समस्तीपुरः कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो. कागज पर अंकित इन शब्दों को कई लोग धरातल पर साकार भी करते हैं. इसका एक बेहतरीन उदाहरण बना है, जिले के रोसरा प्रखंड का मिर्जापुर गांव. इस गांव की खासियत ये है कि यहां की कोई भी महिला बेरोजगार नहीं है.
बांस के जरिए संवार रहीं भविष्य
दरअसल रोसरा प्रखंड का मिर्जापुर गांव में बांस के जरिए स्वरोजगार के क्षेत्र में कुछ महिलाओं ने प्रयास किया. उसका असर ये हुआ कि अब गांव की सैंकड़ों महिलाएं बांस के बने खूबसूरत उत्पाद के जरिए अपना और अपने परिवार का भविष्य संवारने में जुटी हैं.
चूल्हा चौका तक ही सीमित थीं महिलाएं
संघन आबादी वाले सामान्य से इस गांव में अधिकतर महिलाएं चूल्हा चौका तक ही सीमित थीं. रोजगार की ना कोई बेहतर व्यवस्था थी और ना ही कोई छोटे-मोटा काम. लेकिन इसी गांव की कुछ महिलाओं की मेहनत और उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति के बलबूते , यहां की एक भी महिला अब बेरोजगार नहीं हैं.
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घर बैठे बांस के सामान बनाती हैं महिलाएं
इस गांव की महिलाओं ने बांस के खूबसूरत उत्पाद बनाने में, जिला ही नहीं बल्कि राज्य में भी अपनी अलग पहचान बनाई है. यहां की करीब 500 से अधिक महिलाएं राज्य और केंद्र सरकार के विभिन्न प्रोग्रामों की मदद से घर बैठे बांस के सामान बना रहीं हैं. जिससे वह अपने और अपने परिवार के लिए अच्छे पैसे कमा रही हैं.
बहू-बेटियां भी सीखा रहीं है ये काम
इतना नहीं इस गांव में दर्जनों महिलाओं ने समूह की मदद से जगह-जगह एक सार्वजनिक स्थान बनाया है. जहां बांस से बनने वाले उत्पाद को सब महिलाएं मिलकर बनाती हैं. इन केंद्रों पर वह अपने अन्य रिश्तेदारों और परिवार की बहू-बेटियों को भी लाती हैं और इस कला से जोड़ रहीं हैं. उनका मानना है की आज वे इस काम के बलबूते अपने घर व परिवार के लिए कुछ कर रही हैं.बहरहाल, मिर्जापुर गांव आज महिला सशक्तिकरण का बेहतरीन उदाहरण बना है. यही नहीं, इस गांव के आस-पास के गांव और अन्य जगहों पर भी यहां की महिलाओं के जज्बे को सराहा जा रहा है.