समस्तीपुर: बिहार के समस्तीपुर (Samastipur) जिले में उच्च शिक्षा का हाल बेहाल है. इन कॉलेजों में सैकड़ों पद खाली हैं. प्रमुख विषयों के शिक्षक भी नदारद हैं. बहरहाल, अतिथि शिक्षकों के बलबूते ही कॉलेजों में छात्रों का भविष्य संवारने की जद्दोजहद चल रही है. जिले के नामी-गिरामी कॉलेज सिर्फ फॉर्म भरने व परीक्षा देने का केंद्र बनते जा रहे हैं.
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दरअसल, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (LNMU) के अंतर्गत जिले में 12 अंगीभूत कॉलेज व कई दर्जन वित्तरहित कॉलेज हैं. वैसे तो उच्च शिक्षा में मूलभूत सुधार को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन लाख दावे कर रहा है. राज्य सरकार भी शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार और बदलाव के दावे करते नहीं थकती. बिल्डिंगों के निर्माण से लेकर हाईटेक व्यवस्था करने की बात कही जाती है लेकिन वास्तविकता दावों से कोसों दूर है.
यहां के प्रमुख कॉलेजों की हालत देखकर हालात को समझा जा सकता. बात अगर जिला मुख्यालय के चार प्रमुख कॉलेजों की करें तो 1947 में स्थापित मिथिला यूनिवर्सिटी के समस्तीपुर कॉलेज में 95 पद हैं. वहीं वर्षों से यह कॉलेज महज 41 शिक्षकों के भरोसे चल रहा. इसमे भी 28 नियमित हैं. 13 अतिथि शिक्षक हैं.
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दूसरे बड़े कॉलेज आरएनआर कॉलेज में 45 पद हैं. यहां पर वर्तमान में 12 नियमित व 8 अथिति शिक्षक पदस्थापित हैं. कुछ ऐसा ही हाल बीआरबी कॉलेज का है. यहां भी 40 शिक्षकों का पद सृजित है लेकिन वर्तमान में महज 23 शिक्षक हैं. मुख्यालय के एकमात्र महिला कॉलेज का हाल भी अलग नहीं है. यहां 49 स्वीकृत पद हैं लेकिन मात्र 15 नियमित और 15 अथिति शिक्षक तैनात हैं.
बहरहाल बड़ा सवाल यह है कि शिक्षकों की कमी से शिक्षा का हाल कैसे सुधरेगा. शिक्षकों के आभाव में इन प्रमुख कॉलेजों में फॉर्म भरने व परीक्षा जैसी गतिविधियों के दौरान छात्रों की भारी भीड़ उमड़ती है. सवाल यह भी है कि यूनिवर्सिटी का 75 फीसदी उपस्थिति अनिवार्य से संबंधित नियम का क्या मतलब है, जब इन कॉलेजों में न शिक्षक हैं और न छात्र.
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