर हादसे भी होते रहते हैं.

Intro: जिले के 5 लाख की आबादी को चचरी पुल का सहारा 5 माह बाद नाव के सहारे होता है आवागमन। सरकारी उदासीनता के कारण वर्षों से लंबित पड़ा है पुल का निर्माण। Body:जिले की करीब 5 लाख की आबादी आज इस आधुनिक
युग में भी पूल का दंश झेलने को विवश है। पुल का निर्माण पूरा नहीं हो पाने के कारण आजादी के बाद से अब तक इस क्षेत्र की जनता नाव या चचरी पुल के सहारे ही आवागमन करती है। सीतामढ़ी से मुजफ्फरपुर के मीनापुर प्रखंड को जोड़ने वाली बागमती नदी का यह हाल है चंदौली घाट का। जंहा आज से 4 वर्ष पूर्व पुल निगम द्वारा पुल का निर्माण तो शुरू किया गया लेकिन उसका काम पूरा नहीं हो सका। लिहाजा इस दोनों जिले से जुड़े करीब पांच लाख लोग चचरी पुल और नाव के सहारे अपने सभी आवश्यक कामों का निपटारा करते हैं। और यह आवागमन काफी जोखिम भरा होता है क्योंकि 5 माह तक चलने वाला यह चचरी पुल बाढ़ के दौरान ध्वस्त हो जाती है। इसके बाद नाव का परिचालन बहाल होता है और प्रत्येक वर्ष नाव हादसा होने के कारण कई लोगों की जान चली जाती है। लेकिन इस क्षेत्र की जनता के पास बांस पूल और नाव के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। हॉस्पिटल जाना हो या विद्यालय या कोर्ट कचहरी या फिर खेत खलिहान हर जगह आने जाने के लिए चचरी पुल और नाव ही साधन होता है।
इस चचरी पुल का निर्माण प्रत्येक वर्ष स्थानीय लोगों के जन सहयोग से किया जाता है। जिसमें करीब ₹2 लाख मजदूरी और हजारों बांस के अलावा अन्य आवश्यक सामग्री लगाई जाती है। इसके बाद ही आवागमन 5 माह बहाल रहता है। जबकि प्रतिदिन इस बागमती नदी की धारा को हजारों लोग पार करते हैं और यह हमेशा डर बना रहता है कि कभी भी नाव हादसे के कारण वह काल की गाल में समा सकते हैं। लेकिन आम लोगों की यह अब नियति बन चुकी है उन्हें सरकार और व्यवस्था से भरोसा उठ चुका है। सरकारी कर्मी हो या स्थानीय आम नागरिक सभी इस धारा को पार कर अपना काम निपटा ते हैं। पल्स पोलियो अभियान में शामिल कर्मी सत्येंद्र सिंह ने बताया कि अगर अर्ध निर्मित पुल का काम पूरा कर लिया जाता तो यह आम लोगों के लिए डूबते को तिनके का सहारा साबित होता। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है नतीजा है कि किसानों को अपने खेतों से फसल लाने ले जाने के अलावे अन्य सभी प्रकार के कामकाज इसी माध्यम से होता है।
अर्ध निर्मित पुल का काम पूरा नहीं होने के संबंध में पूछे जाने पर अंचलाधिकारी अरविंद प्रताप साही ने बताया कि फूल निगम के द्वारा इसका निर्माण शुरू किया गया था। लेकिन इसका काम बेहद धीमी गति से चल रहा है जिसकी सही जानकारी नहीं मिल पा रही है। पुल निर्माण के लिए जो भूमि से संबंधित काम थे उसे पूरा कर दिया गया है। इसके बावजूद पुल का काम समयावधि पर नहीं हो पा रहा है जो आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। अगर निर्धारित समय पर इसका काम पूरा कर लिया जाता तो इस क्षेत्र के करीब 5 दर्जन गांव के लोगो के लिए यह पुल वरदान साबित होता। पुल के अभाव में आजादी के 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां की स्थानीय जनता को बांस का चचरी पुल और नाव ही नसीब हो पा रहा है।
इस बागमती नदी को पार कर प्रतिदिन अपने कामकाज को निपटाने के लिए दरियापुर, मौला नगर, छपरा, बलुआ, ननौरामनोरा, हंसौर, डुमरा, चंदौली, कंसार, बेलसंड, दया नगर, मधकौल छोटका बेलसंड के निवासियों को चचरी पुल और नाव से धारा को पार करना नियति बन चुका है। मवेशी का चारा लाना हो या फिर मरीजों को अस्पताल पहुंचाना या छात्र छात्राओं को स्कूल कॉलेज जाना सभी को चचरी पुल और नाव से ही पार करना पड़ता है। और इस कारण अक्सर इस घाट पर हादसे भी होते रहते हैं।
बाइट 1. सत्येंद्र प्रसाद सिंहपा। पल्स पोलियो कर्मी। माथे में पाग बांधे हुए।
बाइट 2. मोहम्मद रशीद। चचरी पुल बनाने वाला उजला शर्ट में।
बाइट 3. बंकर शाह। स्थानीय निवासी चंदौली गांव हरा स्ट्राइप स्वेटर में।
बाइट 4. अरविंद प्रताप शाही। अंचलाधिकारी।
पी टू सी 5.
विजुअल 6,7,8,9,10, 11,12,13,14,15,16Conclusion:पी टू सी :_राहुल देव सोलंकी। सीतामढ़ी।
Last Updated : Nov 28, 2019, 7:30 AM IST
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