समस्तीपुर: परिवारवाद के इर्द गिर्द घूमते देश और प्रदेश की सियासत में सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर के उस सियासी चरित्र को जरूर याद किया जाता है. जब वे अपने ही बेटे का टिकट कटवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिये थे. वर्तमान सियासी जंग में कर्पूरी के आदर्शों का हवाला देने वाले सियासी दल, क्या सचमुच कर्पूरी के बताये राह पर चल रहे हैं ?
1985 में हुए विधानसभा चुनाव का है वाकया
बिहार विधानसभा चुनाव के इस दंगल में भी बड़े-बड़े सियासी घरानों से लेकर दिगज्जों के बेटे, बहु, भाई और बेटी सहित अन्य सगे संबंधी चुनावी मैदान में है. इस मामले में पक्ष हो या विपक्ष सभी की स्थिति एक ही है. बहरहाल इस चुनावी जंग और परिवारवाद पर जारी बहस के बीच अतीत के पन्नों में अंकित वह सियासी अध्याय, जब कर्पूरी ठाकुर ने अपने ही बेटे को मिले टिकट का विरोध किया था. जननायक के पुत्र और राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर के अनुसार 1985 का वक्त था. जब कर्पूरी ठाकुर लोकदल से जुड़े थे. पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष ने कर्पूरी ठाकुर को समस्तीपुर विधानसभा सीट और उनके पुत्र रामनाथ ठाकुर को कल्याणपुर सीट से उम्मीदवार बनाया था.
बेटे का टिकट कटवाकर ही दम लिए कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर को जब इसकी जानकारी हुई तो वे लोकदल के बिहार प्रभारी राजनारायण से मिलने पंहुचे. वैसे तबतक वे दिल्ली जाने वाले जहाज में बैठ चुके थे. कर्पूरी ठाकुर बड़ी मुश्किल से उनसे मिलने जहाज तक पंहुच गए और उम्मीदवारों की लिस्ट से उन्होंने अपना नाम कटवा लिया. कर्पूरी के इस फैसले से पार्टी में हड़कंप मच गया. आखिरकार किसी तरह रामनाथ ठाकुर के नाम कटवाने के बाद ही वे माने.
जारी है वंशवाद की सियासत
बहरहाल अपने पार्टी की होर्डिंग और बैनर पर कर्पूरी को जगह देकर जननायक के खींची लकीर पर चलने वाले सियासी दलों को खुद सोचने की जरूरत है. क्या सियासत में वंशवाद और परिवारवाद को लेकर वे सचमुच सही राह पर है.