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सीतामढ़ी: रीगा शुगर मिल का पेराई सत्र समाप्त, किसानों के भुगतान पर लगा ग्रहण

रीगा शुगर मिल का पेराई सत्र 2019- 20 का समापन हो गया है. इस सत्र में कम उत्पादन होने के कारण मील प्रबंधक चिंतित है. उनका कहना है कि इतने कम उत्पादन से किसानों और कर्मचारियों का वेतन का भुगतान कैसे हो पायेगा. जबकि किसी तरह की सरकारी सहायता भी नहीं मिल रही है.

रीगा शुगर मिल
सीतामढ़ी
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Published : Mar 6, 2020, 3:08 PM IST

सीतामढ़ी: जिले का एकमात्र उद्योग रीगा शुगर मिल का पेराई सत्र 2019- 20 का समापन हो गया है. यह पिराई सत्र केवल 74 दिन ही चला. ये शुगर मिल के इतिहास का सबसे अल्पकालीन सत्र रहा. इतने कम उत्पादन से ना तो किसानों के बकाए का भुगतान किया जा सकता है. ना ही कर्मचारियों के वेतन का. इसलिए इस सत्र को प्रबंधन काला सत्र मान रहा है.

बता दें कि 15 दिसंबर 2019 से पिराई सत्र प्रारंभ हुआ था जो 29 फरवरी 2020 तक चला. इन 74 दिनों के दौरान करीब 20 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई की गई और उससे मात्र एक लाख 86 हजार क्विंटल चीनी का उत्पादन किया गया. जबकि विगत पेराई सत्र 2018- 19 में 148 दिनों का पेराई सत्र रहा और उस दौरान 45 लाख 26 हजार क्विंटल गन्ने की पेराई की गई थी. जिससे 362277 क्विंटल चीनी तैयार हुआ था.

रीगा शुगर मिल
रीगा शुगर मिल

लक्ष्य से कम गन्ना पहुंचा मिल
इस पेराई सत्र में मिल प्रबंधन को 50 फीसदी से भी कम गन्ने से संतोष करना पड़ा है. क्योंकि 13 जुलाई को आई भीषण बाढ़ के कारण शिवहर, सीतामढ़ी के साथ-साथ पूर्वी चंपारण जिले के किसानों का गन्ना नुकसान हो गया था. इसलिए गन्ने की बेहतर फसल नहीं होने के कारण लक्ष्य से काफी कम गन्ना मिलों तक पहुंचा.

पेश है रिपोर्ट

नहीं मिल रहा किसी भी प्रकार का सरकारी सहायाता
इस मामले को लेकर रीगा शुगर मिल के महाप्रबंधक शशि गुप्ता ने कहा कि किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण मिल की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है. इतने कम उत्पादन के कारण किसानों का बकाया और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करना मुश्किल हो चुका है. ऊपर से सरकार की गलत नीति के कारण अब किसान नए प्रभेद का गन्ना नहीं लगा रहे हैं. लिहाजा शुगर मिल बंद होने की स्थिति में आ चुकी है.

रीगा शुगर मिल
गन्ना

किसान और कर्मचारियों के पैसे की भुगतान को लेकर समस्या
इसके अलावे प्रबंधन ने बताया कि पिछले पेराई सत्र में उत्पादित सभी चीनी सरकार के कब्जे में है. जिसकी एक मुश्त बिक्री कर किसानों के बकाया का भुगतान नहीं किया जा रहा है. वहीं, इस पेराई सत्र में उत्पादित चीनी का मूल्य 61 करोड़ 38 लाख रुपये आंकी गई है. लेकिन किसानों का जो गन्ना खरीद किया गया है उस गन्ने की कीमत 59 करोड़ 98 लाख होता है. ऐसे में भला किसानों का भुगतान और कर्मियों के वेतन कैसे दिए जा सकते हैं.

सीतामढ़ी: जिले का एकमात्र उद्योग रीगा शुगर मिल का पेराई सत्र 2019- 20 का समापन हो गया है. यह पिराई सत्र केवल 74 दिन ही चला. ये शुगर मिल के इतिहास का सबसे अल्पकालीन सत्र रहा. इतने कम उत्पादन से ना तो किसानों के बकाए का भुगतान किया जा सकता है. ना ही कर्मचारियों के वेतन का. इसलिए इस सत्र को प्रबंधन काला सत्र मान रहा है.

बता दें कि 15 दिसंबर 2019 से पिराई सत्र प्रारंभ हुआ था जो 29 फरवरी 2020 तक चला. इन 74 दिनों के दौरान करीब 20 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई की गई और उससे मात्र एक लाख 86 हजार क्विंटल चीनी का उत्पादन किया गया. जबकि विगत पेराई सत्र 2018- 19 में 148 दिनों का पेराई सत्र रहा और उस दौरान 45 लाख 26 हजार क्विंटल गन्ने की पेराई की गई थी. जिससे 362277 क्विंटल चीनी तैयार हुआ था.

रीगा शुगर मिल
रीगा शुगर मिल

लक्ष्य से कम गन्ना पहुंचा मिल
इस पेराई सत्र में मिल प्रबंधन को 50 फीसदी से भी कम गन्ने से संतोष करना पड़ा है. क्योंकि 13 जुलाई को आई भीषण बाढ़ के कारण शिवहर, सीतामढ़ी के साथ-साथ पूर्वी चंपारण जिले के किसानों का गन्ना नुकसान हो गया था. इसलिए गन्ने की बेहतर फसल नहीं होने के कारण लक्ष्य से काफी कम गन्ना मिलों तक पहुंचा.

पेश है रिपोर्ट

नहीं मिल रहा किसी भी प्रकार का सरकारी सहायाता
इस मामले को लेकर रीगा शुगर मिल के महाप्रबंधक शशि गुप्ता ने कहा कि किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण मिल की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है. इतने कम उत्पादन के कारण किसानों का बकाया और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करना मुश्किल हो चुका है. ऊपर से सरकार की गलत नीति के कारण अब किसान नए प्रभेद का गन्ना नहीं लगा रहे हैं. लिहाजा शुगर मिल बंद होने की स्थिति में आ चुकी है.

रीगा शुगर मिल
गन्ना

किसान और कर्मचारियों के पैसे की भुगतान को लेकर समस्या
इसके अलावे प्रबंधन ने बताया कि पिछले पेराई सत्र में उत्पादित सभी चीनी सरकार के कब्जे में है. जिसकी एक मुश्त बिक्री कर किसानों के बकाया का भुगतान नहीं किया जा रहा है. वहीं, इस पेराई सत्र में उत्पादित चीनी का मूल्य 61 करोड़ 38 लाख रुपये आंकी गई है. लेकिन किसानों का जो गन्ना खरीद किया गया है उस गन्ने की कीमत 59 करोड़ 98 लाख होता है. ऐसे में भला किसानों का भुगतान और कर्मियों के वेतन कैसे दिए जा सकते हैं.

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