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सारण: ईंट भट्ठा व्यवसाय पर कोरोना और बाढ़ की दोहरी मार, सरकार से मदद की गुहार

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Published : Sep 4, 2020, 9:31 PM IST

बाढ़ का पानी फैलने से निचले इलाकों के खेत-खलिहानों की खेती बर्बाद हो गई है. जुट और धान की फसल को व्यापक पैमाने पर क्षति पहुंची है. साथ ही पहले आए सैलाब का पानी इलाके के चिमनी और ईंट भट्ठों में जमा हो गया है. चिमनियों और ईंट भट्ठों में चार से पांच फीट पानी फैलने की वजह से ईंटों का उत्पादन बिल्कुल ही ठप हो गया है.

सारण
सारण

सारण: जिले में चिमनी और ईंट भट्ठा संचालक प्रकृति की दोहरी मार झेलने को विवश हैं. इस व्यवसाय पर कोरोना और बाढ़ की दोहरी मार पड़ी है. इलाके में आए बाढ़ का पानी चिमनियों और ईंट भट्ठों में फैल गया हैं. जिससे काम-काज पूरी तरह से ठप हो गया है. बाढ़ का पानी फैलने की वजह से ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों के सामने रोटी के लाले पड़ गए हैं. आलम ये है कि जिले के हर चिमनी पर लाखों रुपए की बर्बादी का आंकलन किया जा रहा है. वहीं मजदूरों को दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुहाल हो गया है.

सारण
चिमनियों में घुसा बाढ़ का पानी

चिमनियों में घुसा बाढ़ का पानी
बाढ़ का पानी फैलने से निचले इलाकों के खेत-खलिहानों की खेती बर्बाद हो गई है. जुट और धान की फसल को व्यापक पैमाने पर क्षति पहुंची है. साथ ही पहले आए सैलाब का पानी इलाके के चिमनी और ईंट भट्ठों में जमा हो गया है. चिमनियों और ईंट भट्ठों में चार से पांच फीट पानी फैलने की वजह से ईंटों का उत्पादन बिल्कुल ही ठप हो गया है. वहीं चिमनी मालिकों ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि सरकार को कच्चा उद्योग बीमा योजना भी चलाना चाहिए. ताकि प्राकृतिक आपदा में चिमनी भट्ठा मालिकों को भी राहत और मुआवजा मिल सके.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

काम-काज पूरी तरह ठप
स्थानीय ईंट भट्ठा पर ट्रैक्टर चलाने वाले राकेश कुमार ने बताया कि इस साल उन लोगों पर कुदरत की दोहरी मार पड़ी है. बीते बाइस मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद जब देश भर में कोरोना वायरस से बचाव और इसके संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लागू किया गया, तभी से चिमनियों और ईंट भट्ठों में उत्पादन बंद है. इस बात को गुजरे छह महीने बीत गए हैं. वहीं अब हम लोग भट्ठे चालू करने की सोच ही रहे थे कि बाढ़ का पानी चिमनियों में घुस आया है. जिससे काम-काज पूरी तरह बंद हो गया है.

सारण
ईंट भट्ठे पर भरा पानी

'भूखे मरने की नौबत'
चिमनी पर मुंशी का काम करने वाले नवल सिंह ने बताया कि उत्पादन नहीं होने की वजह से मजदूरों को भी पैसा देना संभव नहीं हो पा रहा है. लाखों का सर पर कर्ज हो गया है. साथ ही व्यापार भी घाटे में चल रहा है. यह पानी सूखने में तीन से चार माह का समय गुजर जाएगा. जिससे यह पूरा साल ही बेकार निकल गया. वहीं ईंट भट्ठे पर काम करने वाले मजदूर राजदेव सिंह ने बताया कि ईंट भट्ठा चलता था तब हमारा गुजर-बसर आसानी से हो जाता था. वहीं लॉकडाउन के बाद अब बाढ़ का पानी भट्ठों में घुसने की वजह से चिमनी संचालकों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं. जिससे अब हमारे भूखे मरने की नौबत आ गई है.

सारण
ईंट भट्ठा पर काम करने वाले मुंशी नवल सिंह

सरकार से मदद की गुहार
अब बाढ़ प्रभावित चिमनियों और ईंट भट्ठा संचालकों कीं निगाहें सरकार पर टिकी है. कुदरत के मारे ईंट भट्ठा संचालकों और मजदूरों ने सरकार से गुहार लगाते हुए कहा कि प्रशासन द्वारा थोड़ी आर्थिक मदद हो जाती, तो किसी प्रकार हमारा गुजर-बसर हो जाता.

सारण
ट्रैक्टर चालक राकेश कुमार

सारण: जिले में चिमनी और ईंट भट्ठा संचालक प्रकृति की दोहरी मार झेलने को विवश हैं. इस व्यवसाय पर कोरोना और बाढ़ की दोहरी मार पड़ी है. इलाके में आए बाढ़ का पानी चिमनियों और ईंट भट्ठों में फैल गया हैं. जिससे काम-काज पूरी तरह से ठप हो गया है. बाढ़ का पानी फैलने की वजह से ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों के सामने रोटी के लाले पड़ गए हैं. आलम ये है कि जिले के हर चिमनी पर लाखों रुपए की बर्बादी का आंकलन किया जा रहा है. वहीं मजदूरों को दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुहाल हो गया है.

सारण
चिमनियों में घुसा बाढ़ का पानी

चिमनियों में घुसा बाढ़ का पानी
बाढ़ का पानी फैलने से निचले इलाकों के खेत-खलिहानों की खेती बर्बाद हो गई है. जुट और धान की फसल को व्यापक पैमाने पर क्षति पहुंची है. साथ ही पहले आए सैलाब का पानी इलाके के चिमनी और ईंट भट्ठों में जमा हो गया है. चिमनियों और ईंट भट्ठों में चार से पांच फीट पानी फैलने की वजह से ईंटों का उत्पादन बिल्कुल ही ठप हो गया है. वहीं चिमनी मालिकों ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि सरकार को कच्चा उद्योग बीमा योजना भी चलाना चाहिए. ताकि प्राकृतिक आपदा में चिमनी भट्ठा मालिकों को भी राहत और मुआवजा मिल सके.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

काम-काज पूरी तरह ठप
स्थानीय ईंट भट्ठा पर ट्रैक्टर चलाने वाले राकेश कुमार ने बताया कि इस साल उन लोगों पर कुदरत की दोहरी मार पड़ी है. बीते बाइस मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद जब देश भर में कोरोना वायरस से बचाव और इसके संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लागू किया गया, तभी से चिमनियों और ईंट भट्ठों में उत्पादन बंद है. इस बात को गुजरे छह महीने बीत गए हैं. वहीं अब हम लोग भट्ठे चालू करने की सोच ही रहे थे कि बाढ़ का पानी चिमनियों में घुस आया है. जिससे काम-काज पूरी तरह बंद हो गया है.

सारण
ईंट भट्ठे पर भरा पानी

'भूखे मरने की नौबत'
चिमनी पर मुंशी का काम करने वाले नवल सिंह ने बताया कि उत्पादन नहीं होने की वजह से मजदूरों को भी पैसा देना संभव नहीं हो पा रहा है. लाखों का सर पर कर्ज हो गया है. साथ ही व्यापार भी घाटे में चल रहा है. यह पानी सूखने में तीन से चार माह का समय गुजर जाएगा. जिससे यह पूरा साल ही बेकार निकल गया. वहीं ईंट भट्ठे पर काम करने वाले मजदूर राजदेव सिंह ने बताया कि ईंट भट्ठा चलता था तब हमारा गुजर-बसर आसानी से हो जाता था. वहीं लॉकडाउन के बाद अब बाढ़ का पानी भट्ठों में घुसने की वजह से चिमनी संचालकों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं. जिससे अब हमारे भूखे मरने की नौबत आ गई है.

सारण
ईंट भट्ठा पर काम करने वाले मुंशी नवल सिंह

सरकार से मदद की गुहार
अब बाढ़ प्रभावित चिमनियों और ईंट भट्ठा संचालकों कीं निगाहें सरकार पर टिकी है. कुदरत के मारे ईंट भट्ठा संचालकों और मजदूरों ने सरकार से गुहार लगाते हुए कहा कि प्रशासन द्वारा थोड़ी आर्थिक मदद हो जाती, तो किसी प्रकार हमारा गुजर-बसर हो जाता.

सारण
ट्रैक्टर चालक राकेश कुमार
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