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समस्तीपुरः रामेश्वर जूट मिल का खुला ताला, मजदूर में संशय- कहीं यह चुनावी छलावा तो नहीं?

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले रामेश्वर जूट मिल का ताला खोल दिया गया है. वहीं मजदूर अभी भी संसय में है कि कहीं यह फिर ने बंद हो जाए, कहीं यह कोई चुनावी छलावा तो नहीं है.

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Published : Sep 16, 2020, 6:42 PM IST

समस्तीपुरः एक बड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार बिहार विधानसभा चुनाव से पहले रामेश्वर जूट मिल का ताला जरूर खुला. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक यह ताला खुला रहेगा. दरअसल अब तक करीब 20 बार से ज्यादा बंद हुए इस मिल का इतिहास कुछ ऐसा है कि मजदूर भी संसय में हैं कि कहीं यह फिर कोई चुनावी छलावा तो नहीं है.

रामेश्वर जूट मिल का खुला ताला
करीब 3 वर्षों के बाद उत्तर बिहार का गौरव माने जाने वाले रामेश्वर जूट मिल का भोंपू बज गया. मिल के अंदर साफ-सफाई व मशीनों को दुरूस्त करने का काम भी शुरू हो गया. उम्मीद अब इस बात का है कि अगले बीस से पच्चीस दिनों के अंदर यहां पहले की तरह काम भी शुरू हो जायेगा. वैसे इन खुशियों के बीच यहां काम करने वाले मजदूरों के अंदर कई सवाल भी है.

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मिल में काम कर रहे वर्कर

20 से ज्यादा बार हो चुका है मिल बंद
दरअसल इस मिल के खुलने व बंद होने का इतिहास यह है की अपने स्थापना के बाद से अब तक यह मिल 20 बार से ज्यादा बंद हो चुका है. समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र व कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इस मिल का चुनाव से पहले खुलने का भी अपना ही इतिहास है.

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मिल में रखी मशीने

1936 में स्थापित हुआ था मिल
1936 में दरभंगा महाराज की ओर से स्थापित यह मिल इस बार भी काफी कठिनाइयों के साथ खुला है. वर्तमान में इस मिल पर काम करने वाले मजदूरों का करीब 42 करोड़ रुपये बकाया है. वहीं मिल पर 70 लाख रुपये बिजली बिल बकाया है. वैसे इसमे करीब 42 लाख रुपये माफ किये गए है. इस मिल का राज्य सरकार के ऊपर करीब 10.26 करोड़ रुपये बकाया है.

देखें पूरी रिपोर्ट

उम्मीद है सब ठीक होगा
बहरहाल विषम परिस्थितियों के बीच एक बार फिर खुले मिल को लेकर जहां कई सवाल हैं. वहीं इस जूट मिल मजदूर यूनियन के अध्यक्ष का कहना है कि इस मिल के खुलने व बंद होने के इतिहास को देखते हुए डर लाजमी है. वैसे इस बार मैनेजमेंट व सरकार के बीच पांच साल का एग्रीमेंट हुआ है. उम्मीद है सब ठीक ही होगा.

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मिल में काम कर रहे वर्कर

गौरतलब है कि 1936 में इस मिल के स्थापना के बाद जहां दरभंगा महाराज ने इसे अंग्रेजों को दे दिया. वहीं उसके बाद यह मिल एमपी बिड़ला को मिला. वैसे 2009 से इस मिल का मैनजेमेंट प्रकाश चंद्र चरुरिया के पास है.

समस्तीपुरः एक बड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार बिहार विधानसभा चुनाव से पहले रामेश्वर जूट मिल का ताला जरूर खुला. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक यह ताला खुला रहेगा. दरअसल अब तक करीब 20 बार से ज्यादा बंद हुए इस मिल का इतिहास कुछ ऐसा है कि मजदूर भी संसय में हैं कि कहीं यह फिर कोई चुनावी छलावा तो नहीं है.

रामेश्वर जूट मिल का खुला ताला
करीब 3 वर्षों के बाद उत्तर बिहार का गौरव माने जाने वाले रामेश्वर जूट मिल का भोंपू बज गया. मिल के अंदर साफ-सफाई व मशीनों को दुरूस्त करने का काम भी शुरू हो गया. उम्मीद अब इस बात का है कि अगले बीस से पच्चीस दिनों के अंदर यहां पहले की तरह काम भी शुरू हो जायेगा. वैसे इन खुशियों के बीच यहां काम करने वाले मजदूरों के अंदर कई सवाल भी है.

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मिल में काम कर रहे वर्कर

20 से ज्यादा बार हो चुका है मिल बंद
दरअसल इस मिल के खुलने व बंद होने का इतिहास यह है की अपने स्थापना के बाद से अब तक यह मिल 20 बार से ज्यादा बंद हो चुका है. समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र व कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इस मिल का चुनाव से पहले खुलने का भी अपना ही इतिहास है.

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मिल में रखी मशीने

1936 में स्थापित हुआ था मिल
1936 में दरभंगा महाराज की ओर से स्थापित यह मिल इस बार भी काफी कठिनाइयों के साथ खुला है. वर्तमान में इस मिल पर काम करने वाले मजदूरों का करीब 42 करोड़ रुपये बकाया है. वहीं मिल पर 70 लाख रुपये बिजली बिल बकाया है. वैसे इसमे करीब 42 लाख रुपये माफ किये गए है. इस मिल का राज्य सरकार के ऊपर करीब 10.26 करोड़ रुपये बकाया है.

देखें पूरी रिपोर्ट

उम्मीद है सब ठीक होगा
बहरहाल विषम परिस्थितियों के बीच एक बार फिर खुले मिल को लेकर जहां कई सवाल हैं. वहीं इस जूट मिल मजदूर यूनियन के अध्यक्ष का कहना है कि इस मिल के खुलने व बंद होने के इतिहास को देखते हुए डर लाजमी है. वैसे इस बार मैनेजमेंट व सरकार के बीच पांच साल का एग्रीमेंट हुआ है. उम्मीद है सब ठीक ही होगा.

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मिल में काम कर रहे वर्कर

गौरतलब है कि 1936 में इस मिल के स्थापना के बाद जहां दरभंगा महाराज ने इसे अंग्रेजों को दे दिया. वहीं उसके बाद यह मिल एमपी बिड़ला को मिला. वैसे 2009 से इस मिल का मैनजेमेंट प्रकाश चंद्र चरुरिया के पास है.

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