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समस्तीपुर: लगातार बढ़ रहे हैं पलायन के आंकड़े, मनरेगा भी तोड़ रही है दम

समस्तीपुर जिले में कृषि, पशुपालन और मनरेगा जैसे रोजगार सृजित करने वाले संसाधनों का हाल काफी बुरा है. इस क्षेत्र में कागजों के आंकड़े काफी लुभावने दिखते हैं. लेकिन, धरातल पर इसका कोई वजूद नहीं है.

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Published : Jul 10, 2019, 4:58 PM IST

समस्तीपुर: पलायन की समस्या से आज बिहार ही नहीं बल्कि पूरा देश जूझ रहा है. रोजगार को लेकर बड़ी संख्या में लोगों का पलायन प्रदेश की कड़वी सच्चाई है. वहीं, अगर जिले की बात की जाए तो रोजगार को लेकर मजदूरों के पलायन का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. जीविका के साधनों में अपार कमी इसकी एकमात्र वजह है.

समस्तीपुर जिले में कृषि, पशुपालन और मनरेगा जैसे रोजगार सृजित करने वाले संसाधनों का हाल काफी बुरा है. वैसे इस क्षेत्र में कागजों के आंकड़े काफी लुभावने दिखते हैं. लेकिन, धरातल पर इसका कोई वजूद नहीं है.

Samastipur
रोजाना सैकड़ों लोग जा रहे दूसरे राज्य

करोड़ों खर्च करने के बावजूद नहीं थम रहा आंकड़ा
पलायन का दर्द केवल पलायन करने वाला ही समझ सकता है. केवल वही जान सकता है कि कितना मुश्किल है अपनी जन्मभूमि और परिवार छोड़कर दो वक्त की रोटी कमाने के लिए बाहर निकलना. समस्तीपुर में कृषि, पशुपालन और मनरेगा के जरिये सरकार ने एक बड़े रोजगार का दम जरूर भरा है. लेकिन, इस क्षेत्र में करोड़ों खर्च करने के बाद भी धरातल पर इसका कोई असर नहीं दिखता.

Samastipur
रोजाना सैकड़ों लोग जा रहे दूसरे राज्य

कृषि का हाल-बदहाल
जिले में अगर कृषि की बात की जाए तो बीते पांच वर्षों के अंदर 7000 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की गई है. यही नहीं केसीसी व समूह योजना के मदद में भी लगभग 2000 करोड़ खर्च किये गए. लेकिन, धरातल पर इसका कोई फायदा किसानों को नहीं हुआ. हालात यह हैं कि बदहाल किसान मजदूर होते चले गए. नतीजतन, आज जिले की एक बड़ी आबादी दूसरे राज्यों में दिहाड़ी मजदूर बनकर गुजर-बसर कर रहे हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

मनेरगा भी दम तोड़ती दिख रही
कृषि जैसा ही हाल जिले में दूसरे रोजगार के बड़े साधन मनरेगा का है. रोजगार गारंटी योजना के इस सरकारी दावें की हकीकत जिले में यह है कि बीते 12 सालों में महज 30 फीसदी काम ही इस योजना के तहत पूरा हुआ. मनरेगा के तहत 4 लाख 44 हजार 59 परिवार को जॉब कार्ड दिया गया. इस योजना के अनुरूप इन्हें कम से कम 100 दिन का काम मिलना है. लेकिन, आंकड़ों के मुताबिक इसके तहत पांच फीसदी कार्डधारकों को भी सही तरीके से लाभ नहीं मिला.

एक-दूसरे पर मढ़ रहे दोष
लगातार बढ़ रहे पलायन को लेकर विरोधी दलों ने सरकार के नियत व उनकी योजनाओं पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार रोजगार देने में पूरी तरह फेल है. अब तो मजदूरों के साथ-साथ छात्रों का भी पलायन हो रहा है. वहीं, सत्ताधारी दल तो वास्तविक समस्याओं से परे अपनी उपलब्धि गिनाते नहीं थक रहे हैं.

समस्तीपुर: पलायन की समस्या से आज बिहार ही नहीं बल्कि पूरा देश जूझ रहा है. रोजगार को लेकर बड़ी संख्या में लोगों का पलायन प्रदेश की कड़वी सच्चाई है. वहीं, अगर जिले की बात की जाए तो रोजगार को लेकर मजदूरों के पलायन का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. जीविका के साधनों में अपार कमी इसकी एकमात्र वजह है.

समस्तीपुर जिले में कृषि, पशुपालन और मनरेगा जैसे रोजगार सृजित करने वाले संसाधनों का हाल काफी बुरा है. वैसे इस क्षेत्र में कागजों के आंकड़े काफी लुभावने दिखते हैं. लेकिन, धरातल पर इसका कोई वजूद नहीं है.

Samastipur
रोजाना सैकड़ों लोग जा रहे दूसरे राज्य

करोड़ों खर्च करने के बावजूद नहीं थम रहा आंकड़ा
पलायन का दर्द केवल पलायन करने वाला ही समझ सकता है. केवल वही जान सकता है कि कितना मुश्किल है अपनी जन्मभूमि और परिवार छोड़कर दो वक्त की रोटी कमाने के लिए बाहर निकलना. समस्तीपुर में कृषि, पशुपालन और मनरेगा के जरिये सरकार ने एक बड़े रोजगार का दम जरूर भरा है. लेकिन, इस क्षेत्र में करोड़ों खर्च करने के बाद भी धरातल पर इसका कोई असर नहीं दिखता.

Samastipur
रोजाना सैकड़ों लोग जा रहे दूसरे राज्य

कृषि का हाल-बदहाल
जिले में अगर कृषि की बात की जाए तो बीते पांच वर्षों के अंदर 7000 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की गई है. यही नहीं केसीसी व समूह योजना के मदद में भी लगभग 2000 करोड़ खर्च किये गए. लेकिन, धरातल पर इसका कोई फायदा किसानों को नहीं हुआ. हालात यह हैं कि बदहाल किसान मजदूर होते चले गए. नतीजतन, आज जिले की एक बड़ी आबादी दूसरे राज्यों में दिहाड़ी मजदूर बनकर गुजर-बसर कर रहे हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

मनेरगा भी दम तोड़ती दिख रही
कृषि जैसा ही हाल जिले में दूसरे रोजगार के बड़े साधन मनरेगा का है. रोजगार गारंटी योजना के इस सरकारी दावें की हकीकत जिले में यह है कि बीते 12 सालों में महज 30 फीसदी काम ही इस योजना के तहत पूरा हुआ. मनरेगा के तहत 4 लाख 44 हजार 59 परिवार को जॉब कार्ड दिया गया. इस योजना के अनुरूप इन्हें कम से कम 100 दिन का काम मिलना है. लेकिन, आंकड़ों के मुताबिक इसके तहत पांच फीसदी कार्डधारकों को भी सही तरीके से लाभ नहीं मिला.

एक-दूसरे पर मढ़ रहे दोष
लगातार बढ़ रहे पलायन को लेकर विरोधी दलों ने सरकार के नियत व उनकी योजनाओं पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार रोजगार देने में पूरी तरह फेल है. अब तो मजदूरों के साथ-साथ छात्रों का भी पलायन हो रहा है. वहीं, सत्ताधारी दल तो वास्तविक समस्याओं से परे अपनी उपलब्धि गिनाते नहीं थक रहे हैं.

Intro:रोजगार को लेकर बड़ी संख्या में लोगों का पलायन आज इस राज्य की कड़वी सच्चाई है । वंही अगर जिले की बात की जाए तो , रोजगार को लेकर मजदूरों के पलायन का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा । वजह साफ है , बिना कोई उधोग वाले इस जिले में कृषि , पशुपालन व मनरेगा जैसे रोजगार सृजित करने वाले संसाधनों का हाल काफी बुरा है । वैसे इस क्षेत्र में कागजों के आंकड़े काफी लुभावने दिखते है , लेकिन धरातल पर इसका कोई वजूद नही ।


Body:पलायन के पीछे वजह साफ है , अगर यंहा रोजगार नही मिल रहा तो रोजी रोटी को लेकर लोग बाहर का राह पकड़ेंगे ही । वैसे जिले में कृषि , पशुपालन व मनरेगा के जरिये सरकार ने एक बड़े रोजगार का दम जरूर भरा है । लेकिन इस क्षेत्र में हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी धरातल पर इसका कोई असर नही । दरअसल अगर जिले में कृषि की बात की जाए तो बीते पांच वर्षों के अंदर 7000 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की है । यही नही केसीसी व समूह योजना के मद में भी लगभग 2000 करोड़ खर्च किये गए। लेकिन धरातल पर इसका कोई असर किसानों पर नही दिखा । हालात यह हुआ की , बदहाल किसान मजदूर होते चले गए। यही नही यैसी एक बड़ी आबादी आज दूसरे राज्यो में तिहारी मजदूरी कर रहा । कृषि जैसा ही हाल जिले में दूसरे रोजगार के बड़े साधन मनरेगा का है । रोजगार गारंटी योजना के इस सरकारी दावों की हकीकत जिले में यह है की , बीते 12 सालों में महज 30 फीसदी काम ही इस योजना के तहत पूरा हुआ । यही नही जिले में मनरेगा के तहत 4 लाख 44 हजार 59 परिवार को जॉब कार्ड दिया गया । इस योजना के अनुरूप इन्हें कम से कम 100 दिन का काम मिलना है । लेकिन जिले के आंकड़े बताने को काफी है की इसमें पांच फीसदी कार्डधारकों को भी यह सही तरीके से नही मिला। जाहिर सी बात है , जब रोजगार के कोई साधन नही होंगे तो पलायन होगा ही । जिले में लगातार बढ़ रहे पलायन को लेकर विरोधी दलों ने सरकार के नियत व उनके योजना पर सवाल खड़े करते हुए कहा की , सरकार रोजगार देने में पूरी तरह फेल है । यही नही अब तो मजदूरों के साथ साथ छात्रों का भी पलायन हो रहा । वंही सत्ताधारी दल ने जिले में बढ़े इस पलायन पर सरकारी योजनाओं का सिर्फ कागजी आंकड़ो का दम भरा ।

बाईट - अवदेश सिंह , जिला सचिव , लेफ्ट ।
बाईट - उमाकांत मिश्र , नेता , लोजपा ।


Conclusion:गौरतलब है की , जिले में बढ़ते पलायन के पीछे पूरी तरह से सरकारी विफलता है । अगर कृषि , पशुपालन व मनरेगा में गंभीरता से अमल किया जाता , तो आज यंहा रोजगार के बेहतर विकल्प होते ।

अमित कुमार की रिपोर्ट ।
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