सारण: देश के प्रथम राष्ट्रपति और भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि और कर्म भूमि छपरा आज उनकी जयंती पर उनको नमन करता है और श्रद्धा सुमन अर्पित करता है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक अद्वितीय प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे. उनके बारे में कहा जाता है कि 'एग्जामिनी इज बेटर देन एग्जामिनर' यह ऐतिहासिक टिप्पणी उस अंग्रेज परीक्षक ने किया था, जिसने 1902 मैट्रिक की परीक्षा में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की उत्तर पुस्तिकाओं के जांच के दौरान कहा था. डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 1902 सारण जिला मुख्यालय स्थित जिला स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी और इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए अन्य जगहों पर गए थे. डॉ राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि और कर्म भूमि सारण जिला ही रही है.
जिरादेई में हुआ था जन्म
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सिवान जिले के जिरादेई गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था. लेकिन उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा प्रमंडलीय मुख्यालय सारण के इसी जिला स्कूल में शुरू हुआ था. सारण जिले में उसे जुड़ी हुई काफी यादों को आज तक संजोकर रखा गया है. छपरा के नगरपालिका चौक जहां पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आदम कद प्रतिमा लगी हुई है और इसको लोग राजेंद्र चौक के नाम से ही जानते हैं.
अपने प्रांत किया था नाम रोशन
इसी जिला स्कूल से राजेंद्र बाबू का नामांकन वर्ष 1893 में 8 वर्ग में हुआ था जो उस वक्त का प्रारंभिक वर्ग था. उस समय 8 वर्ग से उत्तीर्ण करने के बाद इसी स्कूल में नामांकन के लिए एंट्रेंस एग्जामिनेशन हुआ करता था. जिसमें अव्वल दर्जे का वर्क कहा जाता था. राजेंद्र बाबू इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि उन्हें वर्ग 8 में सीधे वर्ग 9 में प्रोन्नति कर दिया गया था. उन्हें इसी जिला स्कूल से 19 शब्दों में एंट्रेंस की परीक्षा दी, जिसमें पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, वर्मा और नेपाल में प्रथम स्थान प्राप्त कर उन्होंने अपने प्रांत का नाम रोशन किया था.
स्कूल प्रशासन के पास कोई रिकॉर्ड नहीं
बता दें कि एग्जामनर ने कॉपी चेक करके के दौरान खुश होकर रिमार्क लिखा- एग्जामनी इज बेटर दैन एग्जामनर. जिला स्कूल में पढ़ाई के दौरान उनकी लिखी गई कॉपी और नामांकन पंजी भी संधारित था, लेकिन अभी के समय में रिकार्ड में कुछ भी नहीं है. यहां तक कि शिक्षा अधिकारी और स्कूल प्रशासन को इसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है. हालांकि पूर्व में स्कूल प्रशासन ने इस बावत उनके समय के कॉपी और अन्य अभिलेख को मंगाने के लिए कोलकाता लाइब्रेरी प्रशासन को कई बार पत्राचार किया है. वर्तमान समय में उस पत्राचार के भी कोई रिकार्ड संधारित नहीं है. बस केवल उनकी एक प्रतिमा लगी है और उनके नाम की एक वाटिका है. जो जीर्ण-शीर्ण हालत में है.
कई भवन शिक्षा विभाग के कब्जे में
यह सारण जिले का वही ऐतिहासिक जिला स्कूल है जहां से स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति और भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद मैट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की थी. लेकिन आज यह स्कूल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है, जहां बुनियादी शिक्षण सुविधाएं भी मयस्सर नहीं है जो अपने आप में "स्वर्णिम अतीत का बदहाल वर्तमान" कहावत को चरितार्थ कर रहा है. इतना ही नहीं बल्कि इस विद्यालय के कई भवन शिक्षा विभाग के कब्जे में है.
स्कूल प्रशासन के द्वारा विभाग को कई बार आवेदन भी दिया जा चुका है लेकिन आज तक यह विद्यालय अतिक्रमण मुक्त नहीं हो पाया है. इसका चाहे जो भी कारण रहा हो लेकिन आज भी इस जिला स्कूल की स्थिति काफी बदतर है. इतना ही नहीं, इसी परिसर में जिला कंप्यूटर सोसायटी 9 पदस्थापित उच्च विद्यालय भी खुल गया है. साथ ही परिसर में जिला प्रशासन द्वारा एक पार्क का निर्माण भी कराया जा रहा है. वैसे कहने को तो सैकड़ों छात्रों का यहां नामांकन है लेकिन आते कुछ ही छात्र हैं.
इस विद्यालय से जुड़ी हैं यादें
वैसे जिला स्कूल को मॉडल स्कूल का दर्जा प्राप्त है लेकिन सुविधाएं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है. इस विद्यालय के कोने-कोने में राजेंद्र बाबू की यादें जुड़ी हुईं हैं. लेकिन स्कूल की वर्तमान दशा और दिशा देखकर ऐसा नहीं लगता है कि इसका इतिहास इतना गौरवशाली रहा होगा. विद्यालय परिसर में शिक्षा विभाग का प्रमाण शिक्षा विभाग नहीं किया है और क्लास रूम में शिक्षा विभाग के आठ कार्यालय संचालित होते हैं. जिसका प्रतिकूल प्रभाव पठन-पाठन पर पड़ता है, विद्यालय में कई प्रचार्य आए और चले गए लेकिन अतिक्रमण मुक्त कराने में सफलता नहीं मिली.