सारण: भोजपुरी के शेक्सपियर (Shakespeare of Bhojpuri Bhikhari Thakur) कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की रविवार को 135वीं जयंती है. लोक कवि कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर को बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर दियारा गांव में हुआ था. वे काफी कम पढ़े लिखे थे लेकिन उनकी शैली और बात करने का तरीका ठेठ गंवई स्टाइल का था, जिससे उनकी बातें लोगों के काफी समझ में आती थी. अपनी रचनाओं के जरिए भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी को पूरे विश्व में एक खास पहचान दिलवायी. (135th Birth Anniversary of Bhikhari Thakur )
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ठेठ अंदाज ने दी अलग पहचान: ग्रामीण परिवेश से जुड़े होने के कारण वे काफी लोकप्रिय थे. भिखारी ठाकुर ने जो उस समय समरस समाज की कल्पना की थी और समाज का स्वरूप कैसा होना चाहिए जिसको अपने नाटक और नौटंकी के माध्यम से चित्रित किया था, वह आज के वास्तविक जीवन में सफलीभूत होता दिखाई दे रहा है.
सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार: भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं और गीतों से समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का आजीवन प्रयास किया. खास बात ये कि भिखारी ठाकुर के लोकगीतों के केंद्र में न सत्ता थी और ना ही सत्ता पर काबिज रहनुमाओं के लिये चाटुकारिता भरे शब्द. जिंदगी भर उन्होंने समाज में मौजूद कुरीतियों पर अपनी कला और संस्कृति के माध्यम से कड़ा प्रहार किया. लोककवि के नाम और उनकी ख्याति को अपनी राजनीति का मापदंड बनाकर वोट बैंक भुनाने वाले राजनेताओं ने भिखारी ठाकुर के गांव के उत्थान को लेकर यूं तो कई वादे किए, लेकिन वे सभी मुंगेरी लाल के हसीन सपनों की तरह हवा-हवाई साबित हुए. यही कारण है कि सरकारी उदासीनता ने भिखारी ठाकुर की रचनाओं और उनकी प्रासंगिकता को एक बार फिर संघर्ष के दौर में लाकर खड़ा कर दिया है.
नहीं हुआ भिखारी ठाकुर के गांव का विकास: स्वर्गीय भिखारी ठाकुर के कुतुबपुर दियारा गांव की तस्वीर आज तक नहीं बदली. गांव दियारा क्षेत्र में है इसलिए साल के 6 महीने से ज्यादा समय तक बाढ़ का पानी यहां पर भरा रहता है. जिला प्रशासन के द्वारा प्रत्येक वर्ष भिखारी ठाकुर चौक पर उनकी प्रतिमा का माल्यार्पण होता है और उनके गांव में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है. उनके घर को पूरी तरह से सजाया जाता है लेकिन आज भी भिखारी ठाकुर के परिजनों को इस बात का दर्द है कि सरकार उनके लिए कोई ठोस कार्य नहीं करती है. उनके गांव का विकास भी सही तरह से नहीं हुआ है. भिखारी ठाकुर के परपौत्र वेद प्रकाश ठाकुर का कहना है कि सरकार से जो सुविधा मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पा रही है.
"सरकार से हमें कोई सुविधा नहीं मिलती है. जिला प्रशासन और कला संस्कृति विभाग के माध्यम से उनकी जयंती मनाई जा रही है. यह हमारे लिए गौरव की बात है. जहां तक सुविधा की बात है वो ना के बराबर है. सड़क का जहां तक सवाल है प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत काम लगा हुआ है. देखना होगा कि ये कब तक बन पाता है."- वेद प्रकाश ठाकुर, भिखारी ठाकुर के परपौत्र
स्त्री प्रधान रचनाएं.. पुरुष निभाते थे भूमिका: ठाकुर की रचनाएं स्त्री प्रधान होती थीं ,लेकिन उनके नाटक की सबसे खास बात यह होती थी कि उनकी रंग मंडली में कोई भी स्त्री पात्र नहीं होती थी. स्त्रियों की भूमिका में पुरुष अपना प्रदर्शन करते थे. भिखारी ठाकुर ने ही लौंडा नाच को प्रसिद्धि दिलायी थी. उनकी प्रमुख रचनाओं में बिदेशिया, बेटी बेचवा, भाई विरोध, पिया निसैल, गेबर घिचोर और गंगा स्नान, विधवा विलाप, शंका समाधान, कलयुग प्रेम, नेटुआ नाच प्रमुख हैं. 83 साल की उम्र में 10 जुलाई 1971 को 'भोजपुरी के शेक्सपियर' भिखारी ठाकुर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.