समस्तीपुर: दीपावली का पर्व नजदीक आ गया है. कुम्हार इस अवसर पर जलने वाले मिट्टी के दीये को अंतिम रूप देने में लगे हैं. बाजार में आकर्षक और रंग-बिरंगे रेडीमेड दीये उपलब्ध हैं, लेकिन मिट्टी के दिये जलाने का अलग महत्व है.
पूर्वजों की तरह बनाते हैं मिट्टी के दीये
जिले के उजियारपुर प्रखंड के बिदुलिया पंचायत में कुम्हारों की घनी आबादी है. वे लोग अपने पूर्वजों की तरह मिट्टी के दीये और अन्य सामान बनाते हैं. आज के समय में मिट्टी के दीये का प्रचलन कम होने लगा है. इसकी जगह लोग बिजली से चलने वाली एलईडी और लेजर लाइट का प्रयोग करने लगे हैं. इसके बावजूद लोग अपनी पुरानी परंपरा को बरकरार रखते हुए दीयों की खरीदारी करते हैं.
चाइनीज सामान बंद होने से दीयों की बिक्री बढ़ी
बिदुलिया पंचायत के कुम्हार ने बताया कि दीयों की पकाई का काम शुरू हो चुका है. इस बार 25 से 30 लाख दीये बनाकर बाजार भेजने की तैयारी है. चाइनीज सामान बंद होने से दीयों की बिक्री बढ़ गई है. जिससे यहां के सभी परिवार दीये बनाने में लगे हैं.
पवित्र और शुभ माने जाते हैं मिट्टी के दीये
ज्योतिष बिपिन बाबा ने बताया कि के शास्त्रों में मिट्टी के दीये का प्रयोग पवित्र और शुभ माना गया है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इसे लाभदायक बताया गया है. मिट्टी के दीये जलाने से दैविक और दैहिक खुशहाली बनी रहती है.