समस्तीपुर: बिहार के केला किसान अब फल के अलावा उसके तना (थंब) का भी उपयोग कर सकेंगे. समस्तीपुर स्थित डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (Dr Rajendra Prasad Central Agricultural University)अब केले के अवशेष बचे तना से जैविक खाद बनाने का गुर सीखा रहा है. केले के तना से तरल और ठोस दोनों प्रकार के जैविक खाद बनाए (Organic fertilizer made from banana stem in samastipur) जा सकते हैं. केला किसान इन उर्वरकों का इस्तेमाल अपने खेत में कर सकेंगे या इसे बेच भी सकेंगे.
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200 किसानों को दिया जा रहा है प्रशिक्षणः आमतौर पर देखा जाता है कि केले के पौधों से फल लेने के बाद उसके तने को फेंक दिया जाता है, जिससे आम नागरिक को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. विश्वविद्याल प्रशासन के इस कदम से फेंके गए केले के अवशेष से होने वाली बदबू से भी लोगों को राहत मिलेगी. कृषि वैज्ञानिक एस के सिंह बताते हैं कि विश्वविद्यालय द्वारा 200 से अधिक किसानों को इसका प्रशिक्षण भी दिया गया है.
उन्होंने आगे बताया कि कृषि विवि ने अनुसंधान के तहत केले के थंब से लगभग 50 टन वर्मी कंपोस्ट तैयार किया गया है, जिसमे 35 प्रतिशत गोवर डाला गया। उन्होंने बताया कि इसका परीक्षण पपीते के पौधे में किया गया, जिसके उत्साहजनक परिणाम सामने आए। उन्होंने दावा किया कि पपीते के उत्पादन में वृद्धि देखी गई.
जैव उर्वरक का इस्तेमाल खेती में होगाः विवि के शोधकर्ता सिंह ने बताया कि केले के तने और अवशेष से बने जैविक ठोस और तरल खाद में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश व जिंक आदि भरपूर मात्रा में पाया जाता है. उन्होंने बताया कि किसान अगर केले के अवशेष से बनाएं गए जैव उर्वरक का इस्तेमाल खेती में प्रथम वर्ष भी करते हैं तो उन्हें रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल 50 प्रतिशत से भी कम करना पड़ेगा. अगले दो से तीन वर्षों में किसानों को रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं करना होगा. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि केले के तने से बने खाद डालने के बाद फसलों में कीटों का प्रकोप नहीं के बराबर होता है। उन्होंने कहा कि कई किसान केले के अवशेष से जैविक खाद बना रहे हैं. एक हेक्टेयर केले की खेती से जो थंब बचता है, उससे करीब सात से 10 हजार लीटर रस निकाला जा सकता है। इसे तरल उर्वरक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है.
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