सारण: देश की आजादी में अपनी भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के परिवारों की स्थिति बद से बदतर हो गई है. इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. इतना ही नहीं, स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के नाम पर आज तक कोई निशान या पहचान नहीं है. सरकार के इस रवैये से युवा पीढ़ी में मायूसी है.
महात्मा गांधी के आह्वान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल और बिनोवा भावे जैसी शख्सियतों के साथ मिलकर गिरीश तिवारी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की. कई आंदोलनकारियों का समूह मिट्टी से नोनी निकालकर नमक बनाने के लिए आया था. सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र अंतर्गत बरेजा गांव में रहकर सभी ने नमक बनाकर आंदोलन किया था. सारण की ऐतिहासिक धरती से लेकर चंपारण की धरती तक इसका बिगुल बजाया गया था.
नमक सत्याग्रह में गिरीश तिवारी ने निभाई थी अहम भूमिका
बता दें कि महात्मा गांधी ने गुजरात के बारदोली गांव से दांडी मार्च का आगाज लगभग 80 लोगों के साथ 12 मार्च 1930 को किया था. अंग्रेजों की ओर से नमक के ऊपर कर लगाये जाने वाले कानून के विरुद्ध ये मार्च निकाला गया था. महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक पैदल यात्रा कर नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून की मांग की थी. इसमें आंदोलन में पंडित गिरीश तिवारी भी शामिल थे.
अगस्त क्रांति के समय अंग्रेजों को चटाई धूल
इसके बाद 1942 के अगस्त क्रांति के समय गिरीश तिवारी ने अपने क्रांतिकारी गतिविधियों में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन्होंने साथियों के साथ मिलकर एकमा थाना, पोस्ट ऑफिस, दाऊदपुर रेलवे स्टेशन, थाना, पोस्ट ऑफिस को आग के हवाले कर दिया था. इसके बाद अंग्रेजों की यातायात व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई थी. इसी दौरान दाऊदपुर के गिरी बंधुओं की अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दी.
कुछ दिनों के लिये चित्रकुट के जंगल में चले गये
बचे हुये लोगों को अंग्रेजों ने गोली मारने का आदेश दे दिया. ये खबर मिलते ही सभी लोग भागने लगे. पंडित गिरीश तिवारी भी चित्रकुट के जंगल में चले गये और साधु के वेश में जिंदगी व्यतीत करने लगे. कुछ दिनों बाद गांधी जी का आदेश हुआ कि सभी फरार लोग वापस आ जाये. जिसके बाद गिरीश तिवारी भी वापस आ गये.
1952 से 67 तक रहे मंत्री और विधायक
देश को आजादी मिलने के बाद 1952 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ. इसमें गिरीश तिवारी मांझी से विधायक चुने गये और लगातार 1967 तक वो विधायक और मंत्री रहे. लेकिन अपने परिवार के लिये इन्होंने कभी कुछ नहीं किया, क्योंकि शुरू से ही इनकी पहली प्राथमिकता समाज और देश थी.
देश के लिए दी कुर्बानी
डॉ. सैयद महबूब ने उन्हें घर बनाने के लिये 1 बीघा जमीन छपरा में दी. लेकिन गिरीश जी ने आवाम की चिंता करते हुए वहां हॉल बनवा दिया. बाद में उन्होंने अपने करीबी मित्र श्रीनंदन बाबू की याद में उस हॉल को श्रीनंदन लाइब्रेरी घोषित कर दिया. इसके बाद कांग्रेस ने उनसे छपरा में जमीन की मांग की. बची हुई जमीन उन्होंने कांग्रेस भवन बनाने के लिये दे दिया. आज ऐसी स्थिति है कि न तो कांग्रेस भनव में उनकी कोई तस्वीर है और न ही श्रीनंदन लाइब्रेरी में उनकी फोटो है.
परिजन सरकार के उदासीन रवैये से नाराज
पंडित गिरीश तिवारी के पौत्र प्रवीण चंद्र तिवारी का कहना है कि याद के नाम पर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने मांझी ब्लॉक पर उनकी प्रतिमा बनवाई थी. जहां नमक सत्याग्रह हुआ था वहां लोगों के द्वारा एक स्मारक बनवाया गया. हमलोग अपने बलबूते पर हर साल गिरीश तिवारी की जयंती मनाते हैं. कई बार मुख्यमंत्री से राजकीय समारोह और गिरीश जी के नाम पर स्कूल का नाम रखने की गुजारिश की गई, लेकिन किसी जनप्रतिनिधि और सरकार ने इस पर सुध नहीं ली.
सरकार से मदद की गुहार
पंडित गिरीश तिवारी ने देश के लिये अपनी पूरी जिंदगी न्योछावर कर दी. फिर इनके परिवार को सरकार की उदासीनता का सामना करना पड़ रहा है. इनके पौत्र प्रवीण चंद्र तिवारी पेशे से छपरा व्यवहार न्यायालय में अधिवक्ता हैं. इनका कहना है कि एक बेटी मोनालिसा और बेटा राहुल की पढ़ाई पूरी कराने में बहुत ज्यादा सोचना पड़ रहा है. बेटी की शादी भी करनी है. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. घर का खर्च चलाना भी मुश्किल है. ऐसे में इन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.