समस्तीपुर: रंगों का त्योहार होली मंगलवार 10 मार्च को है. यह त्योहार हिंदुओं के एक प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस त्योहार को देशभर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं और सभी शिकवे गिले भुलाकर एक दूसरे से गले मिलते हैं. होली से एक दिन पहले होलिका दहन होता है. इसको लेकर पूरे प्रदेश में कई तैयारियां की गई है.
इस बार होलिका दहन काफी खास रहने वाली है. ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि इस बार की होली और होलिका दहन दुर्लभ संयोग में लग रहा है. यह संयोग कई सालों के बाद बन रहा है.
'निशामुख रात्रि में जलाई जाएगी होलिका'
होलिका दहन के बारे में जानकारी देते हुए थानेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी हेरराम मिश्रा ने कहा कि इस बार होलिका दहन और होली के लेकर खास तैयारी की जा रही है. इस बार कई साल के बाद होलिका दहन के लिए शुभ काल आया है. इस बार होलिका सोमवार शाम से लेकर देर रात 11.26 मिनट तक होलिका जलाई जाएगी. इस बार कि होलिका सभी 12 राशियों के लिए शुभ है.
'भद्रा को माना जाता है विघ्नकारक'
होली के लेकर ज्योतिषाचार्य संतोष कुमार झा ने कहा कि इस बार की होलिका निशामुख रात्रि में शुरू हो रही है. वहीं, होली भद्रा पूंछ काल में मानाई जाएगी. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि 10 मार्च को उत्तर फाल्गुन नक्षत्र तथा त्रिपुष्कर योग में होली मनाई जाएगी.
होली की लोककथा
धर्म के जानकारों की माने तो होली को लेकर कई लोककथाएं है. लेकिन इनमें से सबसे प्रमुख प्रह्लाद की कहानी है. बताया जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा हुआ करता था. हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद श्री हरी विष्णु का अन्नय भक्त था. प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में भगवान के पूजन पर रोक लगा रखी थी. लेकिन प्रह्लाद ने अपने पिता की बातें को नहीं मानी और भगवान की पूजा जारी रखी, जिस वजह से हिरण्यकश्यप की बहन ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद के साथ आग में जलाने का आदेश दिया. होलिका को भगवान से वरदान मिला हुआ था कि वह आग में नहीं जल सकेगी. लेकिन आग में बैठने के बाद होलिका तो जल गई. लेकिन भक्त प्रह्लाद बच गया. इसी दिन से भक्त प्रह्लाद की याद में होलिका जलाई जाती है. इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है.