सारण: दीपावली का पर्व निकट आते ही कुम्हार एक बार फिर से नई उम्मीदों के साथ दीये बनाने के कार्य में जुट गए हैं. दीपावली प्रकाश का पर्व है. इस पावन पर्व पर प्राचीन काल से ही दीप जलाने का कार्य किया जा रहा है. हालांकि, बदलते समय के साथ चाइना से आने वाली बिजली के रंग-बिरंगे झालरों ने कुम्हारों के दीये की रोशनी को जरूर कम किया है. लेकिन इस बार देश में चाइनीज उत्पादों के विरोध हो रहा है. ऐसे में कुम्हारों को अपनी अंधकार में डूब रहे किस्मत के फिर से उदीप्तमान होने की आशा है.
'चाइनीज उत्पादों के कारण व्यवसाय पर असर'
कुम्हार चन्देश्वर पण्डित और अनिल पण्डित ने बतया कि हमारा परिवार पीढ़ियों से इस व्यवसाय से जुड़ा हुआ है. पहले तो रोटी-दाल की व्यवस्था हो जा रही थी. लेकिन वर्तमान में हालात यह है कि हाड़ तोड़ मेहनत के बाद भी इतना पैसा जमा नहीं होता की बच्चों को दोनों समय की रोटी की व्यवस्था हो सके. चाक के कारीगरों को मजदूरी करने की मजबूरी बन गई है. मिट्टी के बर्तन से उनके परिवार का गुजर-बसर पीढ़ियों से चलता चला आ रहा था. अब मिट्टी के बर्तनों की मांग घट गई है. त्यौहारों पर होने वाली बिक्री भी समाप्त होती जा रही है. कुम्हारों का कहना है कि चाइनीज लाइटों और खिलौने के कारण व्यवसाय पर खासा असर पड़ा है.
चाइनीज झालरों से करोबार पर असर
कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली में चार चांद लगाते हैं. लेकिन बदलती जीवनशैली और आधुनिक परिवेश में मिट्टी को आकार देने वाले कुम्हारों को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ रहा है. बाजारों में चाइनीज झालरों की धमक मिट्टी के बने दीपक की रोशनी को फीका कर रही है. चाइनीज झालरों की मांग शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक बढ़ती जा रही है.
पुश्तैनी धंधा छोड़ने पर मजबूर कुम्हार
बता दें कि दो जून की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करने वाले कुम्हार का परिवार महीनों लगा रहता है. इसके बावजूद न तो उसे वाजिब दाम मिलता है और ना ही खरीददार. दूसरी तरफ चाइनीज दीये, मोमबत्ती और रंग-बिरंगे लाइट दीपावली के त्यौहार टिमटिमाते नजर आते हैं. आलम यह है कि उचित दाम नहीं मिलने से कुम्हार अपनी पुश्तैनी व्यवसाय छोड़ने को मजबूर है. क्योंकि इससे उनके परिवार का गुजर-बसर तक मुश्किल हो गया है.
मंहगाई में गुजारा हुआ मुश्किल
हालांकि अभी भी कुछ लोग हैं, जिन्हें मिट्टी के बर्तन लुभाते हैं और इसे खरीदते भी हैं. शादी में प्रयोग आने वाले मिट्टी के बर्तन आज भी प्रचलन में है. जिसके कारण कुछ कुम्हारों की रोजी-रोटी चलती है. कुम्हारों ने ईटीवी भारत को बताया कि महंगाई की मार से मिट्टी भी अछूती नहीं है. अब कच्चा माल भी महंगा हो गया है. दिन रात मेहनत के बावजूद उन्हें मजदूरी नहीं मिल पाती, ऐसे में परिवार का गुजारा नहीं होता है.
कहीं इतिहास न बन जाए मिट्टी के बर्तन
मिट्टी के कारीगर चन्देश्वर पण्डित बताते हैं कि उनके बच्चे इससे मुंह मोड़ रहे हैं. किसी तरह अपने पुश्तैनी धंधे को जीवित रखे हैं. इस तरफ सरकार भी ध्यान नहीं दे रही है. लोग चाईनीज सामान खरीदने में कोई मोलभाव नहीं करते लेकिन मिट्टी के बर्तन खरीदने में 100 रुपए का सामान 50 में मांगते हैं. ऐसा ही रहा तो आने वाले दिनों में यह एक इतिहास बन कर रह जायेगा और नई पीढ़ी इससे अनभिज्ञ रह जायेगी.
गौरतलब है कि दीपों का त्योहार दिवाली इस साल 14 नवंबर को है. यूं तो दीवाली पर पूरे घर में दीये जलाए जाते हैं. लेकिन हाल का साल में चाइनीज झालरों ने दीयों की रौशनी को फिका कर दिया. हालांकि, इस बार भारत-चीन विवाद के बाद देशभर में चाइनीज उत्पादों को पूरजोर विरोध हो रहा है. ऐसे में कुम्हारों को एक बार फिर से अपने भाग्योदय की आशा है.