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दिव्यांगता को नहीं मानी उड़ान में रुकावट, पढ़ाई कर अब बच्चों को दे रही शिक्षा, डॉक्टर बनने की है चाहत - कॉलेज और स्कूल

दिव्यांग सुमन को डॉक्टर बनना है. रोजाना घर से कॉलेज और बच्चों को पढ़ाने स्कूल जाती है. पढ़ने-पढ़ाने की ऐसा ललक कि गरीबी और आर्थिक तंगी को भी आड़े नहीं आने देती.

दिव्यांग सुमन
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Published : Jul 27, 2019, 1:55 PM IST

सारण: हौसले को अगर पंख मिल जाये तो उसे उड़ान भरने से कोई नहीं रोक सकता. कमजोरी को अपनी ताकत में बदलना ही विजयपथ की पहली सीढ़ी है. बैसाखी के सहारे अपने कदमों को आगे बढ़ाती सारण की ये बेटी अपने दृढ़ निश्चय के आगे हालात बदलने में लगी है.

हालात से लड़ रही दिव्यांग सुमन
वो वैसाखी के सहारे चलती है, खुद पढ़ती है, दूसरे बच्चों को भी पढ़ाती है, घर के हालात ठीक नहीं हैं, लेकिन हौसले कम नहीं हुए. रोजाना घर से कॉलेज और स्कूल, समय से लड़ने की यह जिद सारण की बेटी सुमन कुमारी की है. जिसे पढ़ने की ललक है. गरीबी और आर्थिक तंगी से लड़ने का गजब का हौसला. ये हौसला अपने पिता से है मिलता है, जो मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहे हैं. परिवार की आर्थिक तंगी और दिव्यांग होने के बावजदू हालात के आगे झुकने को तैयार नहीं है. इस पथ पर सुमन को पिता का भी बखूबी सहयोग मिल रहा है.

suman kumari saran
स्कूल में पढ़ाती सुमन

दूसरे के खेतों में काम करते हैं पिता
दिव्यांग सुमन ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान संघर्ष के बारे में बताती हैं. दिव्यांग सुमन कहती हैं, अपने लक्ष्य को कदम बना कर दुनिया के साथ चल रही हूं. खुद के हौसलों से अपनी पहचान बदल रही हूं. सोनी कुमारी जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर नगरा प्रखंड स्थित बंगरा अमर छपरा गांव की रहने वाली हैं. आगे कहती है, जब वह छः महीने की उम्र में एक पैर पोलियो ग्रस्त हो गया. अभी घर का आर्थिक हालात कुछ ठीक नहीं है. पिता जी दूसरे के खेतों में मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते हैं. लेकिन मुझे पढ़ने में सहयोग कर रहे हैं.

saran etv special report
ईटीवी भारत से बातचीत करती सुमन

खुद पढ़ती है और बच्चों को भी पढ़ाती है
हालांकि हालात से लड़ रही इस बेटी को पढ़ने और पढ़ाने का जुनून सवार है. सुमन जेपी विश्वविद्यालय के अंतर्गत एक महाविद्यालय से विज्ञान विषय से स्नातक कर रही हैं. पढ़ाई का खर्च खुद उठाती है. कॉलेज जाने के साथ निजी स्कूल में भी पढ़ाती है. सुमन ने बताया कि घर से कॉलेज की दूरी ज्यादा है. ऑटो पकड़ने के लिए रोजाना घंटो वैशाखी के सहारे मुख्य सड़क तक जाना पड़ता है. ऑटो पकड़ कर पढ़ाई करने छपरा स्थित कॉलेज जाती हूं.

अपने हौसले को पंख दे रही दिव्यांग सुमन

डॉक्टर बनना है सुमन का सपना
सुमन के सपनों को पंख लगाने में शहर के जानेमाने चिकित्सक व समाजसेवी डॉ अनिल कुमार की बड़ी भूमिका है. सुमन बताती हैं, छपरा में उन्होनें मुझे दो साल पहले बैशाखी के सहारे देखा. डॉक्टर साहब ने ट्राइसाइकिल के अलावे आर्थिक सहयोग भी दिया. आगे भी सहयोग करने के लिए तैयार रहते हैं. सुमन अपने सपनों के बारे में खुलासा करते हुए कहती हैं कि मैं भविष्य में डॉक्टर बन समाज सेवा करनी चाहती हूं. असहाय, लाचार और गरीबों की सेवा करना ही मेरा लक्ष्य है. इस कार्य में पिता का बखूबी सहयोग मिल रहा है. तीन बहन की शादी हो चुकी है. लेकिन पिता जी ने पढ़ाई के कारण कभी शादी का दबाव नहीं डाला.

सारण: हौसले को अगर पंख मिल जाये तो उसे उड़ान भरने से कोई नहीं रोक सकता. कमजोरी को अपनी ताकत में बदलना ही विजयपथ की पहली सीढ़ी है. बैसाखी के सहारे अपने कदमों को आगे बढ़ाती सारण की ये बेटी अपने दृढ़ निश्चय के आगे हालात बदलने में लगी है.

हालात से लड़ रही दिव्यांग सुमन
वो वैसाखी के सहारे चलती है, खुद पढ़ती है, दूसरे बच्चों को भी पढ़ाती है, घर के हालात ठीक नहीं हैं, लेकिन हौसले कम नहीं हुए. रोजाना घर से कॉलेज और स्कूल, समय से लड़ने की यह जिद सारण की बेटी सुमन कुमारी की है. जिसे पढ़ने की ललक है. गरीबी और आर्थिक तंगी से लड़ने का गजब का हौसला. ये हौसला अपने पिता से है मिलता है, जो मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहे हैं. परिवार की आर्थिक तंगी और दिव्यांग होने के बावजदू हालात के आगे झुकने को तैयार नहीं है. इस पथ पर सुमन को पिता का भी बखूबी सहयोग मिल रहा है.

suman kumari saran
स्कूल में पढ़ाती सुमन

दूसरे के खेतों में काम करते हैं पिता
दिव्यांग सुमन ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान संघर्ष के बारे में बताती हैं. दिव्यांग सुमन कहती हैं, अपने लक्ष्य को कदम बना कर दुनिया के साथ चल रही हूं. खुद के हौसलों से अपनी पहचान बदल रही हूं. सोनी कुमारी जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर नगरा प्रखंड स्थित बंगरा अमर छपरा गांव की रहने वाली हैं. आगे कहती है, जब वह छः महीने की उम्र में एक पैर पोलियो ग्रस्त हो गया. अभी घर का आर्थिक हालात कुछ ठीक नहीं है. पिता जी दूसरे के खेतों में मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते हैं. लेकिन मुझे पढ़ने में सहयोग कर रहे हैं.

saran etv special report
ईटीवी भारत से बातचीत करती सुमन

खुद पढ़ती है और बच्चों को भी पढ़ाती है
हालांकि हालात से लड़ रही इस बेटी को पढ़ने और पढ़ाने का जुनून सवार है. सुमन जेपी विश्वविद्यालय के अंतर्गत एक महाविद्यालय से विज्ञान विषय से स्नातक कर रही हैं. पढ़ाई का खर्च खुद उठाती है. कॉलेज जाने के साथ निजी स्कूल में भी पढ़ाती है. सुमन ने बताया कि घर से कॉलेज की दूरी ज्यादा है. ऑटो पकड़ने के लिए रोजाना घंटो वैशाखी के सहारे मुख्य सड़क तक जाना पड़ता है. ऑटो पकड़ कर पढ़ाई करने छपरा स्थित कॉलेज जाती हूं.

अपने हौसले को पंख दे रही दिव्यांग सुमन

डॉक्टर बनना है सुमन का सपना
सुमन के सपनों को पंख लगाने में शहर के जानेमाने चिकित्सक व समाजसेवी डॉ अनिल कुमार की बड़ी भूमिका है. सुमन बताती हैं, छपरा में उन्होनें मुझे दो साल पहले बैशाखी के सहारे देखा. डॉक्टर साहब ने ट्राइसाइकिल के अलावे आर्थिक सहयोग भी दिया. आगे भी सहयोग करने के लिए तैयार रहते हैं. सुमन अपने सपनों के बारे में खुलासा करते हुए कहती हैं कि मैं भविष्य में डॉक्टर बन समाज सेवा करनी चाहती हूं. असहाय, लाचार और गरीबों की सेवा करना ही मेरा लक्ष्य है. इस कार्य में पिता का बखूबी सहयोग मिल रहा है. तीन बहन की शादी हो चुकी है. लेकिन पिता जी ने पढ़ाई के कारण कभी शादी का दबाव नहीं डाला.

Intro:SLUG:-DIVYANGTA ABHISHAP NAHI
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/SARAN/BIHAR

Anchor:-हौसलें को पंख मिल जाये तो निश्चित तौर से उड़ान भरा जा सकता है इसी सार्थकता को पूरा कर रही हैं सारण की बेटी जो बैसाखी के सहारे एक निजी स्कूल में पढ़ा कर अपने पढ़ाई का खर्च खुद निकाल रही हैं क्योंकि पढ़ने की ललक व हौसलें को देख मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करने वाले पिता का भी सहयोग मिल रहा हैं.

दिव्यांग सुमन कहती हैं कि अपने लक्ष्य को कदम बना कर दुनिया के साथ चल रही हूं, खुद के हौसलों से अपनी पहचान बदल रही हूं. सारण जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर नगरा प्रखंड के बंगरा अमर छपरा गांव की रहने वाली दिव्यांग छात्रा सुमन कुमारी इन शब्दों को सार्थक करने के लिए अपने जीवन की हर बाधाओं को दूर कर आगे बढ़ रही हैं.

Body:दिव्यांग सुमन ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान बताई की मैं जब छः महीने की थी तभी से ही एक पैर में पोलियो है. मेरे पिता चंद्रमा महतो दूसरे के घरों व खेतों में मेंहनत मजदूर कर परिवार का भरण पोषण करते हैं. जिस कारण आर्थिक तंगी के बीच दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही करना परिवार के लिए चुनौती है.

आर्थिक तंगी से गुजर रहे परिवार की बेटी होने के बावजूद पढ़ने की जिद और जीवन में कुछ करने का इरादा कर सुमन अपने दिव्यांगता को मात दे रही हैं और समाज के सामने आईना बनने के लिए सुमन जयप्रकाश विश्वविद्यालय के अंतर्गत एक महाविद्यालय से विज्ञान विषय से बीए कर रही हैं. अपनी पढ़ाई का खर्च खुद सुमन करती हैं क्योंकि वह अपने पढ़ाई के साथ-साथ एक निजी स्कूल में पढ़ाती भी हैं. सुमन का कहना हैं कि घर से कॉलेज की दूरी ज़्यादा होने के कारण घंटो वैशाखी के सहारे मुख्य सड़क तक जाती हूं उसके बाद ऑटो पकड़ कर छपरा जाती हैं.

Byte:-सुमन कुमारी, दिव्यांग Conclusion:सुमन दो वर्ष पूर्व जब इंटर की परीक्षा देने छपरा गयी थीं तब शहर के जानेमाने चिकित्सक व समाजसेवी डॉ अनिल कुमार की नजर लकड़ी के बने बैशाखी पर पड़ी तो उन्होंने सुमन से बात कर परिवार के बारे में जानकारी ली फिर कुछ दिनों बाद एक ट्राइसाइकिल व कुछ आर्थिक सहयोग कर हौसलें को उड़ान भरने के लिए आगे भी सहयोग करने के लिए अपनी सहमति जताई तब से सुमन उड़ान भरने का काम कर रही हैं. मेहनत मजदूरी कर ग़रीब पिता ने किसी तरह तीन बेटियों के हाथ पीले कर दिए है लेकिन जब सुमन की बारी आई तो पढ़ाई को लेकर पिता ने बेटी की शादी करने के बजाय पढ़ाई करने के लिए सहयोग करने लगे हैं क्योंकि अभी पढ़ाई कर डॉक्टर बनना चाहती है क्योंकि असहाय व लाचार गरीबों की सेवा कर सकें.
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