छपराः परसा थाना क्षेत्र के सगुनी श्री रामपुर गांव के शहीद रंजय ठाकुर का स्मारक लगाने के लिए छः साल भी कम पड़ गए. देश के लिए शहीद हुए इस सैनिक के गांव में उसकी कोई याद नहीं है. सरकारी महकमे, सांसद और विधायक की लापरवाही की वजह शहीद का इतिहास मिटता जा रहा. इनके परिजनों से वादा तो खूब किया गए लेकिन पूरा एक भी नहीं हुआ. शहीद के परिजनों को आश्वासन का घूंट पिलाने वाले विधायक, मंत्री और अधिकारी भी मौन हो गए हैं. शहीद के परिजन मंत्री और नेता के कार्यालय के चक्कर लगाने को मजबूर हैं.
पूरा नहीं हुआ एक भी वादा
छः साल गुजरने के बाद भी सैनिक को इतिहास के रूप में याद रखने के लिए आजतक एक भी घोषणा पूरी नहीं हुई. सभी घोषणाएं फाइल में ही सिमट कर रह गईं. पैतृक गांव शहीद का शव पहुंचने की खबर मिलते ही तत्कालीन विधायक कृष्ण कुमार, मंत्री जनार्धन सिंह सिग्रीवाल, सांसद और मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने पहुंचकर परिजनों को सांत्वना दी. शहीद के जीवन को इतिहास के रूप में याद रखने के लिए प्राथमिक विद्यालय सगुनी के नजदीक शहीद स्मारक का निर्माण कराने, शहीद के नाम पर सगुनी विद्यालय परिसर में पुस्तकालय खोलवाने, तोरण द्वार बनाने और शहीद दिवस पर प्रशासनिक स्तर से शहीद दिवस मनाने समेत तमाम लंबी चौड़ी घोषणाएं विधायक और मंत्री ने की थी.
दर-दर भटक रहे हैं परिजन
अधिकारी और नेताओं की घोषणाओं को धरातल पर उतरने और शहीद का स्मारक स्थापित कराने के लिए पिता हवलदार बालेश्वर ठाकुर, पत्नी वंदना देवी और भाई चुनमुन ठाकुर दफ्तरों में 6 सालों से भटक रहे हैं. स्मारक स्थापित करने के लिए भाई चुनमुन ठाकुर प्रखंड से राजधानी तक दफ्तरों की फाइलों के पीछे भागते रहे. लेकिन 6 साल गुजरने के बाद भी शहीद का स्मारक स्थापित नहीं हुआ. इसके अलावा पुस्तकालय का निर्माण, सड़क का निर्माण, शहीद के नाम पर खुलने वाला पेट्रोल पम्प सारी घोषणाएं फाइलों में ही सिमट कर रह गईं.
श्रीनगर में हुए थे रंजय शहीद
शहीद रंजय देश की सुरक्षा के लिए श्रीनगर के कुपवाड़ा में ड्यूटी पर तैनाथ थे. 24 जनवरी 2012 को डयूटी के दौरान बर्फ की चट्टान फिसलने के कारण शहीद हुए थे. शहीद होने के सात माह बाद शहीद के शव को बर्फ से निकाला गया था और 4 जुलाई 2012 को आर्मी के अधिकारीयों ने शहीद के शव को पैतृक गांव पहुंचाया था.
'घोषणाओं से उठने लगा विश्वास'
शहीद के भाई ने कहा कि विधायक, मंत्री और सांसद ने जो भी घोषणाएं की आजतक उस पर कोई सार्थक पहल नहीं हुई. स्मारक, पुस्तकालय, पीसीसी सड़क निर्माण आदि के लिए सासद, विधायक से लिखित शिकायत कर काम को पूरा कराने की अपील की गई. लेकिन छः साल भी स्मारक निर्माण कराने के लिए कम पड़ गए. अब नेताओं की घोषणा से विश्वास उठने लगा है.