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2 नाव के सहारे कट रही 200 घरों की जिंदगी, नहीं ले रहा कोई सुध

सारण जिले में परसा नगर के बाढ़ पीड़ित ग्रामीणों का सुध लेने वाला कोई नहीं है. न ही जिला प्रशासन के अधिकारी आते हैं और न ही कोई स्थानीय प्रतिनिधि. 2 नाव के सहारे यहां के 200 घरों की जिंदगी कट रही है. सरकारी व्यवस्था के नाम पर लूट मची है. सरकारी व्यवस्था सिर्फ कागजों तक सिमटी है. कागजों पर ही सामुदायिक किचन चल रहा है और राहत सामग्री भी बांटी जा रही है.

Saran
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Published : Aug 8, 2020, 10:13 AM IST

सारण : जिले के कई प्रखंड बाढ़ के कहर तो झेल ही रहे हैं, लेकिन परसा नगर पंचयात वार्ड-2 की जनता त्राहिमाम कर रही है. जिला प्रशासन के अधिकारी कुछ व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं. जो व्यवस्था चल भी रही है वो सिर्फ कागजों तक सिमटी है.

घरों में घुसा पानी तो चौकी बना सहारा
घरों में घुसा पानी तो चौकी बना सहारा

कागजों पर चल रहा सामुदायिक किचेन
बाढ़ पीड़ितों के लिए कागजों पर बहुत से सामुदायिक किचेन चलाए जा रहे हैं. पर धरातल पर इस हकीकत की एक बानगी भी नहीं दिखती. जब ETV BHARAT की टीम पड़ताल को मौके पर पहुंची तो मानों बाढ़ पीड़ितों के शिकायतों का अंबार लग गया. फिर जब ETV BHARAT की टीम इनकी शिकायत को लेकर परसा के सीओ रामभजन राम से बात की तो उन्होंने बताया कि हर जगह माकूल व्यवस्था है. नाव के लिए भी जगह निर्धारित कर व्यवस्था कर दिया गया है.

देखें पूरी रिपोर्ट

मुश्किल से कट रही रोजमर्रा की जिंदगी
लेकिन हकीकत में यहां नाव तो है पर जहां चेतन वार्ड (एक और दो मिलाकर) में लगभग 200 घर हैं वहां सरकार दो नाव की व्यवस्था क्या मायने रखता है? इस स्तिथि में लोगों को आने-जाने के साथ-साथ खाने-पीने तक कि परेशानी हो रही है. सीओ रामभजन राम बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन सीओ साहब का पैर कभी गाड़ी से नीचे नहीं उतरता. लोगों के घर तक पानी है. कितनों के घर भी गिर गए हैं. ऐसे में लोग की स्थिति बद से बदतर हो गई है. लोगों को पीने की पानी का किलत है. गांव का चापाकल बाढ़ के पानी में डूब गया है. फिर भी लोग मजबूरन उसी चापाकल का पानी पी रहे हैं. ऐसे में गंदा पानी पीने से लोगों में बीमारी की समस्या उत्पन्न होगी. लेकिन इसकी न तो सरकार सूझ ले रही है और न ही जिला प्रशासन.

कमर भर पानी हेल कर पार करते ग्राणीण
कमर भर पानी हेल कर पार करते ग्राणीण

आदेश का अनदेखा कर रहे अधिकारी
जिले के आला अधिकारी लागतार बाढ़ क्षेत्रों का भर्मण कर तो रहे हैं. पर सड़क से नीचे उतरने का नाम नहीं लेते. सरकारी व्यवस्था के नाम पर मात्र यहां कागजों पर खाना पूर्ति हो रही है. अगर 'साहब' नीचे उतर कर पानी में लोगों के घर तक जाते तो शायद बाढ़ पीड़ित की समस्या देख कर उनकी आंखें खुलती. पर हकिकत तो यह है कि बस अधिकारियों को आदेश देकर साहब निकल जा रहे हैं. आलम तो यह हो गया है कि ग्रामीण अधिकारियों को बुला रहे हैं और अधिकारी भागते फिर रहे हैं.

बाढ़ में घर की छत पर बैठ बाहर का नजारा देखती दो महिला
बाढ़ में घर की छत पर बैठ बाहर का नजारा देखती दो महिला

चारों तरफ पानी भरने से शौच तक की समस्या
इस बाढ़ क्षेत्र के लोगों को शौच जाने तक की समस्या उत्पन्न हो रही है. चारों तरफ पानी ही पानी है. ऐसे में सरकार चलत शौचालय की व्यवस्था कर सकती थी. लेकिन यहां तो बस बातों से ही बाजार गर्म है. काम के नाम पर सिर्फ ढ़कोसला है और कुछ नहीं.

नाव बना ग्रामीणों का सहारा
नाव बना ग्रामीणों का सहारा

सारण : जिले के कई प्रखंड बाढ़ के कहर तो झेल ही रहे हैं, लेकिन परसा नगर पंचयात वार्ड-2 की जनता त्राहिमाम कर रही है. जिला प्रशासन के अधिकारी कुछ व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं. जो व्यवस्था चल भी रही है वो सिर्फ कागजों तक सिमटी है.

घरों में घुसा पानी तो चौकी बना सहारा
घरों में घुसा पानी तो चौकी बना सहारा

कागजों पर चल रहा सामुदायिक किचेन
बाढ़ पीड़ितों के लिए कागजों पर बहुत से सामुदायिक किचेन चलाए जा रहे हैं. पर धरातल पर इस हकीकत की एक बानगी भी नहीं दिखती. जब ETV BHARAT की टीम पड़ताल को मौके पर पहुंची तो मानों बाढ़ पीड़ितों के शिकायतों का अंबार लग गया. फिर जब ETV BHARAT की टीम इनकी शिकायत को लेकर परसा के सीओ रामभजन राम से बात की तो उन्होंने बताया कि हर जगह माकूल व्यवस्था है. नाव के लिए भी जगह निर्धारित कर व्यवस्था कर दिया गया है.

देखें पूरी रिपोर्ट

मुश्किल से कट रही रोजमर्रा की जिंदगी
लेकिन हकीकत में यहां नाव तो है पर जहां चेतन वार्ड (एक और दो मिलाकर) में लगभग 200 घर हैं वहां सरकार दो नाव की व्यवस्था क्या मायने रखता है? इस स्तिथि में लोगों को आने-जाने के साथ-साथ खाने-पीने तक कि परेशानी हो रही है. सीओ रामभजन राम बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन सीओ साहब का पैर कभी गाड़ी से नीचे नहीं उतरता. लोगों के घर तक पानी है. कितनों के घर भी गिर गए हैं. ऐसे में लोग की स्थिति बद से बदतर हो गई है. लोगों को पीने की पानी का किलत है. गांव का चापाकल बाढ़ के पानी में डूब गया है. फिर भी लोग मजबूरन उसी चापाकल का पानी पी रहे हैं. ऐसे में गंदा पानी पीने से लोगों में बीमारी की समस्या उत्पन्न होगी. लेकिन इसकी न तो सरकार सूझ ले रही है और न ही जिला प्रशासन.

कमर भर पानी हेल कर पार करते ग्राणीण
कमर भर पानी हेल कर पार करते ग्राणीण

आदेश का अनदेखा कर रहे अधिकारी
जिले के आला अधिकारी लागतार बाढ़ क्षेत्रों का भर्मण कर तो रहे हैं. पर सड़क से नीचे उतरने का नाम नहीं लेते. सरकारी व्यवस्था के नाम पर मात्र यहां कागजों पर खाना पूर्ति हो रही है. अगर 'साहब' नीचे उतर कर पानी में लोगों के घर तक जाते तो शायद बाढ़ पीड़ित की समस्या देख कर उनकी आंखें खुलती. पर हकिकत तो यह है कि बस अधिकारियों को आदेश देकर साहब निकल जा रहे हैं. आलम तो यह हो गया है कि ग्रामीण अधिकारियों को बुला रहे हैं और अधिकारी भागते फिर रहे हैं.

बाढ़ में घर की छत पर बैठ बाहर का नजारा देखती दो महिला
बाढ़ में घर की छत पर बैठ बाहर का नजारा देखती दो महिला

चारों तरफ पानी भरने से शौच तक की समस्या
इस बाढ़ क्षेत्र के लोगों को शौच जाने तक की समस्या उत्पन्न हो रही है. चारों तरफ पानी ही पानी है. ऐसे में सरकार चलत शौचालय की व्यवस्था कर सकती थी. लेकिन यहां तो बस बातों से ही बाजार गर्म है. काम के नाम पर सिर्फ ढ़कोसला है और कुछ नहीं.

नाव बना ग्रामीणों का सहारा
नाव बना ग्रामीणों का सहारा
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