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चैती छठः लखीसराय में अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य

कोरोना महामारी के बीच रविवार को चैती छठ का पहला अर्घ्य भगवान सूर्य को दिया गया. सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चार दिनों के अनुष्ठान का समापन हो जाएगा.

लखीसराय
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Published : Apr 18, 2021, 7:54 PM IST

लखीसरायः जिले में रविवार को चैती छठ का पहला अर्घ्य भगवान सूर्य को अर्पित किया गया. लोगों ने किऊल नदी के साथ तालाब, कुआं और घरों की छतों पर अस्तलचलगामी सूर्य की आराधना की. सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूर्व का समापन हो जाएगा.

ये भी पढ़ेंः कोरोना संकट को लेकर प्रशासन ने दिखाई सख्ती, सूर्य मंदिर गेट में लगाया ताला

छठ व्रत बिहार के महत्वपूर्ण पर्व में से एक है. यह चार दिवसीय अनुष्ठान के रूप में भी जाना जाता है. पहले दिन छठ व्रती नदी और सरोवर में स्नान कर भोजन ग्रहण करती है. इस दिन विषेश तौर पर कद्दू की सब्जी बनाई जाती है. दूसरे दिन खरना का प्रसाद तैयार किया जाता है. जिसे व्रती के ग्रहण करने के बाद लोगों में बांटा जाता है.

तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पर्व का समापन होता है. व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद से उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक निर्जला उपवास पर रहती है. उसके बाद पारण किया जाता है.

बता दें कि छठ व्रती इस व्रत को बहुत ही पवित्रता और सात्विकता के साथ करते हैं. इसमें मौसमी फलों और ठेकुआ का प्रसाद तैयार किया जाता है और उन्हें कलसुप और दौरा में सजाकर नदी या तालाब में जल में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.

लखीसरायः जिले में रविवार को चैती छठ का पहला अर्घ्य भगवान सूर्य को अर्पित किया गया. लोगों ने किऊल नदी के साथ तालाब, कुआं और घरों की छतों पर अस्तलचलगामी सूर्य की आराधना की. सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूर्व का समापन हो जाएगा.

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छठ व्रत बिहार के महत्वपूर्ण पर्व में से एक है. यह चार दिवसीय अनुष्ठान के रूप में भी जाना जाता है. पहले दिन छठ व्रती नदी और सरोवर में स्नान कर भोजन ग्रहण करती है. इस दिन विषेश तौर पर कद्दू की सब्जी बनाई जाती है. दूसरे दिन खरना का प्रसाद तैयार किया जाता है. जिसे व्रती के ग्रहण करने के बाद लोगों में बांटा जाता है.

तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पर्व का समापन होता है. व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद से उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक निर्जला उपवास पर रहती है. उसके बाद पारण किया जाता है.

बता दें कि छठ व्रती इस व्रत को बहुत ही पवित्रता और सात्विकता के साथ करते हैं. इसमें मौसमी फलों और ठेकुआ का प्रसाद तैयार किया जाता है और उन्हें कलसुप और दौरा में सजाकर नदी या तालाब में जल में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.

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