सारण: मन में उमंग और लालसा हो और एक-दूसरे के साथ मिलकर बेरोजगारी दूर करने की मन में प्रेरणा हो, तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता. ऐसा ही कर दिखाया है सोनपुर प्रखंड अंतर्गत डुमरी बुजुर्ग के होनहार युवक यशस्वी कुमार ने, जो अपने ही गांव में मास्क बनाने का कार्य करने लगा.
युवक ने मास्क का निर्माण कर कोरोना महामारी से बचाव के साथ-साथ क्षेत्र के दर्जनों नौजवानों और महिलाओं को रोजगार देकर एक उदाहरण पेश किया है.
मास्क पहनकर ही कोरोना को दे सकते हैं मात
यशस्वी कुमार ने बताया कि असली और नकली मास्क कैसा होता है. उससे क्या नुकसान होता है. उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने आम जनता को असली मास्क पहनकर कोरोना वायरस से लड़ने की नसीहत दी है. यशस्वी ने बताया कि मास्क पहने तो असली! अन्यथा न ही पहनें तो ज्यादा बेहतर है. अपना बिहारी गमछा है न भाई? उसी को तीन सपाटा मार कर लपेट लेना बेहतर है.
कालाबाजारी के तौर पर हो रही है मास्क की बिक्री
यशस्वी कुमार का कहना है कि बाजार में अधिकतर मास्क सही तरीके से वायरस से बचाव होने वाले बिक्री नहीं हो रहे हैं. अगर हो भी रहे हैं तो तीन गुना, चार गुना दामों पर बिक्री हो रही है, जिसे हम कालाबाजारी कहेंगे. बाजार में जो उपलब्ध है या फ्री में वितरित की जा रही है. उससे वायरस रोक पाना असंभव है.
असली मास्क आप स्वयं पहचानिए
कॉटन या नायलॉन के कपड़े से बने मास्क के ऊपर जैसे ही पानी डालेंगे, बगैर किसी रुकावट के शत प्रतिशत पानी नीचे जमीन पकड़ लेगा. वैसी परिस्थिति में विचारणीय विषय है कि भला वो मास्क जो पानी को टपकने से नहीं रोक सकता, वैसा मास्क कोरोना के वायरस से आपकी क्या रक्षा कर सकता है.
कोरोना वायरस का साइज होता है .12 माइक्रॉन
कोरोना वायरस का साइज .12 माइक्रॉन होता है. अर्थात डॉट से भी 2000 गुणा छोटा. आप जब भी पहने अच्छा मास्क का उपयोग करें तभी कोरोना रूपी राक्षस से बच सकते हैं. अन्यथा सरकार तो सिर्फ खानापूर्ती करती रहती है. आज जो हर पंचायत में मास्क वितरण किया गया है. उससे अच्छा तो गमछा से हम वायरस से बच सकते हैं, लेकिन जो वितरण किया गया मास्क है उससे बचना नामुमकिन है. सरकार और जनप्रतिनिधि चाहते हैं कि भले ही जनता-जनार्दन मरे या जीए हमें तो सिर्फ खानापूर्ति करनी है.