सारण: सरयू नदी के तट पर स्थित ये जिला ऋषि-मुनियों का साधना क्षेत्र रहा है. काशी के गंगा तट पर स्थापित मंदिरों की श्रृंखला जहां सतयुग की महता प्रकट करती है, वहीं जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर पश्चिम गोदना से सेमरिया तक मंदिरों की श्रृंखला इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता बयां करती हैं. लगभग चार किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र को देश भर में गौतम स्थान के नाम से जाना जाता है. बाल्मिकी रामायण में भी इस स्थान का वर्णन है. लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण यह धार्मिक स्थल आज भी अपने उद्धार की बांट जोह रहा है.
जिला मुख्यालय से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पौराणिक गोदना सेमरिया जिले का एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सहित कई ऋषियों की कथाएं एक साथ जुड़ी हुई हैं. कहा जाता है कि इसी स्थान पर महर्षि गौतम के श्राप से पत्थर बनी उनकी पत्नी अहिल्या का उद्धार भगवान श्रीराम ने बक्सर से सारण के रास्ते जनकपुर जाने के दौरान किया था.
भगवान राम ने अहिल्या का किया था उद्धार
पौराणिक कथाओं के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, अपने अनुज लक्ष्मण और कुलगुरु विश्वामित्र जी के साथ अयोध्या से धनुष यज्ञ में शामिल होने के लिए जनकपुर जा रहे थे. जनकपुर जाने के दौरान उन्होंने बक्सर के जंगल में तारकासुर का वध किया. इसके बाद सरयू नदी पार कर जैसे ही वो तट पर आए तो भगवान श्रीराम का पैर अचानक उस शिलापट्ट से स्पर्श हुआ. तभी वो पत्थर नारी का रूप लेकर खड़ी हो गई. वह दिन कोई और नहीं बल्कि कार्तिक पूर्णिमा का दिन था, जिस दिन अहिल्या का उद्धार हुआ था.
दूर-दूर से आते हैं भक्त
सरयू नदी तट पर महर्षि गौतम के आश्रम में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का वह पदचिह्न आज भी स्थापित है. यहां श्रद्धालु गंगा स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं. इस आश्रम के महंथ रामदयालु दास ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में बताया कि अब उस पदचिन्ह के ऊपर एक मंदिर बना दिया गया है जिसे लोग बाहर से ही दर्शन करते हैं. हालांकि सरयू नदी तट गौतम आश्रम से लगभग छः किलोमीटर दूर है. इसके बावजूद भी भक्त इतनी लंबी दूरी तय कर स्नान करते हैं. उसके बाद महर्षि गौतम व माता अहिल्या का दर्शन करते है.
सरकार की उदासीनता
महंथ रामदयालु दास ने बताया कि सरकार की उदासीनता के कारण यह धार्मिक स्थल आज भी अपने उद्धार की बांट जोह रहा है. उन्होंने बताया कि साल 1883 में महर्षि गौतम के नाम पर यहां संस्कृति पाठशाला खोला गया था. इसके लिये मंदिर की ओर से ढाई बिगहा जमीन दी गई थी. लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण इसकी स्थिति जर्जर हो गई है. यहां पढ़ाने के लिये शिक्षक भी नहीं है. स्थानीय विधायक और सांसद की और से भी जिसके जीणोद्धार को लेकर कोई पहल नहीं की गई.
यहां प्रत्येक वर्ष लगता है मेला
यहां प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां विशाल मेले के आयोजन किया जाता है. इस दिन श्रद्धालु सरयू नदी में स्नान करने के बाद सत्तु का भोग लगाते हैं. पहले कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान कर गौ माता को दान करने की परंपरा थी. बाद में गौ-दान का अपभ्रंश होकर इसका गोदना नाम पड़ गया. साथ ही श्रृंगी ऋषि मुनि का आश्रम होने के कारण श्रृंगी से सेमरिया का नाम पड़ गया, जिसे आज गोदना-सेमरिया के नाम से जाना जाता है.