सारण: जिले के कुम्हारों की स्थिति दिनों-दिन बदहाल होती जा रही है. पहले ही मिट्टी के सामानों की मांग घटती जा रही थी. अब इस बीच कोरोना और लॉकडाउन ने इन कुम्हारों की परेशानी दोगुनी कर दी है. आलम यह है कि कुम्हार अब अपना पारंपरिक पेशा छोड़कर दूसरे विकल्प तलाशने में जुटे नजर आ रहे हैं.
दरअसल, परसा प्रखंड की सराय साहो कुम्हार टोला के लोग कई वर्षों से मिट्टी के बर्तन बनाते आ रहे हैं. मौजूदा समय में इनकी आर्थिक हालत सही नहीं है. मिट्टी के बर्तन बनाने का काम खासकर कुम्हार जाति के लोग करते हैं. मिट्टी के बर्तनों का इतिहास हजारों साल पुराना है और आज भी इतिहासकारों को खुदाई खोज में मिट्टी के बर्तन ही प्राप्त होते हैं.
घट गई मिट्टी के सामानों की मांग
आज के आधुनिक दौर में प्लास्टिक स्टील और सिरेमिक बर्तनों का उपयोग ज्यादा होने लगा है. हालांकि, अभी भी गर्मी के समय में कुछ जगहों पर मिट्टी के घड़ों की डिमांड ज्यादा है. मिट्टी के घड़े में रोड किनारे पेयजल की व्यवस्था की जाती है. कई शहरों में आज भी कुल्हड़ में चाय बिकती है जिसका स्वाद ही अलग होता है. साथ ही यह स्वच्छता के नजरिए से भी उत्तम है.
मिट्टी के बर्तनों से कई फायदे
जानकारों की मानें तो मिट्टी के बर्तन में पकाया जाने वाले खाना कई तरह की सूक्ष्म शारीरिक बीमारियां को नष्ट करने में कारगर साबित होता है. आज के जमाने में मिट्टी के बर्तन का उपयोग धीरे-धीरे कम हो गया है. यह इस्तेमाल निरंतर कम होता जा रहा है. इस काम में अच्छी आमदनी नहीं होने के कारण जहां अधिकांश कुम्हार जाति के लोग इस धंधे से किनारा करते नजर आ रहे हैं.
युवा पीढ़ी नहीं ले रही रुचि
वहीं युवा पीढ़ी भी अब इस धंधे में अब रुचि नहीं ले रही है. आज यह घाटे का सौदा साबित हो रहा है. कुम्हारों को मिट्टी खरीदने के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ती है. इसके अलावा मिट्टी के बर्तन को पकाने के लिए जलावन अधिक दामों में मिलने के कारण खासी परेशानी हो रही है. धंधे में मुनाफा कम होने के कारण कई युवक विकल्प तलाशने लगे हैं.
अब नहीं मिलता है ऑर्डर
वहीं कुम्हार जाति के लोगों का कहना है कि पहले शादी समारोह, दीपावली, छठ पूजा में मिट्टी के सामानों का काफी आर्डर मिलता था. जिससे परिवार के लिए दो जून की रोटी की व्यवस्था हो जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है.