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गांव के क्रिकेट में जब आपका बजट कम हो तो नचनिया के जगह लवांडा को नचाना पड़ता है 😜😂 pic.twitter.com/Qnmedj7FLJ
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— छपरा जिला 🇮🇳 (@ChapraZila) February 12, 2023गांव के क्रिकेट में जब आपका बजट कम हो तो नचनिया के जगह लवांडा को नचाना पड़ता है 😜😂 pic.twitter.com/Qnmedj7FLJ
— छपरा जिला 🇮🇳 (@ChapraZila) February 12, 2023
पटनाः चीयरलीडर्स (Cheerleaders in cricket) के नाम से हम सब परिचित हैं. दरअसल, आईपीएल को पॉपुलर करने में चीयर गर्ल्स का भी बड़ा योगदान है. चीयरलीडर्स का सुनहरा और लचीला बदन जब हर चौके-छक्के पर लहराता है तो क्रिकेट प्रेमियों का उत्साह दोगुना हो जाता है. बड़ी-बड़ी फ्रेंचाइजी के लिए विदेशों से गोरी-गोरी चीयर गर्ल्स को लाना उनके बजट में होता है, लेकिन जब स्थानीय स्तर पर खेलों का आयोजन हो तो वो क्या करें.
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छपरा में चीयर लीडरः इसका एक अद्भुत नजारा छपरा जिला से देखने को मिल रहा है. यहां स्थानीय स्तर पर एक टूर्नामेंट का आयोजन किया गया है. इस टूर्नामेंट में लौंडा नाच की व्यवस्था की गयी है. एक लड़का है जो लड़की के कपड़े में हर चौके-छक्के या फिर विकेट गिरने पर चीयर करता है. इसका एक वीडियो ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा है. यह वीडियो कहां का है, इसका पता नहीं चल सका है. छपरा जिला नामक ट्विटर हैंडल पर इसका वीडियो अपलोड किया गया है. जिसमें लिखा है 'गांव के क्रिकेट में जब आपका बजट कम हो तो नचनिया के जगह लवांडा को नचाना पड़ता है'
कुछ तो लोग कहेंगेः इस पर लोगों के कमेंट भी आ रहे हैं. कोई यह जानना चाह रहा है कि यह मैच कहां हो रहा है तो, कोई समाज को कोसते हुए लिख रहा है कि 'कितना गिर गया समाज, सरस्वती पूजा हो, गणतंत्र दिवस हो, शादी हो, तिलक हो, सगाई हो, स्वतंत्रता दिवस हो, जन्मदिन हो..अब तो ऐसा लगता है कि लोगों को बहाना चाहिए नाच करने के लिए'. बहरहाल इस वक्त यह वीडियो ट्विटर पर खूब 'नाच' रहा है.
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क्रिकेट में कब से चीयर लीडर्सः चीयर गर्ल्स या चीयर लीडर्स को भारत में सबसे पहले इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल के आयोजकों ने इन्हें इंट्रोड्यूस किया था. हालांकि, क्रिकेट में ट्वेंटी-ट्वेंटी के खेलों से चीयरलीडर्स का प्रयोग शुरू हुआ था. इसकी शुरुआत दक्षिण अफ्रीका से हुई थी. दक्षिण अफ्रीका में आयोजित पहले ट्वेंटी ट्वेंटी विश्वकप के दौरान चीयरलीडर्स का प्रयोग शुरू हुआ था.
चीयरलीडर्स का इतिहासः दुनिया में चीयरलीडर्स द्वारा किसी टीम का उत्साह बढ़ाने का इतिहास करीब 110 वर्ष पुराना है. चीयरलीडिंग की शुरुआत अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोटा में हुई थी. इसमें तब महिलाएं नहीं होती थी. इसकी शुरुआत जॉन कैंपबल ने किया था. उनके चीयर स्क्वॉड में सब पुरुष थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पुरुषों को युद्ध के लिए सीमा पर जाना पड़ा था. इसके बाद महिलाएं चीयरलीडर्स बनने लगीं. आज 97 फीसदी चीयरलीडर्स महिलाएं ही होती हैं. बास्केटबाल, आइसहॉकी, रग्बी, अमरीकन फुटबॉल में इसका प्रयोग होता था. अब ट्वेंटी ट्वेंटी क्रिकेट में चीयरलीडर्स का प्रयोग होता है.
क्या होता है लौंडा नाचः लौंडा नाच बिहार की प्राचीन लोक कलाओं में से एक है. इसमें लड़का, लड़की की तरह कपड़े पहन कर, मेकअप कर उन्हीं की तरह नृत्य करता है. लौंडा नाच को रामचंद्र मांझी ने एक अलग पहचान दिलवाई. भिखारी ठाकुर के सानिध्य में शुरू किए गए लौंडा नाच को रामचंद्र मांझी देश सहित अन्य कई मंचों पर प्रस्तुति दिए थे. बाद में रामचंद्र मांझी काे पद्मश्री भी मिला. अब गिने-चुने लौंडा नाच मंडलियां बची हैं. बिहार में आज भी लोग लौंडा नाच खूब पसंद करते हैं.