ETV Bharat / state

आजादी की लड़ाई में गिरीश तिवारी ने निभाई थी अहम भूमिका, अब सरकार की उपेक्षा से नाराज हैं परिजन

कई बार मुख्यमंत्री से राजकीय समारोह और गिरीश जी के नाम पर स्कूल का नाम रखने की गुजारिश की गई, लेकिन किसी जनप्रतिनिधि और सरकार ने इस पर सुध नहीं ली.

स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी
author img

By

Published : Aug 14, 2019, 11:04 AM IST

Updated : Aug 15, 2019, 7:18 AM IST

सारण: देश की आजादी में अपनी भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के परिवारों की स्थिति बद से बदतर हो गई है. इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. इतना ही नहीं, स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के नाम पर आज तक कोई निशान या पहचान नहीं है. सरकार के इस रवैये से युवा पीढ़ी में मायूसी है.

महात्मा गांधी के आह्वान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल और बिनोवा भावे जैसी शख्सियतों के साथ मिलकर गिरीश तिवारी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की. कई आंदोलनकारियों का समूह मिट्टी से नोनी निकालकर नमक बनाने के लिए आया था. सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र अंतर्गत बरेजा गांव में रहकर सभी ने नमक बनाकर आंदोलन किया था. सारण की ऐतिहासिक धरती से लेकर चंपारण की धरती तक इसका बिगुल बजाया गया था.

saran
स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी

नमक सत्याग्रह में गिरीश तिवारी ने निभाई थी अहम भूमिका
बता दें कि महात्मा गांधी ने गुजरात के बारदोली गांव से दांडी मार्च का आगाज लगभग 80 लोगों के साथ 12 मार्च 1930 को किया था. अंग्रेजों की ओर से नमक के ऊपर कर लगाये जाने वाले कानून के विरुद्ध ये मार्च निकाला गया था. महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक पैदल यात्रा कर नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून की मांग की थी. इसमें आंदोलन में पंडित गिरीश तिवारी भी शामिल थे.

अगस्त क्रांति के समय अंग्रेजों को चटाई धूल
इसके बाद 1942 के अगस्त क्रांति के समय गिरीश तिवारी ने अपने क्रांतिकारी गतिविधियों में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन्होंने साथियों के साथ मिलकर एकमा थाना, पोस्ट ऑफिस, दाऊदपुर रेलवे स्टेशन, थाना, पोस्ट ऑफिस को आग के हवाले कर दिया था. इसके बाद अंग्रेजों की यातायात व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई थी. इसी दौरान दाऊदपुर के गिरी बंधुओं की अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दी.

पेश है रिपोर्ट

कुछ दिनों के लिये चित्रकुट के जंगल में चले गये
बचे हुये लोगों को अंग्रेजों ने गोली मारने का आदेश दे दिया. ये खबर मिलते ही सभी लोग भागने लगे. पंडित गिरीश तिवारी भी चित्रकुट के जंगल में चले गये और साधु के वेश में जिंदगी व्यतीत करने लगे. कुछ दिनों बाद गांधी जी का आदेश हुआ कि सभी फरार लोग वापस आ जाये. जिसके बाद गिरीश तिवारी भी वापस आ गये.

1952 से 67 तक रहे मंत्री और विधायक
देश को आजादी मिलने के बाद 1952 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ. इसमें गिरीश तिवारी मांझी से विधायक चुने गये और लगातार 1967 तक वो विधायक और मंत्री रहे. लेकिन अपने परिवार के लिये इन्होंने कभी कुछ नहीं किया, क्योंकि शुरू से ही इनकी पहली प्राथमिकता समाज और देश थी.

saran
स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी

देश के लिए दी कुर्बानी
डॉ. सैयद महबूब ने उन्हें घर बनाने के लिये 1 बीघा जमीन छपरा में दी. लेकिन गिरीश जी ने आवाम की चिंता करते हुए वहां हॉल बनवा दिया. बाद में उन्होंने अपने करीबी मित्र श्रीनंदन बाबू की याद में उस हॉल को श्रीनंदन लाइब्रेरी घोषित कर दिया. इसके बाद कांग्रेस ने उनसे छपरा में जमीन की मांग की. बची हुई जमीन उन्होंने कांग्रेस भवन बनाने के लिये दे दिया. आज ऐसी स्थिति है कि न तो कांग्रेस भनव में उनकी कोई तस्वीर है और न ही श्रीनंदन लाइब्रेरी में उनकी फोटो है.

परिजन सरकार के उदासीन रवैये से नाराज
पंडित गिरीश तिवारी के पौत्र प्रवीण चंद्र तिवारी का कहना है कि याद के नाम पर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने मांझी ब्लॉक पर उनकी प्रतिमा बनवाई थी. जहां नमक सत्याग्रह हुआ था वहां लोगों के द्वारा एक स्मारक बनवाया गया. हमलोग अपने बलबूते पर हर साल गिरीश तिवारी की जयंती मनाते हैं. कई बार मुख्यमंत्री से राजकीय समारोह और गिरीश जी के नाम पर स्कूल का नाम रखने की गुजारिश की गई, लेकिन किसी जनप्रतिनिधि और सरकार ने इस पर सुध नहीं ली.

saran
प्रवीण चंद्र तिवारी, अधिवक्ता. व्यवहार न्यायलय

सरकार से मदद की गुहार
पंडित गिरीश तिवारी ने देश के लिये अपनी पूरी जिंदगी न्योछावर कर दी. फिर इनके परिवार को सरकार की उदासीनता का सामना करना पड़ रहा है. इनके पौत्र प्रवीण चंद्र तिवारी पेशे से छपरा व्यवहार न्यायालय में अधिवक्ता हैं. इनका कहना है कि एक बेटी मोनालिसा और बेटा राहुल की पढ़ाई पूरी कराने में बहुत ज्यादा सोचना पड़ रहा है. बेटी की शादी भी करनी है. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. घर का खर्च चलाना भी मुश्किल है. ऐसे में इन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.

सारण: देश की आजादी में अपनी भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के परिवारों की स्थिति बद से बदतर हो गई है. इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. इतना ही नहीं, स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के नाम पर आज तक कोई निशान या पहचान नहीं है. सरकार के इस रवैये से युवा पीढ़ी में मायूसी है.

महात्मा गांधी के आह्वान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल और बिनोवा भावे जैसी शख्सियतों के साथ मिलकर गिरीश तिवारी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की. कई आंदोलनकारियों का समूह मिट्टी से नोनी निकालकर नमक बनाने के लिए आया था. सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र अंतर्गत बरेजा गांव में रहकर सभी ने नमक बनाकर आंदोलन किया था. सारण की ऐतिहासिक धरती से लेकर चंपारण की धरती तक इसका बिगुल बजाया गया था.

saran
स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी

नमक सत्याग्रह में गिरीश तिवारी ने निभाई थी अहम भूमिका
बता दें कि महात्मा गांधी ने गुजरात के बारदोली गांव से दांडी मार्च का आगाज लगभग 80 लोगों के साथ 12 मार्च 1930 को किया था. अंग्रेजों की ओर से नमक के ऊपर कर लगाये जाने वाले कानून के विरुद्ध ये मार्च निकाला गया था. महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक पैदल यात्रा कर नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून की मांग की थी. इसमें आंदोलन में पंडित गिरीश तिवारी भी शामिल थे.

अगस्त क्रांति के समय अंग्रेजों को चटाई धूल
इसके बाद 1942 के अगस्त क्रांति के समय गिरीश तिवारी ने अपने क्रांतिकारी गतिविधियों में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन्होंने साथियों के साथ मिलकर एकमा थाना, पोस्ट ऑफिस, दाऊदपुर रेलवे स्टेशन, थाना, पोस्ट ऑफिस को आग के हवाले कर दिया था. इसके बाद अंग्रेजों की यातायात व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई थी. इसी दौरान दाऊदपुर के गिरी बंधुओं की अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दी.

पेश है रिपोर्ट

कुछ दिनों के लिये चित्रकुट के जंगल में चले गये
बचे हुये लोगों को अंग्रेजों ने गोली मारने का आदेश दे दिया. ये खबर मिलते ही सभी लोग भागने लगे. पंडित गिरीश तिवारी भी चित्रकुट के जंगल में चले गये और साधु के वेश में जिंदगी व्यतीत करने लगे. कुछ दिनों बाद गांधी जी का आदेश हुआ कि सभी फरार लोग वापस आ जाये. जिसके बाद गिरीश तिवारी भी वापस आ गये.

1952 से 67 तक रहे मंत्री और विधायक
देश को आजादी मिलने के बाद 1952 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ. इसमें गिरीश तिवारी मांझी से विधायक चुने गये और लगातार 1967 तक वो विधायक और मंत्री रहे. लेकिन अपने परिवार के लिये इन्होंने कभी कुछ नहीं किया, क्योंकि शुरू से ही इनकी पहली प्राथमिकता समाज और देश थी.

saran
स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी

देश के लिए दी कुर्बानी
डॉ. सैयद महबूब ने उन्हें घर बनाने के लिये 1 बीघा जमीन छपरा में दी. लेकिन गिरीश जी ने आवाम की चिंता करते हुए वहां हॉल बनवा दिया. बाद में उन्होंने अपने करीबी मित्र श्रीनंदन बाबू की याद में उस हॉल को श्रीनंदन लाइब्रेरी घोषित कर दिया. इसके बाद कांग्रेस ने उनसे छपरा में जमीन की मांग की. बची हुई जमीन उन्होंने कांग्रेस भवन बनाने के लिये दे दिया. आज ऐसी स्थिति है कि न तो कांग्रेस भनव में उनकी कोई तस्वीर है और न ही श्रीनंदन लाइब्रेरी में उनकी फोटो है.

परिजन सरकार के उदासीन रवैये से नाराज
पंडित गिरीश तिवारी के पौत्र प्रवीण चंद्र तिवारी का कहना है कि याद के नाम पर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने मांझी ब्लॉक पर उनकी प्रतिमा बनवाई थी. जहां नमक सत्याग्रह हुआ था वहां लोगों के द्वारा एक स्मारक बनवाया गया. हमलोग अपने बलबूते पर हर साल गिरीश तिवारी की जयंती मनाते हैं. कई बार मुख्यमंत्री से राजकीय समारोह और गिरीश जी के नाम पर स्कूल का नाम रखने की गुजारिश की गई, लेकिन किसी जनप्रतिनिधि और सरकार ने इस पर सुध नहीं ली.

saran
प्रवीण चंद्र तिवारी, अधिवक्ता. व्यवहार न्यायलय

सरकार से मदद की गुहार
पंडित गिरीश तिवारी ने देश के लिये अपनी पूरी जिंदगी न्योछावर कर दी. फिर इनके परिवार को सरकार की उदासीनता का सामना करना पड़ रहा है. इनके पौत्र प्रवीण चंद्र तिवारी पेशे से छपरा व्यवहार न्यायालय में अधिवक्ता हैं. इनका कहना है कि एक बेटी मोनालिसा और बेटा राहुल की पढ़ाई पूरी कराने में बहुत ज्यादा सोचना पड़ रहा है. बेटी की शादी भी करनी है. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. घर का खर्च चलाना भी मुश्किल है. ऐसे में इन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.

Intro:स्पेशल/एक्सक्लुसिव ख़बर हैं
SLUG:-PANDIT GIRISH TIWARI
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR

Anchor:- महात्मा गांधी के आह्वान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल व बिनोवा भावे जैसे शख्सियतों के साथ मिल कर नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र अंतर्गत बरेजा गांव निवासी भुनेश्वर तिवारी के पुत्र व महान स्वतंत्रता सेनानी सह नमक सत्याग्रह आंदोलन के अग्रणी नेता पंडित गिरीश तिवारी के जीवनी पर सटीक बैठती हैं यह गाना "करने देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान. सूरज न बदला चांद न बदला ना बदला भगवान कितना बदल गया इंसान...

जी हां देश की आज़ादी के लिए आंदोलन तो कई तरह के किये गए थे जिसमें नमक सत्याग्रह आंदोलन मुख्य रूप से सभी को याद होगा क्योंकि महात्मा गांधी ने गुजरात के बारदोली गांव से दांडी मार्च या नमक सत्याग्रह आंदोलन का आग़ाज़ लगभग 80 लोगों के साथ 12 मार्च 1930 को किया था.

महात्मा गांधी के द्वारा अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा नमक के ऊपर कर लगाये जाने वाले कानून के विरुद्ध किया गया सविनय कानून भंग कार्यक्रम था. ये ऐतिहासिक सत्याग्रह आंदोलन महात्मा गांधी के द्वारा अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक पैदल यात्रा करके नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून को भांग किया गया था.

भारत में अंग्रेजों के शासनकाल के समय नमक उत्पादन और विक्रय के ऊपर बड़ी मात्रा में कर लगा दिया था और नमक हर मनुष्य के लिए बहुत ज़्यादा जरूरी होता हैं और भारतवासियों को इस कानून से मुक्त करने और अपना अधिकार दिलाने के लिए सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम आयोजित किया गया था.



Body:नमक सत्याग्रह आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले सारण ही नही बल्कि बिहार के सपूत महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के पोता प्रवीण चन्द्र तिवारी ने ईटीवी भारत के संवाददाता से खास बातचीत के दौरान अपनी परिवारिक स्थिति को सांझा करते समय आंखों से निकले आंसू को रोक नही पाये और कहा कि महात्मा गांधी के द्वारा नमक आंदोलन के समय मेरे दादा जी के पास पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल व बिनोवा भावे के साथ कई आंदोलनकारियों का समूह मिट्टी से नोनी निकाल कर नमक बनाने के लिए आया था. मेरे ही घर रह कर सभी ने नमक बना कर आंदोलन किया था जो सारण की ऐतिहासिक धरती से लेकर चंपारण की धरती तक इसका बिगुल बजाया गया था.

वही 1942 के अगस्त क्रांति के समय मेरे दादा जी अपने क्रांतिकारी गतिविधियों में महती भूमिका निभाई और साथियों के साथ मिल कर एकमा थाना, पोस्ट ऑफिस, रेलवे स्टेशन व दाऊदपुर रेलवे स्टेशन, थाना, पोस्ट ऑफिस को आग के हवाले करने के बाद पूरी तरह से तहस नहस कर दिया गया था जिससे उनलोगों की यातायात व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई थी. इसी दौरान दाऊदपुर के गिरी बंधुओं को अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दिया था लेकिन कुछ लोग उस समय मौके से फरार होकर गुमनामी की जिंदगी ब्यतीत करने लगे थे लेकिन बाद के दिनों में फिर से आज़ादी की लड़ाई में भाग लेकर देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.


Byte:-walk through
प्रवीण चंद्र तिवारी, अधिवक्ता, व्यवहार न्यायालय, छपरा
धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी, ईटीवी भारत, सारण

देश की आजादी में अपनी भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के परिवारों की स्थिति बद से बदत्तर हो गई हैं लेकिन कोई सुधि लेने वाला नही है इतना ही नही बल्कि उनके नाम आज तक एक भी कोई निशान या पहचान नही हैं जिसको आज की युवा पीढ़ी याद करने के लिए तरस रहे हैं.

आजादी के बाद 1952 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ तो विधायक चुन लिए गए और लगातार 1967 तक विधायक व मंत्री भी रहे लेकिन समाज के लिए अपने व अपने परिवार के लिए क्योंकि इनके लिए घर परिवार नही बल्कि समाज व देश की सेवा करना था.

इनके पौत्र प्रवीण चंद्र तिवारी का कहना है कि एक बेटी मोनालिशा व बेटा राहुल की पढ़ाई पूरी करने में बहुत ज्यादा सोंचना पड़ रहा है और इनकी शादी कैसे करेंगे जबकि मेरी हालत बहुत ज्यादा खराब है हालांकि मैं छपरा व्यवहार न्यायालय में प्रैक्टिस करता हूं लेकिन उससे घर खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा हैं.
Conclusion:देश की आजादी में अपनी भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के परिवारों की स्थिति बद से बदत्तर हो गई हैं लेकिन कोई सुधि लेने वाला नही है इतना ही नही बल्कि उनके नाम आज तक एक भी कोई निशान या पहचान नही हैं जिसको आज की युवा पीढ़ी याद करने के लिए तरस रहे हैं.

आजादी के बाद 1952 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ तो विधायक चुन लिए गए और लगातार 1967 तक विधायक व मंत्री भी रहे लेकिन समाज के लिए अपने व अपने परिवार के लिए क्योंकि इनके लिए घर परिवार नही बल्कि समाज व देश की सेवा करना था.

इनके पौत्र प्रवीण चंद्र तिवारी का कहना है कि एक बेटी मोनालिशा व बेटा राहुल की पढ़ाई पूरी करने में बहुत ज्यादा सोंचना पड़ रहा है और इनकी शादी कैसे करेंगे जबकि मेरी हालत बहुत ज्यादा खराब है हालांकि मैं छपरा व्यवहार न्यायालय में प्रैक्टिस करता हूं लेकिन उससे घर खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा हैं.
Last Updated : Aug 15, 2019, 7:18 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.