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सीतामढ़ी: सरकारी लापरवाही का दंश झेल रहा माता जानकी का जन्मस्थान, विकास की आस

सीतामढ़ी का पंथपकड़ गांव सालों से विकास की राह देख रहा है. रामायण काल में माता जानकी की डोली यहां रुकी थी. इस जगह की विशेष मान्यता है.

पंथपकड़ गांव
पंथपकड़ गांव
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Published : Sep 3, 2020, 2:33 PM IST

Updated : Sep 3, 2020, 7:54 PM IST

सीतामढ़ी: माता सीता की जन्मस्थली होने के कारण जिले का अपना विशेष पौराणिक महत्व है. जगत जननी माता सीता के जन्म से लेकर विवाह काल की कहानियां यहां से जुड़ी हुई है. लेकिन, इसे संरक्षण और विकास की तरफ सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है.

सीतामढ़ी से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर मां जानकी के पिता राजा जनक की नगरी जनकपुर धाम स्थित है. जहां माता सीता का बचपन बीता और फिर ब्याह कर वह यही से अयोध्या के लिए रवाना हुई. अध्योध्या जाने के क्रम में उनका काफिल पंथपाकड़ गांव में रुका था. जानकारी के मुताबिक रात्रि विश्राम को लेकर मां जानकी की डोली यहां रुकी थी. लेकिन आज इस स्थान की कोई पूछ नहीं है.

माता सीता से जुड़ी खास याद
जिला मुख्यालय से मात्र 10 किलोमीटर उत्तर और पूर्व की दिशा में पंथपकड़ गांव स्थित है. कहा जाता है कि सुबह के समय मां जानकी ने पाकड़ के पेड़ की डाली से दातुन किया और उसके चीरे को वहीं फेक दिया. कई काल बीतने के बाद वह एक बड़ा पेड़ निकल आया. जो आज भी उस पुरानी दास्तान की हकीकत बंया करता है. एक पेड़ की जड़ से यहां सैकड़ों की संख्या में पकड़ के विशाल पेड़ निकल आए हैं. मौजूदा समय में लोग इस पवित्र स्थल का दर्शन कर अपने आप को धन्य मानते हैं.

पंथपकड़ गांव में नहीं है समुचित व्यवस्था
पंथपकड़ गांव में नहीं है समुचित व्यवस्था

मां जानकी के नाम पर खेत का नाम
वहीं जानकारों, स्थानीय लोगों के साथ धर्मिक मान्यताओं के मुताबिक आज के दिनों में उस पेड़ की जड़ें जिस किसी के खेत में चली जाती है लोग उसे मां जानकी के नाम कर देते हैं. इस पवित्र स्थल की व्यापक चर्चा पौराणिक और धार्मिक ग्रंथो में भी मिलती है. वाल्मीकि रामायण में इस स्थल को विशेष महत्त्व दिया गया है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस पवित्र स्थल पर ही राम और पशुराम की संवाद भी हुआ था. जानकारों का कहना है इतना पवित्र स्थल होने के बाद भी यह स्थल सरकारी उदासीनता का शिकार हो रहा है. इसके विकास की दिशा में कोई कारगर पहल नहीं किया गया है.

यहां बने कुंड का प्रयोग करती थी मां सीता
इस परिसर में एक प्राचीनतम कुण्ड भी है. ठहराव के दिन मां सीता ने इस कुण्ड के पानी का उपयौग किया था. लोगों की माने तो इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता है. लोगों ने कहा कि इस कुंड में बड़ी संख्या में मछलियों का वास है. इनके सेवल पर सख्त पाबंदी है. स्थानीय लोग इनके भोजन का जुगाड़ भी स्वंय करते हैं. यह स्थल आस्था का केंद्र है. यहां हमेशा पर्यटक आते हैं और इस आलौकिक स्थल का दर्शन करते हैं.

नहीं है ठहराव की व्यवस्था
यहां आने वाले पर्यटकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. दरअसल, यहां टूरिस्ट गाइड और ठहराव की मुक्कमल व्यवस्था नहीं है. सुविधाओं के अभाव में लोग इस स्थल का आनंद नहीं ले पाते हैं. इस पवित्र स्थल की उपेक्षा से स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ काफी नाराजगी है. सीतामढ़ी के स्थानीय सांसद सुनील कुमार पिंटू मौजूदा सरकार में पूर्व पर्यटन मंत्री थे. लेकिन उन्होंने भी क्षेत्र के विकास में खास रुचि नहीं ली. नतीजतन यह इलाका उपेक्षित पड़ा हुआ है.

सीतामढ़ी: माता सीता की जन्मस्थली होने के कारण जिले का अपना विशेष पौराणिक महत्व है. जगत जननी माता सीता के जन्म से लेकर विवाह काल की कहानियां यहां से जुड़ी हुई है. लेकिन, इसे संरक्षण और विकास की तरफ सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है.

सीतामढ़ी से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर मां जानकी के पिता राजा जनक की नगरी जनकपुर धाम स्थित है. जहां माता सीता का बचपन बीता और फिर ब्याह कर वह यही से अयोध्या के लिए रवाना हुई. अध्योध्या जाने के क्रम में उनका काफिल पंथपाकड़ गांव में रुका था. जानकारी के मुताबिक रात्रि विश्राम को लेकर मां जानकी की डोली यहां रुकी थी. लेकिन आज इस स्थान की कोई पूछ नहीं है.

माता सीता से जुड़ी खास याद
जिला मुख्यालय से मात्र 10 किलोमीटर उत्तर और पूर्व की दिशा में पंथपकड़ गांव स्थित है. कहा जाता है कि सुबह के समय मां जानकी ने पाकड़ के पेड़ की डाली से दातुन किया और उसके चीरे को वहीं फेक दिया. कई काल बीतने के बाद वह एक बड़ा पेड़ निकल आया. जो आज भी उस पुरानी दास्तान की हकीकत बंया करता है. एक पेड़ की जड़ से यहां सैकड़ों की संख्या में पकड़ के विशाल पेड़ निकल आए हैं. मौजूदा समय में लोग इस पवित्र स्थल का दर्शन कर अपने आप को धन्य मानते हैं.

पंथपकड़ गांव में नहीं है समुचित व्यवस्था
पंथपकड़ गांव में नहीं है समुचित व्यवस्था

मां जानकी के नाम पर खेत का नाम
वहीं जानकारों, स्थानीय लोगों के साथ धर्मिक मान्यताओं के मुताबिक आज के दिनों में उस पेड़ की जड़ें जिस किसी के खेत में चली जाती है लोग उसे मां जानकी के नाम कर देते हैं. इस पवित्र स्थल की व्यापक चर्चा पौराणिक और धार्मिक ग्रंथो में भी मिलती है. वाल्मीकि रामायण में इस स्थल को विशेष महत्त्व दिया गया है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस पवित्र स्थल पर ही राम और पशुराम की संवाद भी हुआ था. जानकारों का कहना है इतना पवित्र स्थल होने के बाद भी यह स्थल सरकारी उदासीनता का शिकार हो रहा है. इसके विकास की दिशा में कोई कारगर पहल नहीं किया गया है.

यहां बने कुंड का प्रयोग करती थी मां सीता
इस परिसर में एक प्राचीनतम कुण्ड भी है. ठहराव के दिन मां सीता ने इस कुण्ड के पानी का उपयौग किया था. लोगों की माने तो इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता है. लोगों ने कहा कि इस कुंड में बड़ी संख्या में मछलियों का वास है. इनके सेवल पर सख्त पाबंदी है. स्थानीय लोग इनके भोजन का जुगाड़ भी स्वंय करते हैं. यह स्थल आस्था का केंद्र है. यहां हमेशा पर्यटक आते हैं और इस आलौकिक स्थल का दर्शन करते हैं.

नहीं है ठहराव की व्यवस्था
यहां आने वाले पर्यटकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. दरअसल, यहां टूरिस्ट गाइड और ठहराव की मुक्कमल व्यवस्था नहीं है. सुविधाओं के अभाव में लोग इस स्थल का आनंद नहीं ले पाते हैं. इस पवित्र स्थल की उपेक्षा से स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ काफी नाराजगी है. सीतामढ़ी के स्थानीय सांसद सुनील कुमार पिंटू मौजूदा सरकार में पूर्व पर्यटन मंत्री थे. लेकिन उन्होंने भी क्षेत्र के विकास में खास रुचि नहीं ली. नतीजतन यह इलाका उपेक्षित पड़ा हुआ है.

Last Updated : Sep 3, 2020, 7:54 PM IST
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