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शेखपुरा: 1942 की अगस्त क्रांति में युवाओं ने थाना, रजिस्ट्री कार्यालय पर फहरा दिया था तिरंगा

शेखपुरा जिला के युवाओं ने भी देश की स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभाई थी. 8 अगस्त 1942 के कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में महात्मा गांधी द्वारा आहूत की गई अगस्त क्रांति में शेखपुरा जिले के युवाओं की भूमिका अहम रही थी. 72वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन वीर सपूतों को याद करने की जरूरत है.

बरबीघा प्रखंड अंतर्गत माउर गांव स्थित पैतृक घर पर श्री बाबू की प्रतिमा
बरबीघा प्रखंड अंतर्गत माउर गांव स्थित पैतृक घर पर श्री बाबू की प्रतिमा
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Published : Jan 25, 2021, 10:57 PM IST

शेखपुराः शेखपुरा जिला के युवाओं ने भी देश की स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभाई थी. 72वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन वीर सपूतों को याद करने की जरूरत है. ताकि देश के भविष्य उसकी गाथा को अपनी जीवन में शामिल कर सकें. 8 अगस्त 1942 के कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में महात्मा गांधी द्वारा आहूत की गई अगस्त क्रांति में शेखपुरा जिले के युवाओं ने अहम भूमिका निभाई थी.

सात दिनों तक बंद रहा था थाना
बरबीघा थाना में 12 अगस्त 1942 को एक सार्वजनिक सभा हुई और 16 अगस्त को डाकघर तथा डाकबंगला चौराहे पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया. इसका नेतृत्व माउर गांव निवासी जगदीश प्रसाद सिंह, शेरपर गांव निवासी कैलाश प्रसाद सिंह, राजेंद्र प्रसाद सिंह ने किया. इन कांग्रेसियों के भय से स्थानीय थाना सात दिनों तक बंद रहा. 23 अगस्त 1942 को एक दर्जन गोरे सैनिकों ने बरबीघा के समीपवर्ती अलीनगर मुहल्ले के भगवती चरण वर्मा एवं तेउस गांव निवासी श्रीकृष्ण मोहन प्यारे सिंह को गिरफ्तार करने में सफलता मिली थी.

1942 में थाना कांग्रेस कमेटी शेखपुरा के सभापति चुनकेश्वर प्रसाद और मंत्री सिद्धेश्वर शर्मा थे. 16 अगस्त को शेखपुरा थाना और रजिस्ट्री कार्यालय पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया था. स्कूल में भी हड़ताल रही, रेल लाइन भी बाधित की गई थी.

बरबीघा प्रखंड कार्यालय में लगा स्वन्त्रता सेनानी की शिलापट
बरबीघा प्रखंड कार्यालय में लगा स्वन्त्रता सेनानी की शिलापट

ये भी पढ़ें- रामविलास पासवान को मरणोपरांत पद्मभूषण सम्मान, बिहार के कुल 5 लोगों को पद्म अवॉर्ड

बिहार केसरी वकालत छोड़ इस स्वतंत्रता आंदोलन में हुए थे शामिल
देश की स्वतंत्रता आंदोलन में बरबीघा के माउर गांव निवासी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह अपनी युवा अवस्था में वकालत के प्रैक्टिस को छोड़कर कूदे. और युवा अवस्था में अपने नेतृत्व के बुते वह पुरे बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन के बड़े नायक बने. अपने प्रखर नेतृत्व और कर्मठता के बदौलत बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बने और अपने जीवन के अंतिम काल तक इस पद पर रहे. 1887 में जन्मे श्रीकृष्ण सिंह ने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव के प्राइमरी स्कूल से की. छात्रवृति पाकर आगे की पढ़ाई के लिए मुंगेर जिला स्कूल में भर्ती हुए.

1914 के बाद स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े
1914 में एलएलबी की डिग्री कोलकाता से की. फिर मुंगेर में ही वकालत की प्रैक्टिस करने लगे. इसी दौरान वह देश के स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित होकर आंदोलन से जुड़े. 1916 में उनकी पहली मुलाकत महात्मा गाँधी से बनारस में हुई. जिसके बाद वह पूरी तरह से देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूदे पड़े. 1922 में उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया. 1923 में वह ऑल इंडिया कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और देश की आजादी में वर्तमान शेखपुरा का लाल बिहार को नेतृत्व करने की गौरवशाली भूमिका निभाई.

ये भी पढ़ें- किसान आंदोलन के समर्थन में बिहार में भी ट्रैक्टर मार्च, पटना में नहीं मिली इजाजत

कृष्ण मोहन प्यारे सिंह उर्फ लाला बाबू
बरबीघा के तेउस गांव निवासी कृष्ण मोहन प्यारे सिंह उर्फ लाला बाबू भी स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. 4 जनवरी 1901 में जन्में कृष्ण मोहन प्यारे सिंह ने 1911 में बीएन हाई स्कूल में पढ़ाई करने के बाद देश की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के आह्वान पर कूद पड़े. 1928 में पुनः बीएन कॉलेज में वकालत की पढ़ाई शुरू की. यह 1933 में मुंगेर जिला परिषद के सदस्य चुने गए, 1948 तक मुंगेर जिला परिषद के उपाध्यक्ष बने.

1950 में इस पद से इस्तीफा दे दिया. यह 1952 से 1957 तक बरबीघा के पहले विधायक रहे. 1957 से 1958 एक साल तक राज्यसभा के सदस्य रहे. 1958 से वह 12 वर्षों तक लगातार बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में लाला बाबू ने अपनी सेवा प्रदान की.

17 साल की उम्र में जगदीश प्रसाद सिंह देश लिए जानी पड़ी जेल
बरबीघा के माउर गांव निवासी जगदीश प्रसाद सिंह देश के स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया. 1910 को माउर गांव में जन्मे 1927 में जेल भेज दिए गए थे. तब उनकी उम्र महज 17 वर्ष थी और वह दसवीं कक्षा के छात्र थे. 1930 में गांधी जी के नमक आंदोलन में साथ रहने का मौका मिला. इसके बाद वह जीवन पर्यन्त बिना नमक के भोजन लेते रहे.

ये भी पढ़ें- लालू प्रसाद की जमानत याचिका पर 29 जनवरी को हो सकती है सुनवाई

देश की आजादी के लिए राजेंद्र प्रसाद सिंह को गवांनी पड़ी थी हाथ
बरबीघा के शेरपर गांव निवासी 1909 में जन्में राजेंद्र प्रसाद सिंह को देश की आजादी की लड़ाई में भाग लेने के कारण अपना बांया हाथ गवांना पड़ा था. अंग्रेज अफसर के पटना यात्रा को बाधित करने के लिए उन्होंने बम विस्फोट किया था. जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर उनका बांया हाथ काट दिया गया. उसके बाद वह वर्षों तक बक्सर जेल में बंद रहे थे.

बगीचा में सभा कर रहे नौ क्रांतिकारी हुए थे गिरफ्तार
देश की आजादी के आंदोलन को गति देने में जुटे शेखपुरा के नौजवान 1942 को 9 सितंबर को शेखपुरा शहर के महादेव नगर स्थित लुल्ही बगीचा में सभा कर रहे थे. इस दौरान वहां पहुंचे गोरे सैनिकों ने नौ क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर खूब पिटाई की. जबकि कई भागने में कामयाब रहे. जियनबीघा गांव निवासी रामेश्वर महतों तथा मेदनी शर्मा को एक-एक साल सजा सुनाई गयी थी.

इसके साथ ही वासुदेव लाल वर्णवाल, महेंद्र सिंह (एकाढ़ा), मो.युसूफ (हसौड़ी ), सिद्धेश्वर शर्मा (मेहुस), चुनकेश्वर प्रसाद सिंह (सोहदी), द्वारिका शर्मा (चितौरा), मेदनी शर्मा (कोसरा), दुःखीलाल तथा रामस्वरूप वर्मा (शेखपुरा बाजार), पंचानन शर्मा (बरबीघा) सहित कई अन्य ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी.

शेखपुराः शेखपुरा जिला के युवाओं ने भी देश की स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभाई थी. 72वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन वीर सपूतों को याद करने की जरूरत है. ताकि देश के भविष्य उसकी गाथा को अपनी जीवन में शामिल कर सकें. 8 अगस्त 1942 के कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में महात्मा गांधी द्वारा आहूत की गई अगस्त क्रांति में शेखपुरा जिले के युवाओं ने अहम भूमिका निभाई थी.

सात दिनों तक बंद रहा था थाना
बरबीघा थाना में 12 अगस्त 1942 को एक सार्वजनिक सभा हुई और 16 अगस्त को डाकघर तथा डाकबंगला चौराहे पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया. इसका नेतृत्व माउर गांव निवासी जगदीश प्रसाद सिंह, शेरपर गांव निवासी कैलाश प्रसाद सिंह, राजेंद्र प्रसाद सिंह ने किया. इन कांग्रेसियों के भय से स्थानीय थाना सात दिनों तक बंद रहा. 23 अगस्त 1942 को एक दर्जन गोरे सैनिकों ने बरबीघा के समीपवर्ती अलीनगर मुहल्ले के भगवती चरण वर्मा एवं तेउस गांव निवासी श्रीकृष्ण मोहन प्यारे सिंह को गिरफ्तार करने में सफलता मिली थी.

1942 में थाना कांग्रेस कमेटी शेखपुरा के सभापति चुनकेश्वर प्रसाद और मंत्री सिद्धेश्वर शर्मा थे. 16 अगस्त को शेखपुरा थाना और रजिस्ट्री कार्यालय पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया था. स्कूल में भी हड़ताल रही, रेल लाइन भी बाधित की गई थी.

बरबीघा प्रखंड कार्यालय में लगा स्वन्त्रता सेनानी की शिलापट
बरबीघा प्रखंड कार्यालय में लगा स्वन्त्रता सेनानी की शिलापट

ये भी पढ़ें- रामविलास पासवान को मरणोपरांत पद्मभूषण सम्मान, बिहार के कुल 5 लोगों को पद्म अवॉर्ड

बिहार केसरी वकालत छोड़ इस स्वतंत्रता आंदोलन में हुए थे शामिल
देश की स्वतंत्रता आंदोलन में बरबीघा के माउर गांव निवासी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह अपनी युवा अवस्था में वकालत के प्रैक्टिस को छोड़कर कूदे. और युवा अवस्था में अपने नेतृत्व के बुते वह पुरे बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन के बड़े नायक बने. अपने प्रखर नेतृत्व और कर्मठता के बदौलत बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बने और अपने जीवन के अंतिम काल तक इस पद पर रहे. 1887 में जन्मे श्रीकृष्ण सिंह ने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव के प्राइमरी स्कूल से की. छात्रवृति पाकर आगे की पढ़ाई के लिए मुंगेर जिला स्कूल में भर्ती हुए.

1914 के बाद स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े
1914 में एलएलबी की डिग्री कोलकाता से की. फिर मुंगेर में ही वकालत की प्रैक्टिस करने लगे. इसी दौरान वह देश के स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित होकर आंदोलन से जुड़े. 1916 में उनकी पहली मुलाकत महात्मा गाँधी से बनारस में हुई. जिसके बाद वह पूरी तरह से देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूदे पड़े. 1922 में उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया. 1923 में वह ऑल इंडिया कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और देश की आजादी में वर्तमान शेखपुरा का लाल बिहार को नेतृत्व करने की गौरवशाली भूमिका निभाई.

ये भी पढ़ें- किसान आंदोलन के समर्थन में बिहार में भी ट्रैक्टर मार्च, पटना में नहीं मिली इजाजत

कृष्ण मोहन प्यारे सिंह उर्फ लाला बाबू
बरबीघा के तेउस गांव निवासी कृष्ण मोहन प्यारे सिंह उर्फ लाला बाबू भी स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. 4 जनवरी 1901 में जन्में कृष्ण मोहन प्यारे सिंह ने 1911 में बीएन हाई स्कूल में पढ़ाई करने के बाद देश की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के आह्वान पर कूद पड़े. 1928 में पुनः बीएन कॉलेज में वकालत की पढ़ाई शुरू की. यह 1933 में मुंगेर जिला परिषद के सदस्य चुने गए, 1948 तक मुंगेर जिला परिषद के उपाध्यक्ष बने.

1950 में इस पद से इस्तीफा दे दिया. यह 1952 से 1957 तक बरबीघा के पहले विधायक रहे. 1957 से 1958 एक साल तक राज्यसभा के सदस्य रहे. 1958 से वह 12 वर्षों तक लगातार बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में लाला बाबू ने अपनी सेवा प्रदान की.

17 साल की उम्र में जगदीश प्रसाद सिंह देश लिए जानी पड़ी जेल
बरबीघा के माउर गांव निवासी जगदीश प्रसाद सिंह देश के स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया. 1910 को माउर गांव में जन्मे 1927 में जेल भेज दिए गए थे. तब उनकी उम्र महज 17 वर्ष थी और वह दसवीं कक्षा के छात्र थे. 1930 में गांधी जी के नमक आंदोलन में साथ रहने का मौका मिला. इसके बाद वह जीवन पर्यन्त बिना नमक के भोजन लेते रहे.

ये भी पढ़ें- लालू प्रसाद की जमानत याचिका पर 29 जनवरी को हो सकती है सुनवाई

देश की आजादी के लिए राजेंद्र प्रसाद सिंह को गवांनी पड़ी थी हाथ
बरबीघा के शेरपर गांव निवासी 1909 में जन्में राजेंद्र प्रसाद सिंह को देश की आजादी की लड़ाई में भाग लेने के कारण अपना बांया हाथ गवांना पड़ा था. अंग्रेज अफसर के पटना यात्रा को बाधित करने के लिए उन्होंने बम विस्फोट किया था. जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर उनका बांया हाथ काट दिया गया. उसके बाद वह वर्षों तक बक्सर जेल में बंद रहे थे.

बगीचा में सभा कर रहे नौ क्रांतिकारी हुए थे गिरफ्तार
देश की आजादी के आंदोलन को गति देने में जुटे शेखपुरा के नौजवान 1942 को 9 सितंबर को शेखपुरा शहर के महादेव नगर स्थित लुल्ही बगीचा में सभा कर रहे थे. इस दौरान वहां पहुंचे गोरे सैनिकों ने नौ क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर खूब पिटाई की. जबकि कई भागने में कामयाब रहे. जियनबीघा गांव निवासी रामेश्वर महतों तथा मेदनी शर्मा को एक-एक साल सजा सुनाई गयी थी.

इसके साथ ही वासुदेव लाल वर्णवाल, महेंद्र सिंह (एकाढ़ा), मो.युसूफ (हसौड़ी ), सिद्धेश्वर शर्मा (मेहुस), चुनकेश्वर प्रसाद सिंह (सोहदी), द्वारिका शर्मा (चितौरा), मेदनी शर्मा (कोसरा), दुःखीलाल तथा रामस्वरूप वर्मा (शेखपुरा बाजार), पंचानन शर्मा (बरबीघा) सहित कई अन्य ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी.

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