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अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने भरी कोसी, जताई छठी मां का आभार

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Published : Nov 10, 2021, 9:29 PM IST

छठ महापर्व के दौरान व्रतियां कोसी (हाथी) भरने की भी परंपरा निभाते हैं. खासकर जोड़े में कोसी भरने को बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है, जिसके पूरे होने पर उसे कोसी भरना पड़ता है. जिस घर में कोसी की पूजा होती है, वहां घर की महिलाएं कोसी के सामने बैठ कर गीत गाती हैं. पढ़ें पूरी खबर..

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सारण (छपरा): लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा ( Chhath Puja 2021 ) के तीसरे दिन बुधवार को जिले के विभिन्न तालाब और नदियों के घाट पर विधि विधान पूर्वक छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान भास्कर की पूजा आराधना की. जिसके बाद व्रतियों ने कोसी भर छठ मईया से अपनी मुरादें मांगी. आस्था और विश्वास के इस सूर्योपासना पर्व के बारे में व्रतियों ने बताया कि छठ अशुद्धियों का त्याग कर शुद्धता को अपनाने का पर्व है.

यह भी पढ़ें - Chhath Puja 2021: भगवान भास्कर को दिया गया 'पहला अर्घ्य', ETV भारत पर देखें तस्वीरें

बात दें कि छठ महापर्व के दौरान व्रतियां कोसी (हाथी) भरने की भी परंपरा निभाते हैं. खासकर जोड़े में कोसी भरने को बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है, जिसके पूरे होने पर उसे कोसी भरना पड़ता है. सूर्य षष्ठी की शाम को सूर्य अर्घ्य के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन करना बेहद शुभ और श्रेयकर माना गया है.

देखें वीडियो

लोक आस्था का महापर्व छठ ही ऐसा पर्व है जिसमें कोसी (हाथी) भरने की परंपरा है. इसमें मिट्टी के बने हाथी पर दीये बने होते हैं. कोई हाथी 6 दीए का रहता है तो कोई 12 दीए का और कोई 24 दीए का. हाथी को लोग पहले अर्घ्य के बाद अपने घर के आंगन या छत में भरते हैं. फिर अगली सुबह दूसरे अर्घ्य के बाद मिट्टी के हाथी को जल में विसर्जित कर दिया जाता है.

छठ पूजा से पहले कम से कम चार या सात गन्ने की मदद से एक छत्र बनाया जाता है. एक लाल कपड़े में ठेकुआ, फलों का अर्कपात, केराव आदि रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है. फिर छत्र के अंदर मिट्टी से बना हाथी रखा जाता है, जिसके ऊपर घड़ा रख दिया जाता है. मिट्टी से बने हाथी को सिंदूर लगाकर घड़े में मौसमी फल, ठेकुआ, अदरक, सुथनी आदि सामग्रियां रखी जाती है.

कोसी पर एक दीया जलाया जाता है, फिर कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरे सूप, डलिया, तांबे के पात्र और मिट्टी का ढक्कन रखकर दीप जलाए जाते हैं. अग्नि में धूप डालकर हवन करते हुए छठी मइया के सामने माथा टेककर आशीर्वाद लिया जाता है. अगली सुबह यही प्रक्रिया नदी के घाट पर दोहराई जाती है. यहां महिलाएं मन्नत पूरी होने की खुशी में मां के गीत गाते हुए छठी मां का आभार जताती हैं.

कोसी भरने वाला पूरा परिवार उस रात रतजगा भी करता है. घर की महिलाएं कोसी के सामने बैठ कर गीत गाती हैं. जिस घर में कोसी की पूजा होती है, वहां रात भर उत्साह का माहौल होता है. काफी नियम और कायदे के साथ पहले अर्घ्य से दूसरे अर्घ्य तक कोसी की पूजा की जाती है और भगवान सूर्य का आभार व्यक्त किया जाता है.

यह भी पढ़ें - Chhath Puja 2021 : छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य, CM नीतीश ने स्टीमर से गंगा घाटों का लिया जायजा

सारण (छपरा): लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा ( Chhath Puja 2021 ) के तीसरे दिन बुधवार को जिले के विभिन्न तालाब और नदियों के घाट पर विधि विधान पूर्वक छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान भास्कर की पूजा आराधना की. जिसके बाद व्रतियों ने कोसी भर छठ मईया से अपनी मुरादें मांगी. आस्था और विश्वास के इस सूर्योपासना पर्व के बारे में व्रतियों ने बताया कि छठ अशुद्धियों का त्याग कर शुद्धता को अपनाने का पर्व है.

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बात दें कि छठ महापर्व के दौरान व्रतियां कोसी (हाथी) भरने की भी परंपरा निभाते हैं. खासकर जोड़े में कोसी भरने को बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है, जिसके पूरे होने पर उसे कोसी भरना पड़ता है. सूर्य षष्ठी की शाम को सूर्य अर्घ्य के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन करना बेहद शुभ और श्रेयकर माना गया है.

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लोक आस्था का महापर्व छठ ही ऐसा पर्व है जिसमें कोसी (हाथी) भरने की परंपरा है. इसमें मिट्टी के बने हाथी पर दीये बने होते हैं. कोई हाथी 6 दीए का रहता है तो कोई 12 दीए का और कोई 24 दीए का. हाथी को लोग पहले अर्घ्य के बाद अपने घर के आंगन या छत में भरते हैं. फिर अगली सुबह दूसरे अर्घ्य के बाद मिट्टी के हाथी को जल में विसर्जित कर दिया जाता है.

छठ पूजा से पहले कम से कम चार या सात गन्ने की मदद से एक छत्र बनाया जाता है. एक लाल कपड़े में ठेकुआ, फलों का अर्कपात, केराव आदि रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है. फिर छत्र के अंदर मिट्टी से बना हाथी रखा जाता है, जिसके ऊपर घड़ा रख दिया जाता है. मिट्टी से बने हाथी को सिंदूर लगाकर घड़े में मौसमी फल, ठेकुआ, अदरक, सुथनी आदि सामग्रियां रखी जाती है.

कोसी पर एक दीया जलाया जाता है, फिर कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरे सूप, डलिया, तांबे के पात्र और मिट्टी का ढक्कन रखकर दीप जलाए जाते हैं. अग्नि में धूप डालकर हवन करते हुए छठी मइया के सामने माथा टेककर आशीर्वाद लिया जाता है. अगली सुबह यही प्रक्रिया नदी के घाट पर दोहराई जाती है. यहां महिलाएं मन्नत पूरी होने की खुशी में मां के गीत गाते हुए छठी मां का आभार जताती हैं.

कोसी भरने वाला पूरा परिवार उस रात रतजगा भी करता है. घर की महिलाएं कोसी के सामने बैठ कर गीत गाती हैं. जिस घर में कोसी की पूजा होती है, वहां रात भर उत्साह का माहौल होता है. काफी नियम और कायदे के साथ पहले अर्घ्य से दूसरे अर्घ्य तक कोसी की पूजा की जाती है और भगवान सूर्य का आभार व्यक्त किया जाता है.

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