समस्तीपुर: पलायन की समस्या से आज बिहार ही नहीं बल्कि पूरा देश जूझ रहा है. रोजगार को लेकर बड़ी संख्या में लोगों का पलायन प्रदेश की कड़वी सच्चाई है. वहीं, अगर जिले की बात की जाए तो रोजगार को लेकर मजदूरों के पलायन का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. जीविका के साधनों में अपार कमी इसकी एकमात्र वजह है.
समस्तीपुर जिले में कृषि, पशुपालन और मनरेगा जैसे रोजगार सृजित करने वाले संसाधनों का हाल काफी बुरा है. वैसे इस क्षेत्र में कागजों के आंकड़े काफी लुभावने दिखते हैं. लेकिन, धरातल पर इसका कोई वजूद नहीं है.
करोड़ों खर्च करने के बावजूद नहीं थम रहा आंकड़ा
पलायन का दर्द केवल पलायन करने वाला ही समझ सकता है. केवल वही जान सकता है कि कितना मुश्किल है अपनी जन्मभूमि और परिवार छोड़कर दो वक्त की रोटी कमाने के लिए बाहर निकलना. समस्तीपुर में कृषि, पशुपालन और मनरेगा के जरिये सरकार ने एक बड़े रोजगार का दम जरूर भरा है. लेकिन, इस क्षेत्र में करोड़ों खर्च करने के बाद भी धरातल पर इसका कोई असर नहीं दिखता.
कृषि का हाल-बदहाल
जिले में अगर कृषि की बात की जाए तो बीते पांच वर्षों के अंदर 7000 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की गई है. यही नहीं केसीसी व समूह योजना के मदद में भी लगभग 2000 करोड़ खर्च किये गए. लेकिन, धरातल पर इसका कोई फायदा किसानों को नहीं हुआ. हालात यह हैं कि बदहाल किसान मजदूर होते चले गए. नतीजतन, आज जिले की एक बड़ी आबादी दूसरे राज्यों में दिहाड़ी मजदूर बनकर गुजर-बसर कर रहे हैं.
मनेरगा भी दम तोड़ती दिख रही
कृषि जैसा ही हाल जिले में दूसरे रोजगार के बड़े साधन मनरेगा का है. रोजगार गारंटी योजना के इस सरकारी दावें की हकीकत जिले में यह है कि बीते 12 सालों में महज 30 फीसदी काम ही इस योजना के तहत पूरा हुआ. मनरेगा के तहत 4 लाख 44 हजार 59 परिवार को जॉब कार्ड दिया गया. इस योजना के अनुरूप इन्हें कम से कम 100 दिन का काम मिलना है. लेकिन, आंकड़ों के मुताबिक इसके तहत पांच फीसदी कार्डधारकों को भी सही तरीके से लाभ नहीं मिला.
एक-दूसरे पर मढ़ रहे दोष
लगातार बढ़ रहे पलायन को लेकर विरोधी दलों ने सरकार के नियत व उनकी योजनाओं पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार रोजगार देने में पूरी तरह फेल है. अब तो मजदूरों के साथ-साथ छात्रों का भी पलायन हो रहा है. वहीं, सत्ताधारी दल तो वास्तविक समस्याओं से परे अपनी उपलब्धि गिनाते नहीं थक रहे हैं.