समस्तीपुरः जिले के पटोरी अनुमंडल स्थित धमोन गांव में दशकों से पारंपरिक रूप से छाता होली मनाई जा रही है. यहां की छाता होली अब प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत बन गयी है. हरियाणा और बिहार की संयुक्त संस्कृति को अपने दामन में समेटे धमोन गांव की अनूठी छाता होली में ग्रामीण माटी की सुगंध छिपी होती है. इसकी तैयारी एक महीना पहले से ही की जाती है.
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इस छाता होली में गांव के बच्चे, महिलाएं व पुरुष काफी संख्या में शामिल होते हैं और अपने आराध्य देव स्वामी निरंजन की पवित्र स्थान पर एकत्र होकर रंग और गुलाल उड़ाते हैं. हारमोनियम की ताल और ढोलक की थाप पर फगुआ के गीत के साथ ग्रामीण अपने अपने मोहल्ले के सुसज्जित छतरियों के बीच एकत्र होकर सड़क पर निकल पड़ते हैं. लोगों की टोली पूरे गांव में होली खेलते हुए स्वामी निरंजन स्थान तक पहुंचती है. जहां एक-दूसरे के साथ रंग-गुलाल से होली खेलने के बाद देर रात महादेवस्थान पर समारोह के बाद इसका इसे समाप्त किया जाता है.
बताया जाता है कि यहां छाता होली कई सदि पहले से मनाई जा रही है. जिसमें लगभग 2 दर्जन से ऊपर बांस की बड़ी-बड़ी छतरी बनाई जाती है. जिसे लगभग 1 महीने पहले से तैयार किया जाता है. इस छतरी की भरपूर सजावट की जाती है तथा प्रत्येक मोहल्ले की छतरियों की सजावट में इस बात का बोध होता है कि किस की छतरी अधिक सुंदर है. गांव में ऐसी परंपरा है कि आराध्य देव स्वामी निरंजन जी को पहला रंग और गुलाल चढ़ाया जाता है. घर में बने हुए पकवान का भोग सर्वप्रथम उन्हीं को लगाया जाता है. उसके बाद ही विधिवत होली की शुरुआत गांव में होती है. इस होली की महता क्षेत्र में काफी पुरानी है. बरसाने और ब्रज की होली से कम नहीं दिखती है यहां की छाता होली.